जीवन में शक्ति संचय
अवधेशानंद गिरि
एकाग्रता चंचलता को स्थिर करती है। मौन के अंतरंग में शक्ति स्रोत उद्भूत होता है। मौन की महिमा अनंत है। इसकी सात्विकता मनोहारी होती है। मन की आंखें मौन की भाषा में बोलती हैं। प्रेम की अभिव्यक्ति में मौन अद्वितीय है। वाणी से कुछ भी न बोलने के बावजूद मौन अभिव्यक्ति किसी बड़े व्याख्यान से कम नहीं है। मौन से भाषा के शुभ संस्कार उत्पन्न होते हैं…
जीवन में शक्ति संचय का श्रेष्ठ अनुष्ठान है मौन। मौन रखने पर जो कुछ बोला जाता है, उसमें अपेक्षाकृत अधिक सत्य होता है। अधिक और अनर्थ बोलने से संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है। अत्यधिक कोलाहल में निर्वाक मौन व्याख्यान ही काम करता है। मौन अनेक प्रकार की समस्याओं का सरल समाधान है। यह एक अनुपम अस्त्र का काम करता है। मौन का दूसरा नाम शांति है। वैचारिक द्वंद्व और द्वेष मौन से सहजतापूर्वक शांत हो जाता है। मौन से व्यक्ति में सहनशीलता जाग्रत होती है जिससे क्रोध शांत होता है। मन मंथन से मौन प्रभावकारी भूमिका का निर्वहन करता है। इससे अधिक तो अंतर्यात्रा में सहयोग प्राप्त होता है। मौन आत्मानुभूति की संभावना बढ़ाता है। यही भविष्य में, जनमानस में सदाचरण को जन्म देता है, जो अंत में मंगलाचरण का परिवर्तन करता है। सूक्ष्म सत्य को पकड़ने की शक्ति मौन उत्पन्न करता है। इससे प्रज्ञापटुता बढ़ जाती है। मौन से कल्पना शक्ति भी विकसित होती है जिसके फलस्वरूप संकल्प शक्ति और मनोबल का संवर्द्धन होता है। मौन द्वारा एकाग्रता का उदय होने पर ध्येय तक पहुंचने में सरलता हो जाती है। हमारा मन पारे की तरह चंचल होता है। एकाग्रता चंचलता को स्थिर करती है। मौन के अंतरंग में शक्ति स्रोत उद्भूत होता है। मौन की महिमा अनंत है। इसकी सात्विकता मनोहारी होती है। मन की आंखें मौन की भाषा में बोलती हैं। प्रेम की अभिव्यक्ति में मौन अद्वितीय है। वाणी से कुछ भी न बोलने के बावजूद मौन अभिव्यक्ति किसी बड़े व्याख्यान से कम नहीं है। मौन से भाषा के शुभ संस्कार उत्पन्न होते हैं। मुनि का प्रमुख लक्षण है मौन जिसके जीवन का लक्ष्य आत्मिक विकास करना होता है। मौन व्रत द्वारा बड़े से बड़े संघर्ष शून्य हो जाते हैं। इससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मौन में वह शक्ति निहित है, जो बड़े से बड़े अहंकार को धूल में मिला देती है। यदि किसी मनुष्य द्वारा जाने अनजाने एक निर्बल के प्रति कटु शब्द का प्रयोग हो, तो निर्बल का मौन रहना कठोर वाणी से भी अधिक प्रभाव डालता है। मौन समर्पण नहीं अपितु उचित समय की प्रतिक्षा का संकेत देता है। दृढ़ विश्वास, श्रम और आशा के लिए मौन एक महान मंत्र है। जब अखंड मौन टूटता है, तो व्यक्ति को निरुत्तर हो जाना पड़ता है। मौन सत्य का शोधन करता है। मौन से कृतज्ञता में वृद्धि होती है। मौन कलपतरु के समान फल देने वाला एक अनुपम वृक्ष है। मौन अपने आप में एक शक्ति है जो कुछ कहे बगैर अपने भाव को प्रदर्शित कर देता है और इच्छित कार्य संपन्न करा लेता है। इससे व्यर्थ और विकारी बातों पर लगाम लगता है। मौन से एकाग्रता बढ़ती है। बुरी आदतों से छुटकारा पाना मौन के संकल्प और संयम से ही संभव है। यदि क्रोध, दुःख, चिंता एवं अहंकार से दूर रहना हो, तो संयम से काम लें और मौन हो जाएं। अपनी वाणी को विश्राम देना, सिर्फ मस्तिष्क से काम लेना और किसी से कुछ न कहना मौन का ही लक्षण है। बहुत सी इच्छाएं हमारे मन में आती हैं, परंतु कितने की पूर्ति होती है? अगर हम इन इच्छाओं को सभी के सामने प्रकट करते रहें, तो दूसरे उसका मजाक उड़ाएंगे और उसकी पूर्ति नहीं करेंगे।
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