संसार चंद ने 1786 में किया कांगड़ा किले पर अधिकार

By: May 30th, 2018 12:05 am

मुगल किलेदार सैफ अली खां ने रानी नागर देवी से सहायता के लिए प्रार्थना की। रानी ने तुरंत आठ सौ घुड़सवार और आठ हजार पैदल सैनिक लेकर सहायता पहुंचाई और उसके सैनिकों ने कांगड़ा रियासत में लूट-खसोट मचाई, परंतु कांगड़ा किला बाद में सिखों के हाथ आया और फिर सन् 1786 ई. में उस पर संसार चंद का अधिकार हो गया…

राजा महान चंद (1778 ई.) : देवी चंद का विवाह कटोच राजकुमारी नागर देवी से हुआ था। उसके 1772 ई. में एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम महान चद रखा गया। जब देवी चंद की 1778ई. में मुत्यु हो गई तो उस समय महान चंद्र की आयु छह वर्ष की थी। राज्य क कार्यभार उसकी मां नागर देवी ने वजीर रामू की सहायता से चलाया। रामू वजीर का संबंध दरोल परिवार से था। रानी नागर देवी एक योग्य महिला थी। जब राजा देवी चंद की मृत्यु हो गई और महान चंद बालक था, तो क्यांेथल ने कहलूर की प्रभुसत्ता को मानने से इनकार कर दिय। रानी ने मियां शक्ति चंद को क्योंथल पर चढ़ाई करने के लिए भेजा और उसने वहां के राजा पृथ्वी सेन के हरा दिया। सन् 1781ई. सिख सरदार जय सिंह तथा महाराजा संसार चंद ने कांगड़ा किला के मुगल किलेदार सैफ अली खां ने रानी नागर देवी से सहायता के लिए प्रार्थना की। रानी ने तुरंत आठ सौ घुड़सवार और आठ हजार पैदल सैनिक लेकर सहायता पहुंचाई और उसके सैनिकों ने कांगड़ा रियासत में लूट-खसोट मचाई, परंतु कांगड़ा किला बाद में सिखों के हाथ आया और फिर सन् 1786 ई. में उस पर संसार चंद का अधिकार होे गया।

रामू वजीर की मृत्यु 1785 ई. में हो गई। इसके पश्चात रानी तथा राज्य के अन्य अधिकारियांे में कुछ मतभेद उत्पन्न हो गए। रानी ने बैरागी राम को जो पहले मंडी में वजीर था, अपना वजीर बनाया। उसने कुछ अधिकारियों को बंदी बना दिया। उधर, कांगड़ा और हिंदूर के राजा राम सिंह ने भी साथ लगते क्षेत्रों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया। सन् 1793 ई. में बारह ठकुराइयों के राणाओं और ठाकुरों ने भी कहलूर की प्रभुसत्ता मानने से इनकार कर दिया। इससे स्थिति और भी बिगड़ गई। लोग वजीर बैरागी राम के विरुद्ध हो गए और उसे मार दिया। इसके पश्चात रानी ने राजा देवी चंद के छोटे भाई जोरावर सिंह (चंद) को वजीर नियुक्त किया। रानी ने जब अपने आपको कांगड़ा तथा हिंदूर का मुकाबला करने में असमर्थ पाया, तो उसने अपने वजीर मियां जोरावर सिंह को सिरमौर के राजा धर्म प्रकाश के पास सहायता के लिए भेजा और इसके बदले में 50 हजार रुपए देना स्वीकार किया। धर्मप्रकाश सेना लेकर बिलासपुर पहुंचा और वहां से कहलूर की सेना को साथ लेकर आगे बढ़ा। बरोटा गांव,  जो वर्तमान में लदरौर-डंगार सड़क पर स्थित है, में लड़ाई हुई, जिसमें राजा धर्म प्रकाश मारा गया और सिरमौर तथा बिलासपुर की सेनाओं की पराजय हुई। कांगड़ा के राजा ने बहुत सा क्षेत्र जीत कर झंझयार पहाड़ी पर एक किला बनवाया और उसका नाम छातीपुर अर्थात कहलूर की छाती पर बना हुए दुर्ग रखा। इसके कुछ समय पश्चात रानी की भी मृत्यु हो गई। इससे महान चंद्र को बहुत आघात पहुंचा। उसने नालागढ़ के विरुद्ध सरदार गुरदीत सिंह और देस्सा सिंह, जो उन दिनों आनंदपुर में थे, सहायता मांगी। लड़ाई में सरदार मारे गए और उनकी हार हुई। हिंदूर के राजा राम सिंह ने उसके बाद बिलासपुर पर आक्रमण किया।

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