पीएम मोदी अपराजेय नहीं !

By: May 22nd, 2018 12:05 am

कर्नाटक में सत्ता के समीकरण बदलने के बाद एक नई बहस शुरू हो गई है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को हराने का फार्मूला मिल गया है? क्या 2019 तक मोदी अपराजेय नहीं रह जाएंगे? क्या विपक्षी दलों का महागठबंधन आकार लेगा? यदि विपक्षी दल एकजुट होते हैं, तो उनका नेतृत्व कौन करेगा? उसमें सिकुड़ती, सिमटती कांग्रेस की भूमिका क्या होगी? क्या मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विधानसभा चुनावों में विपक्षी एकता का प्रयोग किया जाएगा? यदि विपक्षी महागठबंधन बनता भी है, तो क्या ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, लालू यादव, चंद्रबाबू नायडू सरीखे दिग्गज क्षत्रप कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नेतृत्व सहज तौर पर स्वीकार करेंगे? अखिलेश ने तो बयान भी दे दिया है कि राहुल का प्रधानमंत्री बनना समय तय करेगा। लब्बोलुआब यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की अपराजेय हैसियत पर चर्चाएं नहीं, चिंताएं जताना शुरू हो गया है। कमोबेश कर्नाटक ने इतना समझौता तय कर दिया है कि 2019 के लोकसभा चुनावों तक कांग्रेस-जद (एस) का ‘मौकापरस्त गठबंधन’ बरकरार रहेगा। संभावनाएं अभी से जताई जा रही हैं कि यदि कांग्रेस-जद (एस) ने गठबंधन में लोकसभा चुनाव लड़ा, तो भाजपा 7 सीटों तक सिमट सकती है। अभी कर्नाटक की 28 में से 17 सीटें भाजपा की झोली में हैं। कर्नाटक का जो जनादेश सामने आया है, उसके मद्देनजर भाजपा के पक्ष में कमोबेश 16 सीटों के आकलन किए जा रहे हैं। बहरहाल सवाल और संभावनाएं प्रधानमंत्री मोदी पर ही केंद्रित हैं। भारतीय राजनीति के इन चार सालों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा खौफ पैदा किया है कि सभी दोस्त-दुश्मन एक ही दिशा में भागने लगे हैं। बेशक एक वृक्ष की छाया तले एकत्रित नहीं हुए हैं अभी। राजनीति में ‘अपराजेय’ कोई नहीं होता। अपने कालखंड की ‘तानाशाह’ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी लोकसभा चुनाव हार गई थीं और करीब 3 साल तक सत्ता के बाहर रही थीं। प्रधानमंत्री मोदी को अपराजेय-सा इस देश के जनमत ने ही बनाया है। आज देश के 20 राज्यों में भाजपा और सहयोगी दलों की सरकारें हैं, करीब 70 फीसदी आबादी पर ‘भगवा शासन’ चल रहा है, करीब 11 करोड़ सदस्य तो अकेली भाजपा के ही हैं। जब भी प्रधानमंत्री के तौर पर कोई आवाज उठती है, तो ‘मोदी, मोदी’ के नारे गूंजने लगते हैं। बेशक मोदी अपराजेय नहीं हैं, लेकिन फिलहाल सबसे ताकतवर और स्वीकार्य नेता जरूर हैं। लिहाजा हम एक बार फिर दोहरा रहे हैं कि कर्नाटक में न तो मोदी और न ही भाजपा पराजित हुए हैं, लेकिन सरकार दूसरे और तीसरे नंबर के दलों की बन रही है। यह करिश्मा भारत के लोकतंत्र में ही संभव है। यहां एक विधायक वाला शख्स भी मुख्यमंत्री बना है और कुछ सालों तक बना रहा है। बहरहाल कर्नाटक के जरिए कांग्रेस ‘मोदी-विरोधी’ राजनीति को एक मुहावरा बनाने में सफल रही है। हालांकि उप्र में गोरखपुर, फूलपुर संसदीय उपचुनावों में कांग्रेस ने सपा-बसपा गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा था। चूंकि भाजपा ने दोनों ही सीटें गंवाई थीं, लिहाजा एक राजनीतिक मुहावरा चल निकला था कि यदि 2019 में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को शिकस्त देनी है, तो समूचे विपक्ष को एकजुट होकर चुनाव में उतरना होगा। वह परिदृश्य करीब आता जा रहा है। लोकसभा चुनावों में एक साल का समय शेष है। यदि प्रधानमंत्री मोदी को पराजित करना है, तो महागठबंधन यथाशीघ्र बनना चाहिए। कर्नाटक मोदी को हराने का कोई फार्मूला नहीं है। वहां मोदी-विरोधी गठबंधन बन गया और अब बुधवार, 23 मई को सरकार भी बन जाएगी। ऐसे अवसरवादी गठजोड़ से लोकसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता। लोकसभा चुनाव में मुद्दे और जनता की सोच व्यापक और राष्ट्रीय होती है, लिहाजा ऐसी मौकापरस्ती मोदी को हराने में कारगर साबित नहीं हो सकती। यह हकीकत है कि देश का माहौल फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी का धुर-विरोधी नहीं है और न ही विपक्ष के एकदम पक्ष में स्थितियां हैं। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान जबरदस्त हिंसा हुई, आगजनी की गई, बैलेट जला दिए गए, वाहन फूंक दिए गए, यानी लोकतंत्र की हत्या की गई, लेकिन फिर भी भाजपा दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस चौथे स्थान पर। ऐसे राज्यों में गठबंधन की गांठें सामने आ सकती हैं कि कांग्रेस वाम मोर्चे के साथ जुड़ेगी या तृणमूल कांग्रेस के साथ…! एक पक्ष तो विरोध में रहेगा ही। ऐसा ही आंध्रप्रदेश में संभव हो सकता है। तमिलनाडु में द्रमुक तो 2014 में भी कांग्रेस के साथ ही थी, लेकिन दोनों बुरी तरह पराजित हुए। दूसरी तरफ अन्नाद्रमुक वाले धड़े आपस में मिल रहे हैं और भाजपा कुछ अन्य दलों को साथ लेकर अंततः अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन करने की फिराक में है। यानी विपक्ष का महागठबंधन इतना आसान नहीं है। हालांकि इसकी परीक्षा इस साल के अंत में मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में ही हो जाएगी। इन राज्यों में भाजपा सत्तारूढ़ है और कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है। कोई तीसरा, ताकतवर दल मौजूद नहीं है। ये राज्य ही तय कर देंगे कि प्रधानमंत्री मोदी कितने अपराजेय हैं या उन्हें किस हद तक हराया जा सकता है।

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