विष्णु पुराण

By: May 19th, 2018 12:05 am

हम भी पृथ्वी का परिणाम जान कर ही प्रजोत्पत्ति में लगेंगे। ऐसा विचार कर वह भी विभिन्न दिशाओं में जाकर हर्यश्वों के समान लौटकर नहीं आए। इसलिए, तभी से भाई की खोज में जाने वाला भाई नाश को प्राप्त हो जाता है और कोई ऐसा न करे यह सिद्धांत निश्चित हुआ…

हर्यश्वेष्वथ नष्टेषु दक्षः प्राचेतसः पुनः।

बैरुण्यामथ पुत्राणां सहस्रमसृजत्प्रभूः।।

विवद्ध यिषवस्ते तु श्वलाश्वा प्रजा पुनः।

पूर्वोक्तं वचन ब्रह्मन्नारदेनैव नोदिताः।।

अन्योऽन्यमूचुस्ते सर्वे सम्यगाह महामुनिः।

भ्रातृणां पदवी चैव गन्तव्या नात्र संशयः।।

ज्ञात्वा प्रणाम पृथ्वाश्च प्रजास्स्रक्ष्यामहे ततः।

तेऽपि तेनैव मार्गेण प्रयाताः सर्वतोमुखम्।

अद्यापि न निवर्त्तते समुद्रेभ्य इवापगा।।

यतः प्रभृति वै भ्राता भ्रातुरन्वेषणे द्विज।

प्रयातो नश्यति तथा तन्य कार्य विजानया।।

ताश्चापि नष्टान विज्ञाय पुत्रान दक्षः प्रजापतिः।

क्रोध चक्रे महाभागो नारद स शशाप च।।

जब हर्यश्व इस प्रकार नहीं लौटे तब दक्ष ने वीरणसुता के गर्भ से एक हजार पुत्र और उत्पन्न किए। उन शक्लाश्यों ने प्रजा वृद्धि की इच्छा की, तब नारदजी ने उनके भी वही बात कही इस पर वे परस्पर मे विचार करने लगे कि नारदजी का कथन सत्य ही तो है, हमें निःसंदेह अपने भाइयों का अनुसरण करना चाहिए। हम भी पृथ्वी का परिणाम जानकर ही प्रजोत्पत्ति में लगेंगे। ऐसा विचार कर वह भी विभिन्न दिशाओं में जाकर हर्यश्वों के समान लौटकर नहीं आए। इसलिए, तभी से भाई की खोज में जाने वाला भाई नाश को प्राप्त हो जाता है और कोई ऐसा न करे, यह सिद्धांत निश्चित हुआ। जब दक्ष प्रजापति को यह ज्ञान हुआ कि उनके पुत्र भी नारदजी के उपदेश से चले गए, तब उन्होंने अत्यंत क्रोध पूर्वक नारदजी को श्राप दे डाला।

सर्गकामस्ततः विद्वांत मैत्रेय प्रजापतिः।

षष्टि दक्षाऽसृजत्कन्यां वैरुण्यामितिः नः श्रुतम।

ददौ स दश धर्माय कश्यपाय त्रयोदश।

सप्तविशति सोमाय चतस्रोऽरिष्टनेमिने।

द्वे चैव बहुपुत्राय विदुषे तासां नामानि में श्रुणु।

अरुंधती वसुर्यामलम्वा भानुरुत्वतो।

संकल्पा च मुहुर्ता च साध्याविश्वा च ताद्दशो।

धर्मपत्न्यो दश त्वेतास्तास्वपत्यानि में श्रुणु।

विश्वेदवास्तु विश्वायाः साध्याः साध्यान जायते।

मरुत्वत्यां मरुत्वन्तो वसोश्च वसवः स्मृता।

भानोस्तु भानवाः पुत्राः मुहुर्ताया मुहर्तजाः।

लम्बायाश्चैव घोषोऽयं नागवीथी तु यामिजा।

ृपृथ्वीविषय सर्वमरुन्थेत्यामजायत्।

संकल्पायास्तु सर्वात्मा जज्ञे संकल्प एव हि।

हे मैत्रेयजी! सुना जाता है कि फिर दक्ष प्रजापति ने साठ कन्याएं उत्पन्न कीं, उनमें दस धर्म को, तेरह कश्यप को, सत्ताईस चंद्रमा को और चार अरिष्टनेमि को व्याह दीं। तथा दो कन्याओं का विवाह बहुपुत्र से, दो का अङ्गिरा से और दो का कुशाश्व के साथ हुआ तब उनके नाम कहता हूं। अरुंधी वसु, यामि, लाम्बा, भानु मरुत्वती, संकल्पा, मुहुर्त्ता, साध्या और विश्वा, यह दसों धर्म की भार्या हुईं। अब इनके पुत्रों के विषयों में सुनो विश्वास से विश्वेदेवा और सौम्या से साध्यगण हुए। मरुत्वती से मरुत्वान वसु से वसुगुण, भानु से भानु और मुहुर्ता से मुहुर्ताभिमानी देवता उत्पन्न हुए। लाम्बा से घोष, यामि नागवीभि, अरुंधती से पृथ्वी विषयक सभी जीव यथा संकल्पा से सब प्राणियों में रहने वाले संकल्प की उत्पत्ति हुई।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App