राज्य में खेलों की जिला प्रतियोगिताएं क्यों नहीं?

By: May 11th, 2018 12:08 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

हिमाचल प्रदेश में अधिकतर खेल संघ अपनी जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता केवल कागजों में ही करवा कर उस मामूली से अनुदान को जरूर प्राप्त कर लेते हैं। फुटबाल, एथलेटिक में कई जिलों में तो आधी-अधूरी जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं की खबर अखबारों में जरूर मिल जाती है…

खेलों में प्रतिभा की खोज करके जिला स्तर पर अधिकतर खिलाडि़यों को खेल मैदान में खेल प्रतियोगिता के लिए लाना, हर खेल संघ का दायित्व है। ‘राज्य खेल परिषद’ जहां राज्य खेल प्रतियोगिता करवाने के लिए हर राज्य खेल संघ को अनुदान देती है, ठीक उसी तरह जिला खेल संघों को भी ‘जिला खेल परिषद’ जिला स्तर की खेल प्रतियोगिताओं को आयोजित करवाने के लिए अनुदान देती है। यह अनुदान राशि बहुत कम है, मगर खेल संघ अपने रसूख से धन इकट्ठा कर अपनी जिला प्रतियोगिता करवा सकते हैं। खेल प्रतिभा खोज कार्यक्रम हमारे देश में सरकारी सहायता के बावजूद अभी तक अपने शैशवकाल से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। सत्तर के दशक में ‘राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान पटियाला’ के माध्यम से अंडर-16 वर्ष आयु वर्ग के खिलाडि़यों के लिए जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक ग्रामीण खेलों का आयोजन करवाया जाता रहा है, बाद में राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान का भारतीय खेल प्राधिकरण में विलय हो जाने के बाद पिछले वर्ष तक यह कार्य साई के माध्यम से चलता रहा। पहले इस अभियान का नाम ‘राजीव गांधी खेल अभियान’ और बाद में ‘राष्ट्रीय क्रीड़ा अभियान’ के नाम से इसे चलाया गया। ‘पायका’ के नाम से भी इस खेल अभियान को पहचान मिली है।

पिछले वर्ष से यह खेल अभियान अब बंद कर दिया है और खेल संघों पर जोर डाला जा रहा है कि वह अपनी जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं को सुचारू रूप से आयोजित करे। खेल में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए जहां आगे चल रहे अच्छे खेल प्रशिक्षकों तथा सुविधाओं की जरूरत होती है, वहीं पर अच्छी स्पीड वाले प्रतिभावान खिलाडि़यों को  कम उम्र में पहचानने की बहुत अधिक आवश्यकता है। किसी भी खेल में उत्कृष्टता पाने वाले खिलाडि़यों में उस खेल की अस्सी प्रतिशत से अधिक स्पीड क्वालिटी वाली प्रतिभा कुदरती रूप से पहले ही होती है। जरूरत है उन प्रतिभावान खिलाड़ी किशोर व किशोरियों को सही उम्र में पहचानने की। इस सबके लिए जिला खेल संघों को अपने खंड स्तर के क्लबों के माध्यम से हर किशोर व किशोरी तक पहुंच कर उनके वैटरी टेस्ट करवाने चाहिए। इसके लिए स्कूली स्तर पर ही खिलाडि़यों की पहचान करके, उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया जा सकता है।

इस सबके लिए पंचायत स्तर तक पहुंचकर हर विद्यालय तक खेल संघों को अपनी पहुंच बनानी होगी, क्योंकि आजकल हर बच्चा शिक्षा प्राप्त करने विद्यालय जा रहा है, तो विद्यालय में ही हर खिलाड़ी विद्यार्थी को पहचान करने के लिए उसका वैटरी टेस्ट जरूरी हो जाता है। जिन विद्यार्थियों में खिलाड़ी बनने के लिए उचित स्पीड है, उन्हें ही खेल प्रशिक्षण के लिए प्रेरित करें, शेष विद्यार्थियों को फिटनेस के लिए हल्का व्यायाम प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से प्रतिदिन जारी रखना चाहिए, ताकि प्रदेश व देश के लिए भविष्य के फिट नागरिक मिल सकें। पर्याप्त स्पीड वाले खिलाड़ी विद्यार्थियों को उनके वजन व ऊंचाई के हिसाब से जिस खेल में वे अपना अधिकतर समय दे सकते हैं, उन्हें उस खेल में डाल देने के लिए खेल संघों को अपने प्रशिक्षकों को पूरा वर्ष हर विद्यालय तक पहुंचाना होगा।

जब इन किशोर विद्यार्थी खिलाडि़यों का खेल विशेष में चयन हो जाता है, तो फिर उस खेल की जिला स्तरीय प्रतियोगिता हर वर्ष हर आयु वर्ग में अनिवार्य रूप से आयोजित करवानी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में अधिकतर खेल संघ अपनी जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिता केवल कागजों में ही करवा कर उस मामूली से अनुदान को जरूर प्राप्त कर लेते हैं। फुटबाल, एथलेटिक में कई जिलों में तो आधी-अधूरी जिला स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं की खबर अखबारों में जरूर मिल जाती है। अधिकतर खेल संघों की जिला स्तरीय प्रतियोगिता होती ही नहीं है। जिला टीम का गठन केवल चुनिंदा विद्यालयों या खेल प्रशिक्षण केंद्रों के खिलाडि़यों को इकट्ठा कर उनका ट्रायल कर दिया जाता है और जिला की टीम तैयार हो जाती है। कई बार तो केवल एक ही प्रशिक्षण केंद्र के खिलाडि़यों की टीम ही जिला की टीम बन जाती है। जब तक जिला स्तर पर खेल संघ मजबूत नहीं होगा, तब तक देश में खेलों का उत्थान विश्व स्तर पर बहुत कठिन नजर आता है। हर राष्ट्रीय महासंघ आज अपने राज्य खेल संघ को जिला स्तर पर अधिकतर खिलाडि़यों तक पहुंचने की वकालत तो कर रहा है, मगर उसके लिए कोई ठोस योजना अभी तक किसी के पास नहीं है।

अगर खेलों में प्रगति करनी है तो खेल संघ, राज्य खेल विभाग तथा राज्य शिक्षा विभाग को आपस में तालमेल बिठाना होगा, क्योंकि खेलों के प्रचार व प्रसार के लिए जिम्मेदार खेल संघ है। वहीं खेलों के लिए नियम व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करवाता है। शिक्षा विभाग के विद्यालयों में आज हर बच्चा स्कूल जा रहा है तथा खेल विभाग के पास धन, प्रशिक्षक व अन्य खेल सुविधाएं हैं, इसलिए इन तीनों का आपस में तालमेल और भी जरूरी हो जाता है। राज्य में अगर खेलों को ऊपर उठाना है तो जिला स्तर पर अधिक से अधिक खिलाडि़यों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी, उसके लिए खेल संघों, शिक्षा व खेल विभाग को अपना-अपना फर्ज ईमानदारी से निभाना होगा। तभी हजारों, करोड़ों में से चुनिंदा रेस के घोड़ों की पहचान समय पर हो पाएगी। आशा की जानी चाहिए कि खेल के विकास के लिए जिम्मेवार संस्थाएं कुछ पहल करेंगी।

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