मोदी सरकार के चार साल

By: May 12th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

पिछले सत्तर साल में राजनीतिज्ञों ने अपने चाल, चरित्र और चेहरे के बल पर आम जनता का विश्वास ही नहीं खोया, बल्कि व्यवस्था के प्रति एक निराशा भी उत्पन्न की। सब एक थैली के चट््टे-बट्टे हैं। यह आम भावना बन गई। नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यों, व्यक्तित्व और परिश्रम से इस धारणा को बदला है। मोदी आम राजनीतिज्ञ से हट कर हैं, जिन पर आम आदमी भरोसा कर सकता है। देश को विश्वास है कि मोदी दिल से ही आम आदमी की भलाई के लिए काम करना चाहते हैं। मोदी की नीतियों से आम आदमी को लाभ हुआ है…

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बने चार साल हो गए हैं। एक साल के बाद 2019 में अगली लोकसभा के लिए चुनाव होने वाले हैं। जाहिर है मोदी सरकार को आम जनता के पास अपना रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत करना होगा, उसी के आधार पर जनता अपना निर्णय देगी, लेकिन शायद विपक्ष को लगता है कि वे अपने बलबूते नरेंद्र मोदी सरकार को अपदस्थ नहीं कर सकते हैं। इसलिए वे आपस में बार-बार मिलने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं। धुर विरोधी राजनीतिक दल, जिनका आपस में कुछ भी साझा नहीं है, वे भी किसी तरह एक मंच पर एकत्रित होने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए सारी दुनिया को क्रांति का पाठ पढ़ाने वाले सीपीएम के लोग किसी भी हालत में सोनिया कांग्रेस से समझौता करना चाहते हैं। उधर, सोनिया कांग्रेस मुस्लिम लीग तक से समझौता करने को आतुर है। विपक्षी पार्टियों की हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी तक हाथ मिला रहे हैं। ममता बनर्जी का मामला जरा टेढ़ा है। वह सभी विपक्षी दलों से आग्रह कर रही हैं कि भाजपा को हराने के लिए आपस में मिल जाओ, लेकिन साथ ही पश्चिम बंगाल में न आने की सख्त ताकीद भी कर देती हैं। विपक्षी दलों के पास नरेंद्र मोदी पर हमला करने के अभी तक कुल मिला कर दो बिंदु बनते- बिगड़ते रहते हैं।

पहला नोटबंदी और दूसरा जीएसटी का। उनका कहना है कि इन दो कामों से देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के बाद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चुनाव हुए, उसमें जनता ने भाजपा को भारी बहुमत से जिताया और शेष सभी विपक्षी दलों को अपमानजनक शिकस्त दी। उसके बाद त्रिपुरा के चुनाव में एक बार फिर आम जनता ने भाजपा को भारी बहुमत से जिता कर, इन दोनों मुद्दों पर अपना निर्णय दे दिया। लेकिन विपक्ष की समस्या कुछ और गहरी है। उसके पास मोदी पर हमला करने के लिए आखिर और कौन सा मुद्दा बचता है, जिसके चलते देश के लोग विपक्ष पर विश्वास कर लें। उनके पास मोदी के चार साल के शासन पर अंगुलियां उठाने के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है। इसलिए सोनिया, कांग्रेस इसी मुद्दे पर अलग-अलग लोगों को मैदान में उतारती रहती हैं। कर्नाटक में उसने मनमोहन सिंह को ही मैदान में उतार दिया। डा. सिंह ने भी कह दिया कि नोटबंदी और जीएसटी से देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है। कांग्रेस को शायद यह आशा थी कि मनमोहन सिंह जाने-माने अर्थशास्त्री हैं। इसलिए लोग कम से कम उनकी बात पर तो विश्वास करेंगे ही। यह ठीक है कि मनमोहन सिंह ख्यातिप्राप्त अर्थशास्त्री हैं, लेकिन उनके अर्थशास्त्र ने तथाकथित विकास का जो रास्ता पकड़ा था, वह विकास की ओर तो नहीं अलबत्ता भ्रष्टाचार के भयानक दलदल में परिवर्तित हो गया। शायद इसलिए किसी ने कहा था कि देश की आर्थिकी इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उसे अर्थशास्त्रियों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। गलती से देश के लोगों ने उसे अर्थशास्त्री के हवाले कर दिया था और उसका परिणाम देश आज तक भुगत रहा है। क्या कारण है कि मीडिया के साथ तालमेल बिठा कर विपक्षी दलों द्वारा नरेंद्र मोदी पर किए जा रहे निरंतर हमलों के बाद भी देश की आम जनता का विश्वास बदस्तूर जमा हुआ है? इसका कारण बहुत ही स्पष्ट है। पिछले सत्तर साल में राजनीतिज्ञों ने अपने चाल, चरित्र और चेहरे के बल पर आम जनता का विश्वास ही नहीं खोया, बल्कि व्यवस्था के प्रति एक निराशा भी उत्पन्न की। सब एक थैली के चट्टे-बट्टे हैं। यह आम भावना बन गई।

नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यों, व्यक्तित्व और परिश्रम से इस धारणा को बदला है। मोदी आम राजनीतिज्ञ से हट कर हैं, जिन पर आम आदमी भरोसा कर सकता है। देश को विश्वास है कि मोदी दिल से ही आम आदमी की भलाई के लिए काम करना चाहते हैं। जहां काम की गति धीमी है, वहां दोष मोदी का नहीं, बल्कि उन सभी का है जो किसी भी तरह हर हालत में मोदी को अपदस्थ करना चाहते हैं। मोदी की नीतियों से आम आदमी को लाभ हुआ है। इससे सरमोंदार दुखी हैं। डिजिटाइजेशन के कारण रिश्वत बहुत हद तक समाप्त हो गई है। जीएसटी के कारणों की मात्रा कम हो गई है।

लेकिन साथ ही बहुत देर तक समझौता भी तो नहीं किया जा सकता है, जिनके दशकों से जमे आसन उखड़े हैं, वे तो चिल्लाएंगे ही और चिल्ला भी रहे हैं। उनका चिल्लाना ही बताता है कि चोट सही जगह लगी है। जो चिल्ला रहे हैं, उन्हीं के साथ सोनिया कांग्रेस के पुराने रिश्ते हैं। इसलिए उन्हें उनकी पार्टी देश के लोगों के लिए नहीं, बल्कि इन्हीं स्वार्थी लोगों के लिए है, जो डिजिटाइजेशन का नाम सुन कर कांपते हैं। यही पारदर्शिता कांग्रेस, सीपीएम जैसे लोगों के लिए बहुत परेशान करने वाली है। ये दल जानते हैं कि एक बार मोदी दिल्ली में जम गए, उसके बाद उन्हें उखाड़ना मुश्किल होता जाएगा। इसलिए वे उन्हें उखाड़ने के लिए हर हरबा इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन मोदी की असली ताकत उनका जनता से सीधा संवाद है। यह संवाद ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा कारगार हो रहा है। उनकी नजर में देश मोदी पर अभी भी विश्वास कर सकता है। मोदी की ताकत का स्रोत उनका जनता के साथ सीधा संपर्क और उनका विश्वास है। यही लोकतंत्र की असली ताकत है।

ई-मेलःkuldeepagnihotri@gmail.com

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