खेल आरक्षण से नौकरी पाए, खेलों से दूर क्यों

By: May 25th, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

पड़ताल करने के बाद जो बातें सामने आई हैं, उनमें पहला कारण है अधिकतर खिलाड़ी जुगाड़ लगाकर तीन राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर खेल आरक्षण के हकदार तो बन जाते हैं, मगर नौकरी लगने के बाद खेल मैदान की तरफ देखते भी नहीं हैं…

हिमाचल प्रदेश में दो दशक पूर्व तक उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाडि़यों को राज्य में परिचय व प्रश्रय न मिलने के कारण अपनी रोजी-रोटी के लिए केंद्रीय विभागों या दूसरे राज्यों को पलायन करना पड़ता था। राज्य सरकार द्वारा उस समय कुछ चुनिंदा खिलाडि़यों की मंत्रिमंडल की मंजूरी से एक प्रतिशत पदों पर भर्ती भी कभी- कभार हो जाती थी। इसी खेल आरक्षण के अंतर्गत सुमन रावत व चमन कौलटा को जिला युवा सेवाएं तक खेल अधिकारी के पदों पर पहली बार भर्ती किया था। एथलेटिक में कमलेश कुमारी व पुष्पा ठाकुर व मुक्केबाजी में भगत सिंह, विरेंद्र, शिव चौधरी सहित बाद में कई खिलाडि़यों को नौकरी मिली। 21वीं सदी शुरू होने से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने हिमाचल के सरकारी विभागों तथा निगमों व बोर्डों में तीसरे दर्जे की नौकरियों में तीन प्रतिशत पद खिलाडि़यों को देकर हिमाचल की खेलों के लिए बहुत बड़ा कार्य किया है। सन् 2000 से लेकर अब तक सैकड़ों खिलाडि़यों को विभिन्न विभागों में नौकरी मिल चुकी है, मगर चंद नाम हैं जो नौकरी लगने के बाद भी अपना खेल देर तक जारी रखकर हिमाचल व देश को पदक दिला पाए हैं। सुमन रावत, कमलेश कुमारी, पुष्पा ठाकुर, भगत सिंह, शिव चौधरी सहित कुछ नाम हैं, जो नौकरी लगने के बाद बहुत देर तक अपना खेल प्रशिक्षण जारी रखे हुए थे।

आजकल खेल आरक्षण से नौकरी प्राप्त अजय ठाकुर, पूजा ठाकुर व प्रियंका नेगी कबड्डी, आशीष चौधरी व गीता मुक्केबाजी व जॉनी चौधरी व रानी कुश्ती में इस समय सरकारी नौकरी में रहकर अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रखकर प्रदेश व देश का नाम रोशन कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में जब सैकड़ों खिलाडि़यों ने खेल आरक्षण का लाभ लेकर सरकारी नौकरी प्राप्त की है, तो अब वे क्यों अपना खेल जारी नहीं रख पा रहे हैं? इस सब की पड़ताल करने के बाद जो बातें सामने आई हैं, उनमें पहला कारण है अधिकतर खिलाड़ी जुगाड़ लगाकर तीन राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर खेल आरक्षण के हकदार तो बन जाते हैं, मगर नौकरी लगने के बाद खेल मैदान की तरफ देखते भी नहीं हैं। इस सबके लिए खेल आरक्षण में शर्त होनी चाहिए कि नौकरी लगने के बाद  आगामी पांच वर्षों तक खेल प्रशिक्षण जारी रखकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करना अनिवार्य होना चाहिए जैसे रेलवे व सेना आदि कई विभागों में होता है।

राज्य में नौकरी प्राप्त करने के बाद खिलाड़ी को उसके विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी खेल प्रशिक्षण जारी रखने में बाधा बनते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पुष्पा ठाकुर रही है। उस की तो सालाना वेतन वृद्धि ही बंद कर दी थी, जो लंबी लड़ाई के बाद दोबारा बहाल हुई थी। इसलिए खिलाड़ी प्रशिक्षण शिविरों में जाने से भी डरता है। कहीं उसके विभाग के साथी उसे भगौड़ा ही घोषित न करवा दें, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक लंबी अवधि के प्रशिक्षण शिविर चलते हैं। यह सच है कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेलों की तैयारी व उसमें भाग लेने का समय सरकारी नौकरी के खिलाड़ी का ऑन ड्यूटी माना जाता है। कई बार खिलाड़ी को अधिकारी बहुत तंग करते हैं।

वे समझते हैं कि खिलाड़ी कर्मचारी प्रशिक्षण शिविर में मौज कर रहा है, मगर खिलाड़ी सवेरे-शाम तीन-तीन घंटे कठिन शारीरिक श्रम से गुजर कर अपने को अरबों लोगों में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए मानसिक तौर पर भी मजबूत करता है। खिलाड़ी कर्मचारी से उसके सहयोगी व साथी कर्मचारी भी जलते हैं। कई बार तो वह खिलाड़ी कर्मचारी के पत्रों व अन्य कागजातों को ही गुम करते देखे गए हैं। इस सबके बाद भी कई जुनूनी खिलाड़ी कर्मचारी तो अपना प्रशिक्षण जारी रखते हैं और अधिकतर इस डर से खेल छोड़कर अपनी नौकरी ही बचाते हैं।

हिमाचल में खिलाड़ी की नियुक्ति खेल प्रशिक्षण सुविधाओं के नजदीक न होने के कारण भी उसकी प्रशिक्षण तैयारी में बाधा होती है। यही कारण है कि कई अच्छे खिलाड़ी जो केंद्रीय विभागों  या अन्य राज्यों में नौकरी कर रहे हैं, हिमाचल में आकर नौकरी करने से डरते हैं। हिमाचल में खिलाड़ी को खेल आरक्षण मिल गया है, मगर चैंपियन बनने के लिए खेल आरक्षण के कर्मचारियों व अधिकारियों को कोई उच्च स्तरीय खेल सुविधा राज्य में नहीं मिल पा रही है। राज्य  में खेलों को बढ़ावा देना है तो खेल आरक्षण के अंतर्गत नौकरी प्राप्त किए खिलाड़ी कर्मचारियों  को उनके प्रशिक्षण के लिए सुविधा व समय भी देना होगा। साथ ही खिलाड़ी से भी अपेक्षा रहेगी कि जब उसे आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा मिल गई है, तो वह कम से कम पांच वर्षों तक अपना प्रशिक्षण कार्य जारी रखकर प्रदेश व देश को पदक जिताकर हिमाचल का नाम रोशन करें। इसमें कर्मचारी के अधिकारियों और सह कर्मचारियों को भी खिलाड़ी का सहयोग करना चाहिए।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

 -संपादक

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