सुप्रीम कोर्ट के जजों की स्वतंत्र नियुक्ति

By: May 8th, 2018 12:10 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

वर्तमान दूसरे शंकराचार्य, देश की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन अथवा सबसे बड़ा व्यापारिक संगठन-इन सस्थाओं के अध्यक्षों का कालेजियम बनाया जा सकता है। इस कालेजियम को जिम्मेदारी दी जाए कि वह सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करे। ऐसा करने से सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति वर्तमान जजों के हाथ में नहीं रहेगी और हमें इनके भ्रष्टाचार एवं परिजनों की नियुक्ति से मुक्ति मिल जाएगी। न ही इनकी नियुक्ति सरकार के हाथ में रहेगी, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता का हृस हो…

हमारे संविधान में व्यवस्था है कि कार्यपालिका यानी आईएएस अधिकारी, विधायिका यानी सांसद एवं न्यायपालिका यानी सुप्रीम कोर्ट के जजों के द्वारा एक-दूसरे पर नियंत्रण रखा जाएगा। ये लोग शासन तंत्र के तीन अलग-अलग स्तंभ हैं, जो कि परस्पर घर्षण एवं सहयोग के माध्यम से देश को सही दिशा देते हैं। इन तीन स्तंभों में इससमय सुप्रीम कोर्ट विवादों के बीच में पड़ा हुआ है। चार वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट जजों ने आरोप लगाया है कि मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा का सरकार के साथ घनिष्ठ संबंध हो गया है। उन्होंने अपनी स्वतंत्रता को त्याग दिया है। उनके ऊपर दूसरे वकीलों ने भ्रष्टाचार के भी आरोप लगाए हैं। समस्या की जड़ें सुप्रीम कोर्ट की अतिस्वतंत्रता में हैं। वर्तमान जजों द्वारा भविष्य जजों की नियुक्ति की जाती है और यह जजों का घरेलू मामला सरीखा हो गया है।

इसमें न तो पारदर्शिता है, न बाहर से प्रश्न पूछने की संभावना है, न ही इनके भ्रष्टाचार को रोकने की कोई व्यवस्था है। इसलिए तमाम वकीलों का कहना है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के 90 प्रतिशत जज पूर्व जजों अथवा सीनियर अधिवक्ता के परिजनों से ही नियुक्त किए जा रहे हैं, क्योंकि यह एक घरेलू मामला सा हो गया है। दूसरी तरफ  सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता का लाभ यह रहा है कि सरकार के गलत कदमों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़े निर्णय लिए हैं जैसे-2जी स्पेक्ट्रम तथा कोल ब्लाक के आबंटन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया यद्यपि सरकार इन कदमों के पूरे समर्थन मे खड़ी थी। सरकार को इन निर्णयों को रद्द करने से भारी लाभ हुआ है।

अतः न्यायपालिका की स्वायत्तता के दो पक्ष सामने आते हैं। स्वायत्तता के कारण एक तरफ  भ्रष्टाचार और परिवारवाद फैला हुआ है, तो दूसरी तरफ  स्वायत्तता के कारण ही सरकार के गलत कदमों के ऊपर रोक लगाने की भी सुप्रीम कोर्ट ने हिम्मत की है। स्वायत्तता का दुरुपयोग न हो, इसलिए सरकार ने नेशनल जुडीशिअल एकाउंटेबिलिटी कानून बनाया था। इस कानून में व्यवस्था थी कि हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के जजों नियुक्ति एक कालेजियम द्वारा की जाएगी, जिसमें न्यायपालिका, सरकार एवं स्वतंत्र नागरिक तीनों के सदस्य होंगे। इस प्रकार न्यायपालिका की निरकुंश स्वायत्तता पर रोक लग जाएगी। वर्तमान की तरह जज मनचाहे परिजनों को नियुक्त नहीं कर सकेंगे। लेकिन इसी कालेजियम का दूसरा परिणाम होगा कि ऐसे जजों की नियुक्ति की जाने की संभावना ज्यादा होगी, जो सरकार के प्रति नरम होंगे, एवं 2जी स्पेक्ट्रम तथा कोल ब्लाक के आबंटन जैसे कठोर निर्णय देने की सुप्रीम कोर्ट की क्षमता का हृस होगा, जो कि देश के लिए दुष्कर होगा। कालेजियम के माध्यम से नियुक्ति करने से हम कुएं से निकले, तो खाई में गिरे। न्यायपालिका की स्वायत्तता को निरस्त करके यदि हमने परिजनों की नियुक्ति तथा भ्रष्टाचार पर कुछ नियंत्रण लगाया, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी स्वाह कर दिया।

अतः तीसरा कोई रास्ता ढूंढने की जरूरत है। इस संदर्भ में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा हाल में एक निर्णय दिया गया प्रासंगिक है। विवाद बद्रीकाश्रम में शंकराचार्य की नियुक्ति का था। दो दावेदार स्वामी स्वरूपानंद तथा स्वामी वासुदेवानंद थे। हाई कोर्ट ने पाया कि स्वामी स्वरूपानंद की नियुक्ति गैर कानूनी थी और उसे निरस्त कर दिया। अब प्रश्न उठा कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति कैसे की जाए। परंपरा थी कि वर्तमान शंकराचार्य अपनी मृत्यु के पहले एक इच्छा पत्र लिख करके जाते हैं। उनकी मृत्यु के बाद वह इच्छा पत्र खोला जाता है और उसमें इंगित व्यक्ति को शंकराचार्य नियुक्त किया जाता है। चूंकि पूर्व के शंकराचार्य का निधन हो चुका है, इसलिए उनके द्वारा अब इच्छा पत्र देना संभव नहीं था। अब इस परिस्थिति में हाई कोर्ट ने स्वयं किसी व्यक्ति को शंकराचार्य घोषित नहीं किया, बल्कि हाई कोर्ट ने कहा कि एक कालेजियम बनाया जाए, जिसमें काशी विद्वत परिषद्, भारत धर्म सभा मंडल और तीन अन्य शंकराचार्य सदस्य हों। इस कालेजियम द्वारा नए शंकराचार्य की नियुक्ति की जाए। विशेष बात यह है कि कालेजियम के सभी सदस्यों की नियुक्ति न तो किसी दावेदार द्वारा की गई है, न ही सरकार अथवा कोर्ट द्वारा। इन संस्थाओं या पदों पर आरूढ़ व्यक्ति किसी दूसरी अलग स्वतंत्रता प्रक्रिया से इस पद पर पहुचे हैं, जिसमें सरकार का कोई दखल नहीं है।

अतः इस प्रकार की कालेजियम द्वारा नियुक्त किया जाना सही है। ये लोग किसी व्यक्ति विशेष के होंगे, ऐसा नहीं माना जा सकता है। इसी प्रकार की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए अपनाई जा सकती है। अपने देश में तमाम संस्थाएं हैं, जिनमें शीर्ष अधिकारियों का चयन न सरकार द्वारा किया जाता है और न न्यायपालिका द्वारा किया जाता है, जैसे-बार काउंसिल आफ इंडिया, इंस्टीट्यूट आफ चार्टेड अकाउंटेंट्स आफ इंडिया, मेडीकल काउंसिल आफ इंडिया, मुस्लिम पर्सनल आफ लॉ बोर्ड, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी। वर्तमान दूसरे शंकराचार्य, देश की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन अथवा सबसे बड़ा व्यापारिक संगठन-इन सस्थाओं के अध्यक्षों का कालेजियम बनाया जा सकता है। इस कालेजियम को जिम्मेदारी दी जाए कि वह सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करे। ऐसा करने से सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति वर्तमान जजों के हाथ में नहीं रहेगी और हमें इनके भ्रष्टाचार एवं परिजनों की नियुक्ति से मुक्ति मिल जाएगी। न ही इनकी नियुक्ति सरकार के हाथ में रहेगी, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता का हृस हो। इस प्रकार की स्वतंत्र नियुक्ति की व्यवस्था को हमें अपनाना चाहिए।

समस्या यह है कि इसमें न्यायपालिका और सरकार दोनों के पर कटते हैं, इसलिए इन दोनों संस्थाओं द्वारा इस प्रकार की स्वतंत्र प्रक्रिया की संस्तुति करना नामुमकिन है। इस कार्य के लिए जनता को आगे आना होगा और न्यायपालिका और सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वे देशहित में अपने अधिकारों को त्यागें। प्रश्न उठता है कि क्या इंस्टीट्यूट आफ चार्टेड अकाउंटेंट्स आफ इंडिया के अध्यक्ष जैसे व्यक्तियों की क्षमता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति की पहचान कर सकेंगे? मेरा मानना है कि यह शंका निराधार है। देखा जाता है कि हाई स्कूल पास उद्यमी बहुत पढ़े इंजीनियर की नियुक्ति करता है अथवा सुप्रीम कोर्ट के जज जटिल टैक्स विवादों के निर्णय देते हैं। कालेजियम के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह कानून के पेचीदे मामलों के अंदर की समझ रखे। कालेजियम के लिए जरूरी यह है कि वह जज के चरित्र और उसकी निष्पक्षता का आकलन करे। अतः सुप्रीमकोर्ट के जजों की नियुक्ति को इस प्रकार के स्वतंत्र कालेजियम में देना चाहिए जिससे हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखें और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और परिवारवाद से मुक्त हो सकें।

ई-मेल: bharatjj@gmail.com

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