संपूर्ण जगत के  संचालक विष्णु

By: May 26th, 2018 12:05 am

यह संपूर्ण विश्व भगवान श्रीविष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी। वे अपने चार हाथों में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं। जो भी किरीट और कुंडलों से विभूषित, पीतांबर धारी, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, सुंदर कमलों के समान नेत्र वाले भगवान श्रीविष्णु का ध्यान करता है, वह भव बंधन से मुक्त हो जाता है। भक्तिपूर्वक देव विष्णु की एक बार प्रदक्षिणा करने वाला व्यक्ति सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल प्राप्त करके बैकुंठ धाम में निवास करता है। जिसने कभी भक्ति भाव से भगवान लक्ष्मीपति को नमस्कार किया है, उसने अनायास ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप फल प्राप्त कर लिया। जो स्तोत्र और जप के द्वारा मधुसूदन की उनके समक्ष होकर स्तुति करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में पूजित होता है। जो भगवान के मंदिर में शंख, तुरही आदि बाजों के शब्द से युक्त गाना-बजाना और नाटक करता है, वह मनुष्य विष्णुधाम को प्राप्त होता है। विशेषतः पर्व के समय उक्त उत्सव करने से मनुष्य कामरूप होकर संपूर्ण कामनाओं को प्राप्त होता है। पद्मपुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान श्रीविष्णु ही परमार्थ तत्त्व हैं। वे ही ब्रह्मा और शिव सहित सृष्टि के आदि कारण हैं। वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युत, कृष्ण, शाश्वत, शिव, ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। संपूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भगवान श्रीविष्णु ही नारायण कहे जाते हैं। कल्प के प्रारंभ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही संपूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अंत में सबका संहार करते हैं। इसीलिए भगवान श्रीविष्णु का नाम हरि है। मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, हयग्रीव तथा श्रीराम-कृष्णादि भगवान श्रीविष्णु के ही अवतार हैं। भगवान श्रीविष्णु अत्यंत दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करुणा वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है। जो भक्त भगवान श्रीविष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनका दर्शन, वंदन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप विनष्ट हो जाते हैं। यद्यपि भगवान श्रीविष्णु के अनंत गुण हैं, तथापि उनमें भक्त वत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं। धु्रव, प्रह्लाद, अजामिल, द्रौपदी, गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ। भक्त वत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करने में यदि विलंब हो जाए, तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिए क्षमा याचना करते हैं। जो मनुष्य भगवान विष्णु के निम्नांकित पचपन नामों का जप करता है, वह मंत्रजप आदि के फल का भागी होता है तथा तीर्थों में पूजन आदि के अक्षय पुण्य को प्राप्त करता है। पुष्कर में पंुडरीक्ष, गया में गदाधर, चित्रकूट में राघव, प्रभास में दैत्यसूदन, हस्तिनापुर में जयंत, वर्धमान में वाराह, काश्मीर में चक्रपाणि, कुब्जाभ में जनार्दन, मथुरा में केशवदेव, कुब्जाम्रक में हृषीकेश, गंगाद्वार में जटाधर, शालिग्राम में महायोग, गोवर्धनगिरि पर हरि, पिंडारक में चतुर्बाहु, शंखोद्धार में शंखी, कुरुक्षेत्र में वामन, यमुना में त्रिविक्रम, शोणतीर्थ में विश्वेश्वर, पूर्वसागर में कपिल, महासागर में विष्णु, गंगासागर संगम में वनमाल, किष्किंधा में रैवतकदेव, काशीतट में महायोग, विरजा में रिपुंजय, विशाखयूप में अजित, नेपाल में लोकभावन, द्वारका में कृष्ण, मंदराचल में मधुसूदन, लोकाकुल में रिपुहर, शालिग्राम में हरि का स्मरण करें। पुरुषवट में पुरुष, विमलतीर्थ में जगत्प्रभु, सैंधवारण्य में अनंत, दंडकारण्य में शांर्गधारी, उत्पलवर्तक में शौरि, नर्मदा में श्रीपति, नंदा में जलशायी, सिंधुसागर में गोपीश्वर, माहंेद्र तीर्थ में अच्युत, सह्याद्रि पर देवेश्वर, विंध्यगिरि पर सर्वपापहारी और हृदय में आत्मा विराजमान हैं। ये अपने नाम का जप करने वाले साधकों को भोग तथा मोक्ष देने वाले हैं। प्रत्येक वटवृक्ष पर कुबेर का, प्रत्येक चैराहे पर शिव का, प्रत्येक पर्वत पर राम का तथा सर्वत्र मधुसूदन का स्मरण करें। धरती और आकाश में नर का वसिष्ठती में गरुडध्वज का तथा सर्वत्र भगवान वासुदेव का स्मरण करने वाला पुरुष भोग एवं मोक्ष का भागी होता है।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App