सामाजिक परिदृश्य में चेतावनी

By: May 8th, 2018 12:05 am

बात पुनः राजनीति के आसपास खड़े अपराध की होगी, जो हिमाचल को अपमानित कर रही है। कसौली से चंद किलोमीटर दूर फिर बंदूक गूंजी और विधायक के भाई के खून से लथपथ इबारत में अपराध ने अपना मकसद लिख दिया। जमीनी झगड़े के दायरे में इसकी वजह तलाशी जा सकती है, लेकिन हिमाचल में सियासी घोड़े अब जमीन की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं, तो धारा-118 की निशानदेही में अपराध का ही विकास हो चुका है। बद्दी के मजमून अगर अपराधी बन रहे हैं, तो सामाजिक परिदृश्य की चेतावनी में सारी हस्ती बिगड़ रही है। बीबीएन क्षेत्र में विधायक के भाई का कत्ल होना सामान्य कल्पना की नंगी तस्वीर न होकर कानून व्यवस्था की काली छाया सरीखी है। कसौली हादसे ने केवल कानून को नहीं ललकारा, बल्कि पूरे प्रदेश की काया में अपने शूल उतार दिए। पर्यटक सीजन की संभावना को लील रहीं आपराधिक घटनाओं के विवरण में अगर हिमाचली छवि गुम हो गई, तो किस वादे पर अपनी अमानत को बचाएंगे। सियासत को अपराध का कितना मलाल है, यह पक्ष-विपक्ष में होने की सूरत में बदलता है और तू तू-मैं मैं की वजह में दिखाई देता है। पर्यटन के मौसम में अवैध होटलों की मिट्टी अगर लड़ रही है, तो सत्ता और विपक्ष के बयानों में अर्थ ढूंढना मुश्किल है। धर्मशाला-मकलोडगंज में करीब डेढ़ सौ अवैध होटलों पर सरकारी पक्ष की साफगोई समझ में आती है, लेकिन क्षेत्र के विधायक एवं काबीना मंत्री का नगर निगम के पन्नों में अपराध खोजना मसले का हल नहीं। काफी सुनते हैं कि हिमाचल के सीमांत क्षेत्रों में अवैध खनन के जरिए मोटी कमाई हो रही है, लेकिन भिड़ंत केवल सियासत के पहरों में होती है। पड़ोसी राज्यों की सीमा पर नशे की खेप उतारने वालों में दोषी को दंड तक पहुंचाने के बजाय, राजनीति की थू थू गलियां क्यों मुकाबिल रहती हैं। ऊना के स्वां की सारी रेत या नूरपुर की खड्डों ने अपना दामन खो दिया, तो यह काम किसी ईमानदार केंचुए का नहीं, बल्कि राजनेताओं के प्रश्रय में पलते हौसले ने ही किया है। पिछली सरकार बोलती रही कि सस्ती दवाइयां बिकेंगी, लेकिन जेनेरिक औषधियों के स्टोर खाली रहे और कमोबेश अब भी बद्दी की नकली दवाइयों की खेप हिमाचल को शर्मिंदा कर रही है। कूहलों और खड्ड-नालों को अतिक्रमण के बाज निगल रहे हैं, तो सियासी पंछी निर्दोष तो नहीं हो सकते हैं। हम आंखों पर पट्टी बांध कर फैसले करेंगे, तो शायद ही हिमाचल में अपराध नजर आएगा, लेकिन सत्य बहुत कड़वा हो चुका है। एक बहुत बड़ा तंत्र विकसित हो चुका है और जहां समाज भी पूरी तरह पथ भ्रष्ट दिखाई देता है। यह तंत्र सत्ता के अमल में लोगों की ऐसी फेहरिस्त है, जो हर सरकार में अपना रुतबा रखती है। इसी रुतबे को हम अपराध का दूसरा पहलू मानेंगे और कसौली प्रकरण से यह स्पष्ट होता है। भले ही शांता कुमार ने अवैध होटलों का ठीकरा पूर्व की विपक्षी सरकारों पर फोड़ने का प्रयास किया हो या किशन कपूर ने परोक्ष में धर्मशाला नगर निगम के पदाधिकारी पर संपत्ति हड़पने का आरोप दागा हो, लेकिन यह अर्द्धसत्य है। पूर्ण सत्य के लिए अवैध घोषित हुए होटलों के निर्माण का विवरण, दाखिल दस्तावेजों की तिथि तथा राजनीतिक घनिष्टता का उल्लेख चाहिए। नगर निकायों, सरकारी ठेकों या संपत्तियों में कौन रचे-बसे हैं, इसका हिसाब हो तो पता चल सकता है कि हर शिखर पर सियासत के कितने अक्स हैं। इसीलिए जब कोटखाई प्रकरण हुआ, तो लगा कि तत्कालीन सरकार ने कुछ छिपाया-कुछ बचाया, लेकिन सीबीआई जांच में सियासत का पल्लू आज भी फंसा है। आज भी बलात्कार के मामले अभिशप्त कर रहे हैं, तो अपराध की कोख में अपमानित समाज के अंश दिखाई दे रहे हैं। लावारिस लाशें-अधजली लाशें और कहीं किसी नेता के भाई का कत्ल, हिमाचली व्यवहार की सादगी तो नहीं। दो दोस्तों के बीच खूंखार होती परिस्थिति जवाली के कत्लखाने का बारूद सूंघने लगी, तो सामाजिक सड़ौध में राजनीति अगर हथियार बनकर हमारी तकदीर लिखेगी, तो इनसाफ की फितरत भी बदल जाएगी।

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