कौन चलाता है सूर्यदेव का रथ

By: May 12th, 2018 12:05 am

वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ताधर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक। यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने चक्षो सूर्यो जायत कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छांदोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते हैं। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अतः कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यंत्र, तंत्र सूर्य मंदिरों का निर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्म विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मंदिर निर्माण का महत्त्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पाई थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मंदिर भारत में बने हुए थे। उनमें आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। हिंदू धर्म साहित्य बहुत ही विस्तृत है। इसमें अनेक पुराण, वेद, धर्म ग्रंथ व उपनिषद आदि आते हैं। इन सभी ग्रंथों में ऐसी अनेक रोचक बातें बताई गई हैं, जिसे कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको हिंदू धर्म ग्रंथों से संबंधित कुछ रोचक प्रश्नों के उत्तर बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं।

सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम क्या है ?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम अरुण है। इनकी माता का नाम विनता और पिता का नाम महर्षि कश्यप है। भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अरुण के छोटे भाई हैं। धर्म ग्रंथों में अरुण की दो संतानें बताई गई हैं, जटायु और संपाति। जटायु ने ही माता सीता का हरण कर रहे रावण से युद्ध किया था और संपाति ने वानरों को लंका का मार्ग बताया था।

पुराणों में वर्णित अश्वमेध यज्ञ क्या है ?

धर्म ग्रंथों में अनेक स्थान पर अश्वमेध यज्ञ का वर्णन आता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, श्रीराम व महाभारत के अनुसार, युधिष्ठिर ने भी ये यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के अंतर्गत एक घोड़ा छोड़ा जाता था। यह घोड़ा जहां तक जाता था, वहां तक की भूमि यज्ञ करने वाले की मानी जाती थी। यदि कोई इसका विरोध करता था, तो उसे यज्ञ करने वाले के साथ युद्ध करना पड़ता था। ये यज्ञ वसंत या ग्रीष्म ऋतु में किया जाता था और करीब एक वर्ष इसके प्रारंभिक अनुष्ठानों की पूर्णता में लग जाता था।

हिंदू धर्म में किस ग्रंथ को पांचवां वेद कहा गया है?

हिंदू धर्म में महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है, यन्नेहास्ति न कुत्रचित अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागर की देन है। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक हैं, इसलिए इसे शतसाहस्री संहिता भी कहा जाता है।

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