भगवान का कोई नाम नहीं होता

By: May 19th, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डॉ. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘भगवान’ पर उनके विचार :

-गतांक से आगे…

हम उसे सतनाम कहकर उसकी निपुणता की पुष्टि करते हैं। वह सत्य है : उसका नाम सत्य है, आश्चर्यजनक भगवान जो कि सत्य है। यह एक भावना है, न कि एक नाम। हम भगवान को महसूस कर सकते हैं, परंतु उसे कोई नाम नहीं दे सकते। जो नाम हम उसे देते हैं, वह उसकी योग्यताएं हैं। वह हमारे दिमाग में रहता है। हम उसे अपनी भावनाओं के जरिए बनाए रखते हैं और उसकी महिमा की प्रशंसा कर हम अवाक व हैरान हो जाते हैं तथा उसे वाहेगुरु सतनाम अर्थात अद्भुत स्वामी यानी संपूर्ण सत्य की संज्ञा देते हैं। वह शक्ति अर्थात सबसे बड़ी शक्ति हमें आश्चर्य में डाल देती है। जब उसे ओउम से प्रतिष्ठित किया जाता है तो यह सार्वभौमिक आवाज होती है जिसका कोई आदि व अंत नहीं होता – यह अनंत है। ओउम उसका प्रतिनिधित्व करता है, परंतु यह उसका नाम नहीं है। ताओइज्म दावा करता है कि जिसे देखा जा सकता है और महसूस किया जा सकता है, वह एक ताओ नहीं है। जिस भगवान को नाम दिया जा सकता है, वह भगवान नहीं है। अपने दिमाग की चेतना में उसे याद रखने के लिए हम उसे कई प्रकार के नाम देते हैं। अपनी सुविधा के लिए हम दावा करते हैं कि नाम व व्यक्ति एक हैं तथा एक चीज हैं। आपमें वह क्या है तथा श्री सिंह कौन है? आपका नाम केवल आपको अलग करने के लिए है। वह व्यक्ति जो आपको नहीं जानता है, वह आपको सरदार जी कहेगा। सरदार जी से मतलब प्रिय श्रीमान से है। शक्ति अर्थात भगवान, जो संसार को चला रहा है, उसका कोई नाम नहीं है। वाहेगुरु अर्थात भगवान गेटवे है तथा सतनाम अर्थात सच्चा नाम इसकी क्वालिटी है। भगवान जीवन है, यह विकास है तथा यही वह सत्य है जिस पर सारा संसार टिका हुआ है। इसे कोई नाम नहीं दिया जा सकता। नाम की अपनी एक सीमित कीमत होती है और सबसे महत्त्वपूर्ण विश्वास है। एक किसान व एक संत एक ही दरवाजे पर मांग रहे थे। संत इस बात को लेकर निराश हो गया कि किसान का कोई गुरु नहीं था। उसने किसान को एक बड़ा गुरु अपनाने की सलाह दी, जो एक बड़ी आत्मा हो, अन्यथा उसके बिना वह एक सामान्य भिखारी ही बना रहेगा। बड़े का अभिधार्थ लेते हुए उसने एक मोटा व बड़े पेट वाला साधु ढूंढ लिया। वह किसान से फिर मिला तथा उसने गुरु से मेडिटेशन सीखने की सलाह दी। किसान ने जब जोर दिया तो गुरु ने उसे नाम देने को हामी भरी, नाम अर्थात भगवान का नाम, एक गोपनीय फार्मूला। एक दिन एक अमीर आदमी को शिष्य बनने के लिए उस साधु के पास आना था। किसान को कमरा साफ करने तथा उसे व्यवस्थित बनाने में व्यस्त रखा गया।  किसान यह सोच रहा था कि गुरु उसको नाम देने वाले हैं। काम खत्म करने के बाद किसान ने गुरु से नाम देने का आग्रह किया। गुरु ने उसे धक्का देते हुए परे हट, परे हट कहा। किसान ने सोचा कि यह मेडिटेशन का एक हिस्सा है। उसने परे-परे शब्द याद रखा और श्री कृष्ण को स्मरण किया। एक दिन किसान के सपने में श्री कृष्ण आए। किसान ने उनसे कहा कि वह कौन हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि वह कृष्ण हैं। किसान ने यह कहते हुए कि उन्हें उनकी जरूरत नहीं है, उन्हें वहां से चले जाने को कहा। एक दिन फिर श्री कृष्ण किसान के सपने में आए। इस बार जब किसान ने पूछा कि वह कौन है, तो उन्होंने जवाब दिया कि वह ‘परे’ हैं। यह सुनकर किसान तुरंत बोला कि हां, मुझे आपकी जरूरत है। वह हर्षित हो गया। हमारी प्रशस्ति के लिए इसे आसान बनाने के लिए वाहेगुरु सत्य है। सत सुहान साडा मन चाओ, यह गुरु गं्रथ साहिब में कहा गया है, जिसका मतलब है सत्यम शिवम सुंदरम-अर्थात जो वेदों में कहा गया है। वाहेगुरु (राम, भगवान, अल्लाह आदि, सभी भगवान के नाम हैं), तथा उसका नाम उस तक पहुंचने का माध्यम है।

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