प्रार्थना में शक्ति

By: May 26th, 2018 12:05 am

श्रीश्री रविशंकर

मूर्ख या समझदार अमीर या गरीब हर कोई प्रार्थना कर सकता है। इससे अभिप्राय यह नहीं है कि आप मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं, लेकिन भाव कैसा है इसमें। लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि किसी सफल पुरुष के पीछे महिला होती है। पर मैंने थोड़ा इसमें बदलाव किया है। प्रत्येक सफलता के पीछे दिव्यता होती है जो यह कहती है मैं तुम्हारे पीछे हूं। जब आप प्रार्थना करते हैं या करुणामयी तरीके से दिव्यता को पुकारते हो, तो वह स्वयं आपमें प्रकट होती है। प्रार्थना आपके जीवन को बेहतर बनाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।

जब आप किसी कार्य को कर सकने में स्वयं को सक्षम पाते हो तो आप उसे कीजिए। पर जब आप किसी कार्य को कर सकने में सक्षम नहीं पाते तो उसके लिए प्रार्थना कीजिए। अब आप यह सोचते हैं कि मुश्किल बहुत है, आप उसे संभाल नहीं पा रहे तो प्रार्थना एक चमत्कार के समान कार्य करती है। आप जो भी करो, पर यह जान लो कि अंतिम निर्णय उस परम शक्ति का ही होगा, जिसका आप प्रार्थना द्वारा आह्वान करते हैं। प्रार्थना के लिए आप में किसी खास योग्यता की आवश्यकता भी नहीं होती। प्रार्थना बहुत ही शक्तिशाली होती है। प्रार्थना आत्मा की पुकार है। अतः आप किस से प्रार्थना कर रहे हैं यह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना यह कि क्या आपकी प्रार्थना आपकी आत्मा की गहराई से है या नहीं। हालांकि धर्म द्वारा प्रार्थना को विभिन्न शब्दों में ढाला गया है, अनेक प्रकार के प्रतीकों व अनुष्ठानों द्वारा इसे विभिन्न प्रकार से किया जाता रहा है। प्रार्थना भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर होती है, क्योंकि वास्तव में हमारी भावनाएं ही शब्दों व धर्म को पार कर दिव्यता तक हमारी प्रार्थना पहुंचाती हैं।

स्वयं प्रार्थना में ही बदलाव लाने की असीम शक्ति है। जब आप प्रार्थना करते हैं, तो आपका पूर्ण समग्रता में शामिल होना आवश्यक है। यदि प्रार्थना के समय दिमाग अन्य किसी कार्य में उलझा रहेगा या मग्न रहेगा तो वह प्रार्थना नहीं होगी, बल्कि उसका दिखावा होगा। अतः जब हम दर्द में होते हैं, तो प्रार्थना में हमारी भागीदारी अधिक होती है। इसलिए आमतौर पर दुख के समय ही लोग प्रार्थना पूरी तल्लीनता से करते हैं। आप प्रार्थना तब करते हैं, जब आप स्वयं को आभारी महसूस करते हैं और अपनी प्रार्थना के माध्यम से आप धन्यवाद देते हैं। दूसरी अवस्था वह है जब आप स्वयं को निःसहाय महसूस करते हैं। दोनों ही स्थितियों में आपको अपनी प्रार्थना का उत्तर जरूर मिलेगा। प्रार्थना के लिए पहले मन में भाव होना जरूरी है उसके बाद ही सच्ची प्रार्थना हो सकती है। मन की गहराई से जो आवाज निकलती है, वास्तव में वह ही सच्ची प्रार्थना होती है। प्रार्थना करते समय आप ध्यान की गहराइयों में चले जाते हो, तब आपका मन शून्य हो जाता है। जब बाहरी आडंबरों से आप विचलित नहीं होते, तब ही आप अपने मन में प्रार्थना के भाव जगा सकते हैं। सच्ची प्रार्थना का असर सीधे ईश्वर से आपको जोड़ता है। इसके लिए मन में उस निराकार ईश्वर की अनुभूति होना जरूरी है।

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