सर्वेक्षणों ने गिराई विश्वसनीयता

By: May 17th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

जब चुनाव परिणाम किसी एक दल को बहुमत नहीं देते तो या गठबंधन अस्तित्व में आकर सत्ता पर काबिज हो जाता है और फिर गठबंधन में शामिल दलों की आपसी खींचतान के किस्से रोज सामने आते हैं। दूसरी स्थिति में बहुमत के करीब पहुंचा दल सत्तासीन होने के बाद अन्य दलों के विधायकों को तोड़ कर उनका समर्थन ले लेता है। दोनों स्थितियों में जनता, जनहित कहीं पीछे छूट जाते हैं और राजनीतिक दल ‘डब्ल्यू डब्ल्यू एफ’ के बजाय ‘डब्ल्यू डब्ल्यू ई’ में बदल जाते हैं तथा गवर्नेंस के बजाय मनोरंजन शुरू हो जाता है…

जब हम छोटे थे तो अकसर एक चुटकुला सुना करते थे। एक गर्भवती महिला अपने पारिवारिक ज्योतिषी के पास गई और उनसे पूछा कि उन्हें जो बच्चा होगा, वह लड़का होगा या लड़की? ज्योतिषी महोदय ने एक कागज पर कुछ लिखा, उसकी पुडि़या बनाई और उस महिला को दे दी तथा यह निर्देश भी दिया कि ‘डिलीवरी’ से पहले उसे न खोला जाए। बच्चे को जन्म देने के बाद जब उस महिला ने कागज की वह पुडि़या खोली तो उस पर लिखा हुआ था – ‘लड़का न लड़की’। इसे पढ़कर वह महिला ठठाकर हंस पड़ी। ज्योतिषी महोदय ने बड़ी चतुराई दिखाई थी, क्योंकि इसे तीन तरीकों से पढ़ा जा सकता था। यानी-बेटा होने की स्थिति में ‘लड़का, न लड़की’। बेटी होने की स्थिति में-‘लड़का न, लड़की’ और मृत बच्चा पैदा होने या पैदा होते ही बच्चे की मृत्यु हो जाने की स्थिति में ‘लड़का न लड़की’! उस भविष्यवाणी के पीछे कोई विद्वता नहीं थी, कोई ज्ञान नहीं था, कोई होमवर्क नहीं था, सिर्फ चालबाजी थी। अमरीका के कनेक्टिकट राज्य के शहर स्टैमफोर्ड में मुख्यालय वाली कंपनी ‘डब्ल्यू डब्ल्यू ई’ कभी ‘डब्ल्यू डब्ल्यू एफ’ यानी वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन के नाम से जानी जाती थी। इसमें बड़े-बड़े पहलवान हिस्सा लेते हैं और इसके दर्शकों की बड़ी संख्या इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। लोकप्रिय होने के बावजूद यह ‘कुश्ती’ नहीं है, क्योंकि यहां हर काम पहले से तय होता है, पहलवानों की हार-जीत पहले से तय होती है, उनके पैंतरे पहले से तय होते हैं। इन कुश्तियों की स्क्रिप्ट पहले से तैयार होती है, इसलिए यह ऐतराज किया गया कि यह मनोरंजन तो है पर ‘कुश्ती’ नहीं है, इसलिए कंपनी अपने आपको ‘रेसलिंग फेडरेशन’ नहीं कह सकती। परिणाम यह हुआ कि कंपनी को अपना नाम बदलकर ‘डब्ल्यू डब्ल्यू ई’ यानी ‘रेसलिंग एंटरटेनमेंट’ करना पड़ा। यानी यह कुश्ती के रूप में मनोरंजन मात्र है, यह कुश्ती की नकल है, कुश्ती नहीं है।

कर्नाटक में 12 मई को 224 सीटों वाली विधानसभा के लिए 222 सीटों पर चुनाव हुआ था। चुनाव परिणाम आ चुके हैं। भाजपा 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को 78 सीटें देकर सत्ता से बाहर कर दिया है और देवेगौड़ा के सेक्युलर जनता दल को 38 सीटें देकर प्रासंगिक बनाए रखा है। अन्य को 2 सीटें मिली हैं और दो सीटों पर चुनाव नहीं हुआ था। कहा जाता है कि चुनाव सर्वेक्षण करने वाली कंपनी सीफोर ने 1 मार्च से 25 मार्च के बीच 154 विधानसभा क्षेत्रों के 22 हजार से भी ज्यादा मतदाताओं से संपर्क करके यह नतीजा निकाला था कि कांग्रेस को 46 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है और वह 120 सीटें जीत सकती है। सीएचएस नाम की एक और कंपनी ने हालांकि कांग्रेस को 77 से 78 के बीच सीटें मिलने की भविष्यवाणा की थी, लेकिन इसने भाजपा के लिए भी 73 से 76 सीटों तथा जेडीएस के लिए 64 से 66 सीटों की भविष्यवाणी की थी।

टीवी-9 सी-वोटर ने कांग्रेस को 102, भाजपा को 96 और जेडीएस को 25 सीटें मिलने की उम्मीद जताई थी। कर्नाटक में भाजपा को सत्तासीन होने से रोकने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन देने की घोषणा की है। इस प्रकार कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 116 विधायकों का समर्थन है जो साधारण बहुमत से कुछ ज्यादा है, जबकि भाजपा के पास खुद अपने ही 104 विधायक हैं और सत्ता में आ जाने के बाद उसके लिए अन्य दलों से दर्जन भर लोगों को तोड़ लेना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी। भाजपा और जेडीएस, दोनों ने राज्यपाल से गुजारिश की है कि उन्हें राज्य की बागडोर सौंपी जाए। इसमें जेडीएस का तर्क तो सीधा सा है कि उसके पास बहुमत है, जबकि भाजपा का कहना है कि वह अकेला सबसे बड़ा दल है और जनता ने जेडीएस को सत्ता में आने के पक्ष में मत नहीं दिया है, बल्कि जनता ने भाजपा की नीतियों में विश्वास जताया है। जब चुनाव परिणाम किसी एक दल को बहुमत नहीं देते तो या तो कोई गठबंधन अस्तित्व में आता है जो सत्ता पर काबिज हो जाता है और फिर गठबंधन में शामिल दलों की आपसी खींचतान के किस्से हर रोज सामने आते हैं। दूसरी स्थिति में बहुमत के करीब पहुंचा दल सत्तासीन होने के बाद अन्य दलों के विधायकों को तोड़ कर उनका समर्थन ले लेता है। दोनों ही स्थितियों में राज्य, जनता, जनहित कहीं बहुत पीछे छूट जाते हैं और राजनीतिक दल ‘डब्ल्यू डब्ल्यू एफ’ के बजाय ‘डब्ल्यू डब्ल्यू ई’ में बदल जाते हैं तथा गवर्नेंस के बजाय मनोरंजन शुरू हो जाता है। राजनीतिक दल क्या करेंगे? राज्यपाल की भूमिका क्या होगी? कौन सा दल सत्ता में आएगा और सत्ता में टिका रहेगा और अगले पांच साल उसकी कारगुजारी क्या होगी, यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन चुनाव से पहले के जनमत संग्रह और चुनाव के बाद के एग्जिट पोल दोनों ही चुटकुले में वर्णित ज्योतिषी जैसे ही साबित हुए हैं। ऐसा लगता ही नहीं है कि इन सर्वेक्षणों में किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का प्रयोग हुआ, या सर्वेक्षण गंभीरता से किया गया। एक चैनल ने तो दो अलग-अलग सर्वेक्षण रिपोर्ट देकर सबको हैरत में डाल दिया और पूरी तरह से ‘लड़का न लड़की’ के चुटकुले को चरितार्थ कर दिया। मतदान हो जाने के बाद तो एक राजनेता ने कहा भी था कि परिणाम आने के बीच के दो दिनों के समय में एग्जिट पोल के माध्यम से जनता का मनोरंजन होगा। ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल की विश्वसनीयता अगर ऐसी है, तो मीडिया का इन सर्वेक्षणों को महत्त्व देना खुद मीडिया को मजाक बना रहा है। मीडिया घरानों द्वारा इन सर्वेक्षणों को महत्त्व देना खुद एक प्रश्नचिन्ह बन गया है। इससे मीडिया की विश्वसनीयता कुछ और गिरी है। जनता और राजनीतिक नेताओं को उपदेश देने वाला मीडिया और नैतिकता को लेकर राजनीतिज्ञों की आलोचना करने वाला मीडिया जब खुद सवालों के घेरे में है तो वह किसी और से क्या सवाल करेगा? सर्वेक्षण एजेंसियों के लिए तो यह आत्ममंथन का समय है ही, पर उनसे भी ज्यादा यह मीडिया के लिए आत्ममंथन की घड़ी है, क्योंकि सर्वेक्षण एजेंसियां तो सिर्फ माहौल भांपने का जरिया मात्र हैं जबकि मीडिया, जनता की आवाज है। इसमें कोई भी मिलावट न देश के लिए हितकर है, न ही जनता के लिए।

यह सच है कि जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही जनता के प्रति है, क्योंकि जनता उन्हें चुनती है। उनमें विश्वास प्रकट करती है और जनता के विश्वास की रक्षा करना जनप्रतिनिधियों का काम है। मीडिया इन जनप्रतिनिधियों पर नजर रखता है, उनकी कारगुजारियों का लेखा-जोखा जनता को देता है और जनप्रतिनिधियों की गलतियों पर सवाल उठाता है, उन्हें चेताता है। मीडिया सही अर्थों में जनता की आवाज है। यह शुद्ध जल की तरह है, जिसका कोई आकार या कोई रंग नहीं होता, जिसमें कोई मिलावट नहीं होती। यानी मीडिया का कोई पूर्वाग्रह नहीं होता। इसीलिए मैं कहता हूं कि प्रक्रियाहीन सर्वेक्षण, किसी को खुश करने के लिए किया गया सर्वेक्षण, सर्वेक्षण के नाम पर मजाक है और यह मीडिया की रिपोर्टिंग का हिस्सा नहीं होना चाहिए।

ईमेलःindiatotal.features@gmail. com

 

 

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