वीआईपी तस्वीर में हिमाचल

By: May 21st, 2018 12:05 am

यूं तो वीआईपी पर्यटन के नजारों में हिमाचल की ख्याति का उल्लेख हर साल गर्मियों में होता है, फिर भी तस्वीर नहीं बदलती तो कहीं मेहमाननवाजी मौन होकर ही रह जाती है। यह दीगर है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने मनाली के प्रीणी को घर माना, तो रोहतांग सुरंग ने कबायली आंखें  खोल दीं। आवभगत का हिमाचली दस्तूर पुनः राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का इंतजार कर रहा है, तो इस बहाने हिमाचली मेन्यू भी मुस्कराने लगा है। खान-पान की रिवायत में गुच्छी, सेपू वड़ी, मदरा से सिड्डू तक की महक में हिमाचली रसोई का अदब दिखाई दे रहा है। ऐसे मौकों पर प्रदेश की ब्रांडिंग में व्यंजन से उपहारों तक जो कुछ प्रस्तुत होता है, उसके साथ हम अपने गौरव की गाथा जोड़ सकते हैं। शिमला में राष्ट्रपति आगमन की औपचारिकता के साथ जो तहजीब पुख्ता होती है, वहां हिमाचल अपनी व्याख्या कर सकता है। इसलिए वीआईपी पर्यटन के कक्ष में केवल स्वागती फूल ही नहीं महक रहे होते, बल्कि इस अनुभव की परंपरा को तसदीक करने का सामर्थ्य भी है। यानी जो अति विशिष्ट अतिथि बनकर आते हैं, वे अपने प्रभाव से हिमाचल की तस्वीर में कुछ रंग तो भर ही सकते हैं। अनुभव का पैकेज होना कोई इन पहाड़ों से पूछे कि जहां हर जर्रा एक जगत है। एक अकल्पनीय अनुभूति से मुलाकात होती है, मगर ये यादें भी यायावर बनकर लौट जाती हैं। गर्मियों के कालीन पर वीआईपी कदम हिमाचल तो पहुंच जाते हैं, लेकिन हकीकत के दरमियान कोई नहीं आता। ऐसे में हिमाचल इसे महज पर्यटन के खाके में भी सजा कर देखे, तो सैलानियों की आमद में इजाफा होगा। लोग आज भी शिमला को छूते हुए स्व. बेनजीर भुट्टो के एहसास से भर जाते हैं, तो मनाली के उन दरख्तों के चक्कर काट लेते हैं, जहां कभी बालीवुड के सितारों की फिल्म शूटिंग यादें छोड़ गई होती है। हर साल ग्रीष्मकालीन कैलेंडर में विभिन्न धार्मिक गुरुओं के आयोजन में जब ‘प्रवचन’ ही पर्यटन की मंजिल बन जाते हैं, तो बाहरी संगत में हिमाचल अपने निशान ढूंढ लेता है। गाहे-बगाहे हिमाचली पर्यटन के कई ब्रांड नजर आते हैं, तो वीआईपी आगमन भी एक तरह से यही कार्य कर रहा है। आश्चर्य यह कि  हिमाचल ने वीआईपी का अर्थ केवल आतिथ्य में ही समाहित रखा, जबकि इस शृंगार की भूमिका में प्रदेश की वकालत भी चाहिए। मसलन पंजाब- हरियाणा व कई अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री सैर-सपाटे के लिए हिमाचल आते हैं, लेकिन वर्षों से लंबित आपसी मसलों पर बात आगे नहीं बढ़ती। बीबीएन रेल परियोजना में कुंडली मारकर बैठे हरियाणा के मुख्यमंत्री को हिमाचली आबोहवा तो पसंद आती है, लेकिन समझौते के रास्ते वर्षों से तंग हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री मनाली प्रवास के दौरान बर्फीले पानी का आनंद ले रहे हैं, लेकिन हिमाचल की हिस्सेदारी से बेखबर बने हुए हैं। आज भी शानन विद्युत परियोजना की मिलकीयत में पंजाब का बीआईपी दर्जा बरकरार है, तो हमारा पानी कब तक यूं ही बहकर मेहमाननवाजी करता रहेगा। इस बीच एक ऐसा वीआईपी भी है, जो पिछले आधे दशक से हिमाचल को घर मानता है और उसकी वजह से विश्व भर में हिमाचल का नाम होता है। महामहिम दलाईलामा ने हिमाचल को नाम और मुकाम दिया, लेकिन इस पर्यटन के संबोधन को प्रदेश समझ ही नहीं पाया। कहना न होगा कि दलाईलामा और अटल बिहारी वाजपेयी ने हिमाचल को अपने वीआईपी होने का हक दिया और इन नामों की  छांव में पर्यटन का सीना हमेशा चौड़ा होता गया। अन्यथा कसौली, डलहौजी, मनाली, शिमला व प्रदेश  के अन्य भागों में बसे  वीआईपी  केवल साल में एक बार घर की कुंडी खोलने के अलावा हिमाचल से कोई  सरोकार नहीं रखते। क्रिकेट के स्तंभ रहे सचिन तेंदुलकर ने अपनी धर्मशाला यात्रा का जिक्र जिस तरह यू-ट्य्ूब में किया है, उससे यह वीआईपी बंदा पर्यटकों को जोर-शोर से आमंत्रित कर गया। बहरहाल राष्ट्रपति आगमन की तमाम औपचारिकताओं के बीच खाने की मेज पर पकवानों की सूची में हिमाचली व्यंजनों का जिक्र अगर वीआईपी हो जाता है, तो किसी ढाबे, रेस्तरां या रेहड़ी पर बिकता विशुद्ध हिमाचली खाना पर्यटन की सबसे बड़ी संभावना बन सकता है।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App