राज्य में खेल मैदानों की बर्बादी क्यों?
भूपिंदर सिंह
लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं
धर्मशाला का पुलिस मैदान खेल विभाग व पुलिस के बीच होने के कारण यहां पर नया तो कुछ हो नहीं पाया, उल्टा साथ लगती बास्केट फील्ड पर पुलिस के आला अधिकारी की रिहायशी कोठी जरूर बन गई है। पहाड़ पर एक तो मैदान बड़ी कठिनाई से बन पाते हैं और जो हैं, वहां पर भवन खड़ा कर देना कहां तक उचित है…
हिमाचल प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र को देखते हुए यहां पर खेल मैदान बनाना बेहद कठिन कार्य है। पहाड़ी क्षेत्र में जगह समतल करने के लिए कई बार लाखों तो छोड़ो, करोड़ों रुपए तक खर्च हो जाते हैं। प्राचीन राजघरानों ने अपनी-अपनी रियासतों के मुख्यालय पर बड़े मैदान बनाए थे, जहां लोग मेले तथा अन्य अवसरों पर इकट्ठे होते थे। राजाआें की सेनाएं भी इन मैदानों पर परेड आदि कर लिया करती थी। महाराजा संसार चंद ने सुजानपुर तथा जयसिंहपुर में दो बड़े मैदान बनवाए थे। सुजानपुर मैदान में जहां राजा की सेना सैन्य अभ्यास करती थी, वहीं पर होली उत्सव भी पूरा इलाका बड़ी धूमधाम से मनाता था। इसी तरह अन्य राजाओं ने मंडी में पड्डल, सुंदरनगर में महाराजा लक्ष्मण सेन महाविद्यालय वाला मैदान, कुल्लू में ढालपुर, चंबा में चौगान, नाहन में भी शहर के बीच चौगान, सोलन का डोडो मैदान बनवाए थे। इस तरह लगभग हर रियासत के राजाओं ने मेलों तथा त्योहारों के लिए मैदान बनवाए थे। आजादी के बाद इन्हीं मैदानों पर खेल संघों तथा शिक्षा संस्थानों की खेल प्रतियोगिताएं बड़ी देर तक आयोजित होती रहीं।
उसके बाद खेल, शिक्षा व पुलिस विभाग ने राज्य में सोलन, चंबा, हमीरपुर, बिलासपुर, सुंदरनगर, धर्मशाला, ऊना, पंडोह, डरोह, सकोह, पालमपुर, सिरमौर व शिमला जिला तथा उपमंडल स्तर पर और कई जगह बड़े मैदानों का विकास किया, मगर अधिकतर ये खेल मैदान आज भी अधूरे हैं और यहां पर भी अतिक्रमण शुरू हो गया है। धर्मशाला का पुलिस मैदान आजादी के बाद विकसित हुआ, मगर खेल विभाग व पुलिस के बीच होने के कारण यहां पर नया तो कुछ हो नहीं पाया, उल्टा साथ लगती बास्केट फील्ड पर पुलिस के आला अधिकारी की रिहायशी कोठी जरूर बन गई है। पहाड़ पर एक तो मैदान बड़ी कठिनाई से बन पाते हैं और जो हैं, वहां पर भवन खड़ा कर देना कहां तक उचित है? धर्मशाला के लोगों ने इस पर आपत्ति भी की, मगर यह बास्केटबाल मैदान खत्म ही हो गया। अब साहब की कोठी के सामने मैदान में शोर न हो, यह फरमान भी जारी होगा और इतने बड़े मैदान में खेल गतिविधियां धीरे-धीरे बंद हो जाएंगी। हमीरपुर में राजकीय महाविद्यालय परिसर में बन रहा इंडोर स्टेडियम पिछले छह वर्षों से छत पड़ने का इंतजार कर रहा है।
उस पर करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। पहले पांच वर्ष कांग्रेस और अब भाजपा सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है। क्या शिक्षा व खेल विभाग को इसकी खबर है? ऊना में बना हाकी का एस्ट्रोटर्फ बनते-बनते ही विवादों में आ गया था। यहां भी खेल गतिविधियां जैसी होनी चाहिए थी, वैसी नहीं हो पा रही हैं। ऊना खेल छात्रावास में हाकी खेल क्यों नहीं है? कब ऊना में हाकी के प्रशिक्षण को गति देने के लिए लड़के व लड़कियों के खेल छात्रावास यहां शुरू किए जाएंगे? मंडी तथा ऊना में बने तरनतालों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। सुंदरनगर में कई दशक पूर्व बहुतकनीकी संस्थान का मैदान समतल किया गया, मगर आज तक वह खेल के अनुकूल नहीं बन पाया है।
पुलिस विभाग आज तक राज्य में अपना एक भी ढंग का मैदान विकसित नहीं कर पाया है। ठाकुर रामलाल ने बिलासपुर के लुहणू में बड़े खेल परिसर का ढांचा लगभग पूरा करवा लिया है, मगर बाद में उसे खेल योग्य बनने में और कितने दशक सरकारें लगाएंगी? शिमला का घटासनी में बन रहा खेल परिसर अभी तक फाइलों से बाहर नहीं आ पाया है। प्रेम कुमार धूमल ने अपने कार्यकाल में राज्य के लिए विश्व स्तरीय प्ले फील्ड बनवाई है, मगर उसका रखरखाव ठीक नहीं हो पा रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने राज्य में सड़कों के मलबे से सरकारी भूमि समतल कर मैदान बनाने की बात की है। यह एक अच्छी सोच है। देखते हैं राज्य के कितने संस्थान अपने यहां खेल मैदान विकसित करवा पाते हैं। राज्य में खेल मैदानों की बेहद कमी है व अधिक चौड़ी हो रही सड़कों से निकले मलबे से अगर मैदान विभिन्न संस्थानों के पास बनते हैं, तो भविष्य में इससे प्रदेश के किशोर व युवा नशे व आलस से दूर रहकर भविष्य के अच्छे नागरिक बनने के साथ-साथ खेल प्रतिभा वाले खिलाड़ी बन कर सामने आएंगे। पूरे उत्तर भारत में गर्मियों में अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रखने के लिए कोई स्थान नहीं है।
राष्ट्रीय टीमें भी इन दिनों करोड़ों रुपए खर्च कर विदेश में अभ्यास करती हैं। अभी शिलारू तथा धर्मशाला में भारोत्तोलक तथा एथलेटिक्स के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर लगे हैं। सैकड़ों दूसरे राज्यों के खिलाड़ी हिमाचल में क्वार्टर लेकर गर्मियों में अपना प्रशिक्षण कार्यक्रम जारी रखे हुए हैं। खेलों को इस तरह पर्यटन से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अच्छा होगा कि खेल विभाग अपने तैयार अंतरराष्ट्रीय प्ले फील्ड तथा खेल मैदानों के ऊपर ध्यान देकर यहां और अधिक सुविधा विकसित कर इनकी उचित देखरेख करे। इससे जहां अपने राज्य के खिलाडि़यों को सुविधा होगी, वहीं पर गर्मियों में अप्रैल से लेकर अगस्त तक पांच महीने खेल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और खेल पर्यटन के माध्यम से लोगों को रोजगार भी मिलेगा। राज्य सरकार खेल पर्यटन पर जरूर विचार करके जल्द ही योजनाओं को रूप देकर कार्य शुरू करे। इससे खेल मैदानों का रखरखाव भी होगा और प्रदेश को आय भी होगी। ऐसा करके ही खेल गतिविधियां सुदृढ़ होंगी।
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