दुर्गा देवी मंदिर काशी

By: May 12th, 2018 12:10 am

वाराणसी कैंट से लगभग पांच किमी.की दूरी पर दुर्गा कुंड क्षेत्र में मां दुर्गा का भव्य एवं विशाल मंदिर है। बाबा विश्वनाथ नगरी के नाम से मशहूर काशी की पावन भूमि पर देवी मंदिरों का भी बड़ा ही महत्त्व है। यह मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में मिलता है। लाल पत्थरों से बने अति भव्य इस मंदिर के एक तरफ दुर्गा कुंड है। इस कुंड को बाद में नगरपालिका ने फव्वारे में बदल दिया, जो अपनी मूल सुंदरता को खो चुका है। इस मंदिर में मां दुर्गा यंत्र रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, देवी लक्ष्मी, मां सरस्वती एवं मां महाकाली की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर का निर्माण 1760 ई. में रानी भवानी जी द्वारा करवाया गया था। मान्यता यह भी है कि शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने थक कर दुर्गा कुंड स्थित मंदिर में विश्राम किया था। दुर्गा कुंड क्षेत्र पहले वनाच्छादित था।

इस वन में उस समय काफी संख्या में बंदर विचरण करते थे। धीरे-धीरे इस क्षेत्र में आबादी बढ़ने पर पेड़ों के साथ बंदरों की संख्या भी घट गई। इस मंदिर में देवी का तेज इतना भीषण है कि मां के सामने खड़े होकर दर्शन करने से ही कई जन्मों के पाप जलकर भस्म हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दुर्गा माता आद्य शक्ति स्वरूप में अदृश्य रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर शिव की नगरी काशी के प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि यह देवी का आदि मंदिर है, इसके अतिरिक्त वाराणसी में केवल दो ही मंदिर काशी विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा ही प्राचीनतम हैं।

रक्त से बना हवन कुंड– इस मंदिर से जुड़ी एक अद्भुत कहानी सुनाई जाती है। इस मंदिर स्थल पर माता भगवती के प्रकट होने का संबंध अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन की कथा से जुड़ा है। कहते हैं कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश सुबाहु की बेटी से करवाने के लिए माता ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध करके उनके रक्त से कुंड को भर दिया, वही रक्त कुंड कहलाता है। इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया, जो वर्तमान में दुर्गा कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। लोगोें का तो यह भी मानना है कि इस कुंड में पानी पाताल से आता है। तभी तो यह कभी सूखता नहीं।

काशी नरेश सुबाहु द्वारा हुआ था मंदिर का निर्माण-सुदर्शन की रक्षा तथा युद्ध समाप्ति के बाद देवी मां ने काशी नरेश को दर्शन देकर उनकी पुत्री का विवाह राजकुमार सुदर्शन से करने का निर्देश दिया और कहा कि किसी भी युग में इस स्थल पर जो भी मनुष्य सच्चे मन से मेरी आराधना करेगा, मैं उसे साक्षात दर्शन देकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूंगी। कहा जाता है कि उस स्वप्न के बाद राजा सुबाहु ने वहां मां भगवती का मंदिर बनवाया जो कई बार के जीर्णोद्धार के साथ आज वर्तमान में श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।

मंदिर को लेकर मान्यता-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिन दिव्य स्थलों पर देवी मां साक्षात प्रकट हुईं, वहां मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है। ऐसे मंदिरों में चिन्ह पूजा का ही विधान है। दुर्गा मंदिर भी इसी श्रेणी में आता है। यहां प्रतिमा के स्थान पर देवी मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है साथ ही यहां यंत्रिक पूजा भी होती है। यही नहीं काशी के दुर्गा मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र यानी बीस कोस वाली यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गई है। मंदिर के अंदर कई हवन कुंड हैं, जहां प्रतिदिन हवन होते हैं। मंदिर में लोगों की बहुत श्रद्धा और आस्था है। कहते हैं कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

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