लघु कथाओं की बहुरंगी सरिता

By: May 20th, 2018 12:05 am

लघुकथा को समर्पित अर्धवार्षिक पत्रिका ‘दृष्टि’ का नया अंक बाजार में आ चुका है। इस बार पत्रिका का नया अंक महिला लघु कथाकार अंक के रूप में सामने आया है। इस पत्रिका के संपादक अशोक जैन हैं जिन्होंने अपने संपादकीय में लघु कथा के स्वरूप में आ रहे बदलावों पर चर्चा की है। इस अंक में कांता राय को अतिथि संपादक बनाया गया है। उन्होंने भी लघु कथा के बढ़ते महत्त्व को इंगित किया है। डां शकुंतला किरण की लघु कथाकार लता अग्रवाल से बातचीत में लघु कथा के विविध आयामों पर शिक्षाप्रद चर्चा हुई है। इसके अलावा पत्रिका में विविध आलेख भी प्रकाशित हुए हैं जो लघु कथा का सांगोपांग विवेचन करते हैं। 168 पृष्ठों के इस अंक में विभिन्न लेखकों की 100 लघु कथाएं प्रकाशित की गई हैं। यह अंक एक तरह से लघु कथा की सरिता बन गया है। लघु कथा की इस सरिता में विविध रंग उभरे हैं। अंजलि गुप्ता की लघुकथा निशानियां में यह प्रतिपादित किया गया है कि ऐसी कौनसी निशानी है जिसकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती। अंजुल कंसल की मासूम बंटी में भ्रष्टाचार से अनभिज्ञ एक स्कूली बच्चे की मासूमियत दिखाई गई है। अर्चना मिश्र की टूटते संस्कार में यह यथार्थ प्रतिपादित हुआ है कि लड़की की इज्जत दोनों जांघ की तरह होती है। अर्विना गहलोत की एडजस्टमेंट में हिंदी की व्यथा बताई गई है तथा साथ ही सलाह दी गई है कि भाषाओं को अगर जिंदा रहना है तो सबको समाहित करते चलना है। अल्का चंद्रा की अंग्रेजी भाषा में यह यथार्थ प्रतिपादित हुआ है कि वास्तव में अंग्रेजी की बोलबाला तो हिंदी से भी ज्यादा है। आशा गंगा प्रमोद की खिसियानी बिल्ली में अपने बेटे-बहू से अलग रहने को विवश माता-पिता की दारुण कथा पिरोई गई है। वे आजादी के नाम पर इस दर्द को छिपाने की असफल कोशिश करते हैं। आशा सिंह की स्त्री विमर्श में सार दिया गया है कि अगर स्त्री को ठीक ढंग से पढ़ा अर्थात समझा गया होता तो स्त्री विमर्श पर चर्चा व लेखन का इतना ढोंग न करना पड़ता। इंदु वर्मा की रोटी में निर्धनता व लाचारी दर्शाई गई है। राजेंद्र कौर वंता (स्व.) की स्वाभिमान में एक पढ़े-लिखे रिक्शा चालक की लाचारी सामने आई है जो स्वाभिमानी है, पर उसके भीतर का विलाप किसी न किसी रूप में बाहर आ ही जाता है। वह अपनी लाचारी को स्वाभिमान के नाम पर छिपाने की पूरी कोशिश करता है, किंतु वह इसमें सफल नहीं हो पाता। पत्रिका की अन्य लघुकथाएं भी कोई न कोई महत्त्वपूर्ण सामाजिक संदेश देती हैं। सभी लघुकथाएं किसी न किसी उद्देश्य से लिखी गई हैं, वे व्यर्थ का प्रलाप मात्र नहीं हैं। यह भी इन कथाओं की एक विशेषता है कि सामाजिक उद्देश्य पूरा करने के साथ-साथ ये कथाएं पाठकों का भरपूर मनोरंजन भी करती हैं। सरल भाषा में, लघु आकार में लिखी गई ये लघुकथाएं सरपट अपने लक्ष्य की ओर दौड़ती हैं तथा सामाजिक संदेश के साथ पाठकों पर गहरा प्रभाव छोड़ जाती हैं। अंजलि, अंजुल, अंतरा, अनघा, अनन्या, अनीता, अनुराधा, अपराजिता, अर्चना, अर्विना, अल्का, आकांक्षा, आनंदबाला, आभा, आरती, आशा गंगा, आशा शर्मा, आशा सिंह, इंद्रा, इंदिरा, इंदु गुप्ता, इंदु वर्मा, उपमा शर्मा, उर्मि, उषा यादव, उषा लाल, उषा भदौरिया ऐसी लघु कथाकार हैं जिन्होंने अपनी लेखनी से लघु कथा को समृद्ध किया है। इनके अलावा ऋचा, कमल, कल्पना, कविता, कांता, कीर्ति, कुंकुम, कुसुम, कृष्णलता, कोमल, गुंजन, चंद्रा, चित्रा, जया, ज्योत्सना, नीतू, नीना, नीरज, नेहा, पवित्रा, पुष्पा, पूनम, पूर्णिमा, प्रीति, प्रेरणा, बीना, भूपिंद्र, मंजु, मधु, मालती, मिन्नी, मीरा, मृदुला, मेघा, रंजना, रचना, राजबाला व रूबी की लघु कथाएं भी इस अंक में शामिल की गई हैं जो अपने-अपने ढंग से विविध सामाजिक संदेश देती लगती हैं। इसी तरह रेणु, लता, लाडो, वंदना, वर्षा, वसुधा, विभा, विनीता, शकुंतला, शमीम, शशि, शील, शोभा, श्रुति, संगीता, संतोष, संध्या, सरिता, सरोज, सविता, सारिका, सावित्री, सीमा, सुदर्शन, सुनीता, सुषमा व स्नेह गोस्वामी की रचनाएं पाठकों को आह्लादित करती लगती हैं।

-फीचर डेस्क

पुस्तक समीक्षा

द्यपत्रिका का नाम : सृष्टि

द्यसंपादक : अशोक जैन

द्यअतिथि संपादक : कांता राय

द्यआजीवन सदस्यता शुल्क : 5100 रुपए

द्यप्रकाशक : अशोक जैन

द्वारा अशोक प्रिंटिंग प्रेस, चावड़ी बाजार, दिल्ली

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App