घटते प्राकृतिक संसाधन

By: May 25th, 2018 12:05 am

अजय भंडारी, विद्यार्थी ,पीजी कालेज सोलन

हिमाचल निर्माता डा. परमार ने कहा था कि ‘हिमाचल में खूबसूरती के जखीरे जमा हैं।’ उनका यह कथन बिलकुल सत्य है। हिमाचल को प्राकृतिक सौंदर्यता और संसाधनों की बहुतायत के कारण विश्व भर में ख्याति प्राप्त है, परंतु समय के साथ-साथ बढ़ता औद्योगीकरण, राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण, वाहनों की दिन-प्रतिदिन बढ़ती संख्या व अन्य विकासात्मक कार्यों से जहां  प्रदेश एक ओर उन्नति के शिखर को छू रहा है, वहीं दूसरी ओर इसके कारण जलवायु में भी परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। वनों में आग लगना, वनों का अंधाधुंध कटान, प्राकृतिक जल स्रोतों का भारी मात्रा में दोहन, कृषि में कीटनाशकों व रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग, पर्यावरण प्रदूषण आदि चिंता का विषय बने हुए हैं। गर्मी के इन दिनों में लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड़ करके निकट भविष्य में होने वाली किसी बड़ी त्रासदी को निमंत्रण दे रहा है। इससे बचने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कम करना होगा, जल संरक्षण को बढ़ावा देना होगा और सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण अधिक से अधिक पौधे लगाकर वनों का विस्तार करना होगा, तभी इन सब समस्याओं से हम निजात पा सकते हैं।

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