गीता रहस्य

By: May 19th, 2018 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

श्लोक में ‘माम’ शब्द का अर्थ पहले के श्लोकों में भी मैंने ईश्वर कृपा से अथर्ववेद मंत्र का प्रमाण देकर स्पष्ट किया है कि ‘माम’ अर्थात मेरे का उच्चारण एवं स्मरण का भाव है ईश्वर के नाम का उच्चारण एवं स्मरण। यहां वैदिक ज्ञान की कमी के कारण कई बार यह भ्रांति हो जाती है कि श्रीकृष्ण महाराज अपने नाम के उच्चारण एवं स्मरण की बात कर रहे हैं जो कि वेद विरुद्ध है…

प्रलय में सब रचनाएं सत्माप्त हो जाती हैं। परंतु ईश्वर तथा ईश्वर का ज्ञान वेद सदा वर्तमान रहता है और नई सृष्टि में पुनः यही वेदों का ज्ञान वैसा का वैसा तनिक सा भी बिन परिवर्तन लिए सृष्टि क्रम के अनुसार प्रकट हो जाता है। अतः वेद विद्या ईश्वर की तरह अनादि, सनातन, अपरिर्वतनशील है जिसे प्राणी हर सृष्टि एवं हर युग में अपनाकर ही सुखमय जीवन व्यतीत करता हुआ अंत में अर्थ,धर्म काम एवं मोक्ष प्राप्त करता है। यह वचन स्वयं ईश्वर ने वेदों में कहे हैं। वेदमंत्र ईश्वर के वचन हैं। अतः हम वेद मंत्रों पर ही विश्वास करें एवं मनुष्यों के वेद विरुद्ध वचनों पर कदापि विश्वास न करंे अन्यथा जीव सदा दुखी रहता है।  दूसरा यह है कि जैसा कि अर्थववेद मंत्र 7/2/1 में कहा कि वेदाध्ययन एवं अष्टांग योग की साधना के पश्चात जिस योगी के हृदय में ब्रह्म एवं वेदमंत्र प्रकट हो गए हैं, केवल पवह ही प्रवचन करे। अतः युजर्वेद मंत्र 40/10 भी कहता है कि वेदमंत्र जो ईश्वरीय वचन हैं वह केवल ऋषि-मुनि, तपस्वी, समाधिस्थ पुरुष ही उच्चारण करते हैं, अन्य नहीं करते। साधारण जन उनसे सुनकर ही विद्वान ऋषि-मुनि बनते हैं। अन्य तो कथा- कहानियां सुन और वेद विरुद्ध मनुष्य रचित पुस्तकों का ही व्याख्यान करते हैं। श्रीकृष्ण महाराज जी योगेश्वर हैं एवं ब्रह्म के समान हैं। अतः वह श्लोक में उचित ही वेदों में कहे ईश्वर के नाम ॐ का उच्चारण एवं स्मरण का उपदेश दे रहे हैं। श्लोक में ‘माम’ शब्द का अर्थ पहले के श्लोकों में भी मैंने ईश्वर कृपा से अथर्ववेद मंत्र का प्रमाण देकर स्पष्ट किया है कि ‘माम’ अर्थात मेरे का उच्चारण एवं स्मरण का भाव है ईश्वर के नाम का उच्चारण एवं स्मरण। यहां वैदिक ज्ञान की कमी के कारण कई बार यह भ्रांति हो जाती है कि श्रीकृष्ण महाराज अपने नाम के उच्चारण एवं स्मरण की बात कर रहे हैं जो कि वेद विरुद्ध है। वैसे ही श्रीकृष्ण महाराज का नाम श्रीकृष्ण है, ॐ नहीं है। ॐ तो ईश्वर का नाम है और योगेश्वर श्रीकृष्ण के अंदर ईश्वर स्वयं प्रकट हुए हैं। अतः श्रीकृष्ण (जीवात्मा) पृथक है और उनमें प्रकट हुआ ईश्वर जो निराकार है, वह पृथक है। स्पष्ट है कि अंत समय में वहीं प्राणी ईश्वर के नाम का स्मरण करेगा जो बाल्यावस्था से लेकर अंतिम सांस तक नित्य नियमित रूप से वेदों का सुनना, हवन-यज्ञ द्वारा ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ पूजा और ईश्वर के नाम का स्मरण करेगा।

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