युवा पीढ़ी की बिगड़ती चाल और पुलिस

By: May 19th, 2018 12:08 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

तेजी से उभरते कस्बों एवं शहरों में पुलिस की मौजूदगी न के बराबर ही दिखाई देती है, ऊपर से पुलिस गश्त के भी अपर्याप्त प्रबंध हैं। जरूरत इस बात की है कि ज्यादा से ज्यादा पुलिस अफसर और अन्य कर्मचारी वर्दी में सुसज्जित होकर आम जनता के बीच नजर आएं, ताकि असामाजिक तत्त्वों में भय का माहौल व्याप्त हो…

अभी पिछले दिनों पालमपुर के निकट हुए गैंग रेप के आलोक में यह समझना जरूरी है कि रोजाना बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं अपने घरों से निकलकर स्कूल-कालेज में पहुंचते हैं और इनमें से कई जोडि़यां आशिकी फरमाने के लिए निकटवर्ती निर्जन जंगलों का रुख कर लेती हैं। जहां पहले से ही आवारागर्द, नशेड़ी, उद्दंड और दिमाग से पैदल लुच्चे युवाओं की जुंडलियां इस ताक में रहती हैं कि कैसे किसी को अपनी शरारत, छेड़खानी और हवस का शिकार बनाया जाए, ऐसे में माता-पिता एवं स्कूल-कालेज प्रबंधन की भूमिका अहम हो जाती है कि वे किशोरावस्था से युवावस्था की दहलीज पर कदम धर रही अपनी कमसिन एवं कम जागरूक युवा पीढ़ी को शिक्षित करें, ताकि वे भटकने से बचें और पारिवारिक बदनामी का पर्याय न बनें। अपनी ऊर्जा वास्तविक उद्देश्य अर्थात अपने पठन-पाठन एवं शिक्षण में नियोजित करें। यह सर्वविदित तथ्य है कि आज बच्चों के अभिभावक बैंकों से कर्ज उठाकर उन्हें ट्यूशन, कोचिंग, उच्च शिक्षा हेतु कालेज की फीस इत्यादि भरने के बोझ तले कराह रहे हैं। ऊपर से मकान, कार इत्यादि के अलावा सामाजिक जिम्मेदारियों और बच्चों की शादियों के बोझ ने अभिभावकों की कमर ही जैसे तोड़कर रख दी है। ऐसे में बच्चों का नशे, अपराध के रास्ते पर अग्रसर होना, अभिभावकों के लिए दुख का कारण बना हुआ है। बच्चों का अपने संस्कारों को भूल कर जघन्य अपराधों की ओर बढ़ना अभिभावकों के साथ-साथ देश के भविष्य के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है।

युवा पीढ़ी अपने अभिभावकों की गाढ़ी खून-पसीने की कमाई पर मौज-मस्ती को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझ बैठी है और वे कई बार अपनी मांगें पूरी न होने की स्थिति में अपने माता-पिता से बदतमीजी पर भी उतर आते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि कई बार मांगें पूरी न होने पर आत्महत्या जैसी धमकियां देकर बातें मनवाने तक बात पहुंच जाती है। नैतिक शिक्षा के पुरोधा देश में बढ़ती अनैतिकता एक बेहद गंभीर एवं चिंतनीय मसला बन चुकी है। हमारी पाठ्यपुस्तकें नैतिक ज्ञान के अनमोल संदेशों से परिपूर्ण हैं। इन्हीं ज्ञान की बातों को शिक्षकों को गंभीरता से विद्यार्थियों के दिलो-दिमाग में उतारने के प्रयास करने होंगे। इंटरनेट, मोबाइल क्रांति के सुपरिणामों एवं दुष्परिणामों से तो हम सभी भली-भांति परिचित हैं। ऊपर से हमारी युवा पीढ़ी का व्हाट्सऐप, फेसबुक, यूट्यूब एवं अन्य गतिविधियों में बेतरह उलझे रहना जहां बच्चों को चिड़चिड़ा बना रहा है और उनके दिमागी संतुलन को अस्थिर बना रहा है, वहीं परिवारों में अशांति का पर्याय भी बन चुका है। आज की युवा पीढ़ी एवं बच्चों को समझना होगा कि उनके सबसे बड़े शुभचिंतक उनके माता-पिताजी एवं गुरुजन हैं, लेकिन युवाओं की टोलियां मस्ती के आलम में कुछ समझने के लिए तैयार नहीं होती हैं। युवा पीढ़ी एवं बच्चों को यह भी समझना होगा कि हम ऊल-जुलूल पश्चिमी परिधान पहनकर आधुनिक होने का स्वांग मात्र कर सकते हैं, लेकिन हमारे संस्कार भारतीय जीवनशैली की ही हिमायत भरते हैं। कानून एवं व्यवस्था के मोर्चे पर भारत में पुलिस के प्रदर्शन और कार्यप्रणाली को लेकर एनजीओ ‘कामन काज’ और ‘सेंटर फार द स्टडी आफ डिवेलपिंग सोसाइयटीज’ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल एवं हरियाणा के लोगों में पुलिस की कार्यप्रणाली से संतुष्टि का स्तर 71 प्रतिशत बताया गया है। हिमाचल प्रदेश पुलिस प्रमुख एसआर मरड़ी ने इस सर्वे की रिपोर्ट पर अपनी खुशी जाहिर की है, हालांकि उन्होंने रेप जैसी बढ़ती घटनाओं से इनकार भी नहीं किया है। पिछले 2 सालों में हिमाचल जैसे शांत प्रदेश में हत्याएं, बलात्कार जैसी घटनाओं में वृद्धि और उनकी जांच-पड़ताल में पुलिस की विफलताएं भी उजागर हुई हैं। ऐसा भी नहीं है कि पुलिस विभाग में अफसरों और निचले क्रम के ओहदेदारों के पदों में कहीं कोई कमी है। फिर भी तेजी से उभरते कस्बों एवं शहरों में पुलिस की मौजूदगी न के बराबर ही दिखाई देती है, ऊपर से पुलिस गश्त के भी अपर्याप्त प्रबंध हैं। जरूरत इस बात की है कि ज्यादा से ज्यादा पुलिस अफसर और अन्य कर्मचारी वर्दी में सुसज्जित होकर आम जनता के बीच नजर आएं, ताकि असामाजिक तत्त्वों में भय का माहौल व्याप्त हो। स्कूल-कालेज खुलने-बंद होने के समय भी उन इलाकों में पर्याप्त हथियारबंद पुलिस कर्मचारी खड़े होने चाहिए, तो शायद आवारा तत्त्वों पर अंकुश लगे। इसके अतिरिक्त सभी पुलिस थानों में गश्त के लिए जीप-कार और मोटरसाइकिल इत्यादि की अधिकतम व्यवस्था सरकार उपलब्ध करवाए, ताकि दुर्गम एवं पहाड़ी क्षेत्रों तक पुलिस गश्त को यकीनी बनाया जा सके। थानों में भी सिविल पुलिस की संख्या में तत्काल बढ़ोतरी होनी चाहिए।

ये वे उपाय हैं जिन्हें लागू कर समाज में कोढ़ बन चुके असामाजिक एवं अराजक गुंडा तत्त्वों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि फील्ड में कार्रवाई हो और जिसे आम जनता देखे, समझे और परखे। नई युवा पीढ़ी उद्दंडता एवं अनुशासनहीनता भरे आचरण से बचे, इसके लिए अभिभावकों को अपने बच्चों से समय-समय पर जरूरी संवाद करते रहना चाहिए तथा उन्हें खानदान, पारिवारिक मान-मर्यादा की श्रेष्ठता और अपराध, नशे जैसी बुराइयों के बारे में जागरूक करना चाहिए। वहीं शिक्षक समाज को भी विद्यार्थियों को कुसंगति और अमर्यादित आचरण से बचने तथा संस्कारयुक्त व्यवहार करने की सीख देते रहने की आवश्यकता है।

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