वित्तीय घाटे पर कारगर कदमों की जरूरत

By: May 22nd, 2018 12:10 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

दूसरी समस्या तेल के बढ़ते दामों की है। इससे छुटकारा दिलाने के लिए सरकार पर दबाव पड़ रहा है कि तेल पर वसूली जा रही एक्साइज ड्यूटी में कटौती करे। यदि सरकार ऐसा करती है, तो एक्साइज ड्यूटी की वसूली कम होगी और उसके अनुसार सरकार की आय कम होगी और वित्तीय घाटा और बढ़ेगा। इस समस्या का उपाय यह है कि हमें तेल की खपत को ही कम करना होगा। अपने देश में ऊर्जा के स्रोत सीमित हैं। सॉफ्टवेयर, पर्यटन और काल सेंटर आदि में ऊर्जा की खपत कम होती है। चूंकि हमारे देश में ऊर्जा की उपलब्धि कम है, इसलिए हमारे लिए सेवा क्षेत्र ज्यादा उपयुक्त है…

सरकार की आय से अधिक खर्च को करने के लिए सरकार बाजार से ऋण उठाती है, इस ऋण को वित्तीय घाटा कहा जाता है। विदेशी निवेशक वित्तीय घाटे को अच्छा नहीं मानते हैं। वे मानते हैं कि यदि सरकार अपनी आय से अधिक खर्च कर रही है तो यह गैर जिम्मेदाराना नीतियां दर्शाती है और आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था पर संकट गहरा सकता है। इसलिए जहां वित्तीय घाटा ज्यादा होता है, वहां विदेशी निवेशक आने में हिचकिचाते हैं। घरेलू उद्यमियों के लिए भी वित्तीय घाटा अच्छा नहीं होता है। जैसे ऊपर बताया गया है कि आय से अधिक खर्च को कोषित करने के लिए सरकार बाजार से ऋण उठाती है। सरकार द्वारा ऋण उठाने से बाजार में ब्याज दरों में वृद्धि होती है जैसे-मंडी में आलू की मांग ज्यादा हो जाए, तो आलू के दाम बढ़ जाते हैं। ब्याज दर बढ़ने से उद्यमी के लिए ऋण पर ब्याज अधिक देना पड़ता है और उसके लिए व्यापार करना कठिन हो जाता है। इसलिए सरकार को वित्तीय घाटे को नियंत्रण में रखना चाहिए, लेकिन इस समय सरकार के वित्तीय घाटे पर कई प्रकार के संकट मंडरा रहे हैं। जीएसटी के लागू होने से सरकार की आय में जो सामान्य वृद्धि हो रही थी, उसमें ब्रेक सा लग गया है। जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के समय माह में 93 हजार करोड़ रुपए जीएसटी की वसूली हुई थी। इसके बाद इसमें कुछ गिरावट आई और गत माह अप्रैल 2018 में यह 100 हजार करोड़ की सीमा को पार कर गया है। लगभग एक वर्ष में जीएसटी में केवल सात करोड़ की वृद्धि हुई। यह वृद्धि निराशाजनक ही नहीं, बल्कि संकट का भी द्योतक है।

निराशाजनक इसलिए है कि सामान्य चाल में ही जीएसटी की वसूली में वृद्धि होनी चाहिए, जिस प्रकार बच्चे की लंबाई सहज ही बढ़ती रहती है। जीएसटी का सद्प्रभाव तब देखने को मिलता जब अधिक तेजी से जीएसटी की वसूली में वृद्धि होती, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है जो बताता है कि जीएसटी लागू होने के बाद अब अर्थव्यवस्था सिर्फ अपनी पुरानी चाल पर आई है। जैसे व्यक्ति बीमार होने के बाद पुनः अपनी पुरानी परिस्थिति में आ जाए। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ है। जीएसटी की मुख्य समस्या यह है कि कागजी कार्य में वृद्धि हुई है। बड़े उद्यमियों को इससे कोई संकट नहीं है, चूंकि उनके पास कम्प्यूटर आपरेटरों और चार्टर्ड अकाउंटेंटों की फौज होती है, जो इन कागजी पेंचों से सलट लेती है। छोटे उद्यमियों के लिए यह एक बहुत भारी समस्या है। हाल में गाजियाबाद में एक बाइक और कार के एक क्लच तथा डिक्की की केबल बनाने वाली कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने बताया कि पूर्व में उनकी फैक्टरी के द्वारा बनाई गई केबल ओरिजनल कार एवं बाइक निर्माताओं तथा बाजार के व्यापारियों दोनों को बेचे जाते थे। जीएसटी लागू होने के बाद बाजार के व्यापारियों की मांग शून्यप्राय हो गई है। उनका धंधा पूर्व स्तर पर वापस आ गया है, लेकिन अब मांग केवल ओरिजनल कार एवं बाइक मेन्युफैक्चरों से ही बन रही है। अर्थ हुआ कि जीएसटी के कारण छोटे उद्यम ठप हो गए हैं। अर्थव्यवस्था में केबल का कुल उत्पादन पूर्ववत है, लेकिन छोटे व्यापारी और छोटे उद्यम रोजगार ज्यादा बनाते हैं। बाजार छोटे उद्यमियों से खिसककर बड़े उद्यमियों के हाथ में चले जाने का परिणाम है कि छोटे उद्यमियों द्वारा रोजगार कम बनाए जा रहे हैं। अर्थव्यवस्था में जमीनी मांग सिकुड़ रही है। जमीनी मांग सिकुड़ने से माल की बिक्री कम हो रही है और जीएसटी में सामान्य वृद्धि ही हो रही है। इसलिए सरकार को चाहिए कि जीएसटी के शिकंजे से छोटे व्यापारियों को मुक्त करे और उनके लिए उद्योग करना सरल करे। छोटे उद्यमों के बंद होने से अर्थव्यवस्था में कुल मांग कम होगी और अर्थव्यवस्था की गति नहीं बढ़ेगी। दूसरी समस्या तेल के बढ़ते दामों की है। विश्व बाजार में कच्चे इंधन, तेल के दाम बढ़ रहे हैं। इससे जनता को छुटकारा दिलाने के लिए सरकार पर दबाव पड़ रहा है कि तेल पर वसूली जा रही एक्साइज ड्यूटी में कटौती करे। यदि सरकार ऐसा करती है, तो एक्साइज ड्यूटी की वसूली कम होगी और उसके अनुसार सरकार की आय कम होगी और वित्तीय घाटा और बढ़ेगा। इस समस्या का उपाय यह है कि हमें तेल की खपत को ही कम करना होगा। अपने देश में ऊर्जा के स्रोत सिमित हैं। एल्यूमीनियम, स्टील, कार अथवा पंखे जैसी वस्तुओं के उत्पादन में बिजली तथा ऊर्जा की खपत ज्यादा होती है, जबकि सॉफ्टवेयर, पर्यटन और काल सेंटर आदि में ऊर्जा की खपत कम होती है। चूंकि हमारे देश में ऊर्जा की उपलब्धि कम है, इसलिए हमारे लिए सेवा क्षेत्र ज्यादा उपयुक्त है और मेन्युफैक्चरिंग हमारे लिए संकट का सौदा है। अतः तेल के बढ़ते दुष्प्रभाव से बचने के लिए सरकार को मेन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन देने के स्थान पर सेवा क्षेत्र को प्रोत्साहन देना चाहिए। तब तेल के दाम की वृद्धि का उतना दुष्प्रभाव हमारे ऊपर नहीं पड़ेगा। तीसरा विषय वित्तीय घाटे की गुणवत्ता का है। इतना सही है कि निवेशक वित्तीय घाटे को अच्छा नहीं मानते हैं, लेकिन यह भी सही है कि विशेष प्रकार का वित्तीय घाटा अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी भी होता है। वर्ष 2014-16 में हमारा वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का चार प्रतिशत था और उस समय हमारी ग्रोथ रेट 7.6 फीसदी थी। इसकी तुलना करें तो वर्ष 2017-18 में हमारा वित्तीय घाटा घटकर 3.2 फीसदी हो गया है, लेकिन वित्तीय घाटा घटने से ग्रोथ रेट बढ़ने के स्थान पर ग्रोथ रेट में भी गिरावट आई और वह 7.6 फीसदी से घटकर 6.5 फीसदी हो गई है। अर्थ हुआ कि वित्तीय घाटे पर नियंत्रण मूल रूप से अच्छा होता है, लेकिन किन्ही विशेष परिस्थियों में वित्तीय घाटे के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को लाभ भी हो सकता है। जैसे वर्ष 2014-16 में हो रहा था।

इस रहस्य का खुलासा यह है कि यदि सरकार द्वारा लिए गए ऋण से सरकारी खपत जैसे सरकरी कर्मचारियों को ऊंचे वेतन देना अथवा अधिकारी एवं मंत्रियों की विदेश यात्राएं करना जैसे खर्चों पर किया जाए, तो वित्तीय घाटा अर्थव्यवस्था के ऊपर बोझ बन जाता है। यदि ऋण में ली गई रकम का हाईवे और बिजली सप्लाई करने में निवेश किया जाए, तो वित्तीय घाटा लाभप्रद हो जाता है। उसी प्रकार जैसे उद्यमी द्वारा ऋण लेकर उद्योग लगाना सफल होता है, जैसा ऊपर बताया गया है। इस समय वित्तीय घाटा कम होने के साथ-साथ हमारी ग्रोथ रेट घट रही है। यह इस बात का द्योतक है कि सरकार द्वारा लिए गए ऋण का निवेश न होकर उसकी खपत की जा रही है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को चाहिए कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन में कटौती करे। वर्र्तमान समय गंभीर है। अगर सरकार वित्तीय घाटे को ठीक करने के लिए इन कदमों को नहीं उठाती है, तो आने वाला समय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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