हर चक्र की व्याख्या पर ध्यान जरूरी

By: May 19th, 2018 12:05 am

शरीर में ही अवस्थित चौदह नाडि़यां (अलंबुषा, कुहू, विश्वोदरा, वारणा, हस्तिजिह्वा, यशोवती, पयस्विनी, गांधारी, पूषा, शंखिनी, सरस्वती, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना) ही सर्व सौभाग्यदायक चक्र की सर्वसंक्षोभिणी आदि चौदह शक्तियां हैं। शरीर में स्थित दस प्रकार की जठराग्नि, पांच प्राण-प्राधान्य तथा पांच नाग-प्राधान्यः क्षारक, उद्गारक, क्षोभक, जंृभक, मोहक, भक्ष्य, भोज्य, चोष्य, लेह्य, पेय, पंचविध अन्न को पचाने वाली अग्नि ही सर्वरक्षाकर चक्र की सर्वज्ञादि दस शक्तियां हैं…

-गतांक से आगे…

शरीर में अवस्थित ज्ञानेंद्रिय, कर्मेंद्रिय, बुद्धि आदि माता-पिता के अस्थि-मांस आदि जो अंश हैं, वे ही श्रीचक्रस्थ पितृरूप वाराही और मातृरूपा कुरुकुल्ला हैं। शरीर में अवस्थित रस-रक्त आदि सात धातु तथा त्वक तथा रोम ही नवरत्नद्वीप हैं। मन ही कल्पवृक्ष वन है। जिह्वा से आस्वाद्य षड्रस ही छह ऋतुएं हैं। ज्ञान अर्घ्य है, जो ज्ञेय है, वही हवि है और ज्ञान ही होता है। ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञाता का अभेदभावन ही श्रीचक्र (श्रीयंत्र) का पूजन है। शरीर में अवस्थित पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश-पंचभूत, दस इंद्रिय तथा अशुद्ध मन-ये सर्वाशापरिपूरक चक्र में पूजनीय कामाकर्षिणी आदि सोलह शक्तियां हैं। कर्मेन्द्रियों (वचन, आदान, गमन, विसर्ग और आनंद) के पांच विषय तथा हान (त्याग), उपादान (ग्रहण) तथा उपेक्षा आदि तीन प्रकार की बुद्धि-ये आठ अनंग कुसुमादि आठ शक्ति हैं, जो सर्वसंक्षोभिणी चक्र में पूजनीय हैं। शरीर में ही अवस्थित चौदह नाडि़यां (अलंबुषा, कुहू, विश्वोदरा, वारणा, हस्तिजिह्वा, यशोवती, पयस्विनी, गांधारी, पूषा, शंखिनी, सरस्वती, इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना) ही सर्व सौभाग्यदायक चक्र की सर्वसंक्षोभिणी आदि चौदह शक्तियां हैं। शरीर में स्थित दस प्रकार की जठराग्नि, पांच प्राण-प्राधान्य तथा पांच नाग-प्राधान्यः क्षारक, उद्गारक, क्षोभक, जंृभक, मोहक, भक्ष्य, भोज्य, चोष्य, लेह्य, पेय, पंचविध अन्न को पचाने वाली अग्नि ही सर्वरक्षाकर चक्र की सर्वज्ञादि दस शक्तियां हैं। सर्वरोहर चक्र अष्टार की वशिनी आदि आठ शक्तियां शरीर में स्थित आठ पदार्थ ये हैं ः शीत, ऊष्ण, सुख, दुख, इच्छा, सत्व, रज व तम। शब्द आदि पंच तन्मात्रा ही पुष्पबाण हैं, मन इक्षु-कोदंड है, राग ही पाश है तथा द्वेष अंकुश है। अव्यक्त प्रकृति, महत्त्व तथा अहंकार सर्वसिद्धिप्रद चक्र के भीतर पूजनीय कामेश्वरी, वज्रेश्वरी तथा भगमालिनी हैं। शुद्ध चैतन्य ही सर्वानंदमय बिंदुचक्र है, जो कामेश्वर रूप है। स्वात्मस्वरूप कामेश्वर के अंक में सदानंदपूर्ण भगवती त्रिपुरसुंदरी विराजमान हैं। अनन्य चित्तता ही मुद्रासिद्धि है तथा अभेद-भावना ही उपचार, होम व तर्पण है।

शक्ति का आविर्भाव

हम इस बात को पहले ही बता चुके हैं कि भूपुर से लेकर बिंदु तक संहारक्रम है और बिंदु से लेकर भूपुर तक सृष्टिक्रम है। इस सृष्टिक्रम अथवा सृष्टिविद्या को समझने के लिए बिंदु से भूपुर-पर्यंत नौ चक्रों की व्याख्या की जाती है, किंतु जीवत्व से शिवत्व प्राप्ति के चिंतन की प्रक्रिया अथवा ध्याता-ध्यान-ध्येय की एकात्म प्रक्रिया भूपुर से बिंदु (लय प्रक्रिया) की ओर बढ़ती है। गुरु परंपरा में आवरण-पूजा का यही क्रम प्रचलित है। इसलिए अब भूपुर से बिंदु की ओर प्रत्येक चक्र की परंपरा-प्राप्त व्याख्या पर ध्यान देना आवश्यक हो गया है।

त्रैलोक्यमोहनचक्र की शक्तियां (चतुष्कोण भूपुर)

त्रैलौक्यमोहनचक्र की शक्तियां प्रकटयोगिनी कहलाती हैं तथा चक्रेश्वरी त्रिपुरा हैं। शुक्ल, अरुण तथा पीतवर्ण की तीन रेखाओं से चार घाटों वाले सरोवर के समान जो चतुरस्र है, इसमें चार दिशाओं के चार द्वार तथा चार कोण हैं।

अपना सही जीवनसंगी चुनिए| केवल भारत मैट्रिमोनी पर-  निःशुल्क  रजिस्ट्रेशन!


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App