युवाओं के मानस में मोदी

By: May 7th, 2018 12:05 am

कर्नाटक में बंगलुरू और मंगलुरू दो खास शहर हैं। आधुनिक हैं, शिक्षा का केंद्र हैं, बंगलुरू को तो भारत की ‘सिलिकान वैली’ कहा जाता है। मंगलुरू में पढ़ने वाले युवा विद्यार्थी हैं, लिहाजा इस शहर को ‘अतिरिक्त नौजवान’ करार दिया जाता है। इन शहरों में एक मुंडेर पर डाक्टरी, इंजीनियरिंग, आईआईटी और प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले छात्र बैठे थे और एक टीवी पत्रकार उनसे संवाद कर रहा था। छात्रों में लड़के-लड़कियां दोनों ही थे। हमने उस बातचीत को गंभीरता से सुना और हैरान भी हुए। दरअसल ऐसी बातचीत प्रधानमंत्री मोदी के प्रति देश के नौजवानों का मानसिक रुझान स्पष्ट करती है। जरूरी नहीं है कि चुनाव उसी सोच के आधार पर ही हों, लेकिन आकलन का एक आधार तो बनता है। कर्नाटक के औसतन छात्र ने विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को वोट देने की बात कही। उन छात्रों ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मोदी और भाजपा के पक्ष में वोट दिए थे। अब प्रधानमंत्री मोदी के चौतरफा विरोध और विपक्ष की लामबंदी की कोशिशों के बावजूद छात्रों का भरोसा मोदी सरकार में है। हालांकि उच्च स्तरीय शिक्षा के बावजूद इन दो शहरों में रोजगार के पर्याप्त आयाम नहीं हैं, लिहाजा छात्रों ने पढ़ाई के बाद विदेश में नौकरी करने की मजबूरी बयां की, लेकिन उनका ठोस भरोसा यह है कि जब तक मोदी सरकार रहेगी, भ्रष्टाचार समाप्त होता रहेगा, विकास होता रहेगा या उसकी कोशिशें जारी रहेंगी, मोदी सरकार में अंततः भविष्य उज्ज्वल होगा, आश्वासन आज पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन एक दिन सभी वायदे साकार होंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी रात-दिन काम करते रहते हैं। उनकी अपनी अपेक्षाएं और उम्मीदें नहीं हैं। देश को अंततः एक सक्रिय प्रधानमंत्री मिला है, उसे कोसने के बजाय समर्थन देना चाहिए। दूसरी ओर, कर्नाटक की अधेड़ उम्र की एक खास जमात-मुस्लिम, आदिवासी-कांग्रेस और खासकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को वोट देने की बात कर रही है। बहरहाल जनादेश 15 मई को सार्वजनिक होगा, लेकिन उसके 10 दिन पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस को ‘पीपीपी पार्टी’ (पंजाब, पुडुचेरी, परिवार पार्टी) बनने की भविष्यवाणी की है, तो इस आकलन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हालांकि कर्नाटक चुनाव में भ्रष्टाचार कोई गंभीर मुद्दा नहीं बन पाया है, लेकिन प्रधानमंत्री का आरोप है कि कांग्रेस ने कर्नाटक में लूट और वसूली का माफिया-तंत्र स्थापित कर रखा है और उसी के जरिए दाना-पानी दिल्ली तक जाता रहा है, लिहाजा कर्नाटक का चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए जरूरी है, ताकि खाने-पीने का बंदोबस्त बना रहे। उधर कांग्रेस ने भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार येदियुरप्पा के खिलाफ 23 आपराधिक मामलों के आरोप बार-बार लगाए हैं और 11 अन्य शीर्ष नेताओं के नाम गिनाए हैं, जिन पर आपराधिक केस के कलंक चस्पां हैं। हैरानी है कि ये आरोप चुनावी मुद्दा ही नहीं बन पाए हैं। मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान ‘टाइगर’ थे, ‘महान’ थे या ‘आतंकवादी, बर्बर शासक’ थे, बहस इस मुद्दे पर जारी है। पाकिस्तान के अखबार भी इस पर विश्लेषण छाप रहे हैं। 1799 तक के एक शासक की प्रासंगिकता आज क्या है, कांग्रेस या भाजपा जवाब देने की स्थिति में ही नहीं हैं। दोनों दलों के घोषणा-पत्र पर बात करना जरूरी नहीं है। रोजगार, दलित-उत्पीड़न, किसानों की आत्महत्या कर्नाटक के संवेदनशील मुद्दे हैं। कन्नड़ लोग जानते हैं कि यह कांग्रेस सरकारों की विरासत है। यही बुनियादी कारण है कि आज का युवा मोदी सरकार में अब भी भरोसा जताए है, हालांकि रोजगार के मुद्दे पर केंद्र सरकार तुलनात्मक दृष्टि से नाकाम रही है। बंगलुरू और मंगलुरू में युवाओं के साथ-साथ कुछ पेशेवर और सेवानिवृत्त बुजुर्गों ने भी ‘परिवर्तन’ की बात करते हुए, भाजपा को वोट देने का मन बयां किया है। ये दो शहर ही कर्नाटक का जनादेश तय नहीं कर सकते, लेकिन एक रुझान सामने आता है। इनके अलावा, जो सर्वेक्षण किए गए हैं उनका औसत यह दर्शाता है कि किसी भी दल को बहुमत मिलने के आसार नहीं हैं। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सकती है। जनता दल-एस के समर्थन से सरकार बन सकती है, लिहाजा प्रधानमंत्री दोनों दलों की ‘सांठगांठ’ की बात कहने लगे हैं। चूंकि खुफिया और अन्य कई स्रोतों से प्रधानमंत्री को सूचनाएं मिलती रहती हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री के किसी भी बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यदि दो शहरों के युवाओं के समर्थन को ‘रुझान’ माना जाए, तो जनादेश चौंका भी सकता है। शायद ऐसे ही जन-समर्थन को देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 15 के स्थान पर 21 रैलियां कर्नाटक में करना तय किया है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी फरवरी माह से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। ऐसे में कर्नाटक का जनादेश दिलचस्प रहेगा, क्योंकि यहीं से व्याख्याएं शुरू होंगी कि भारत ‘कांग्रेसमुक्त’ होगा अथवा नहीं!

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