असफलता का कारण

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

ओशो

कामवासना का देवता शक्तिशाली नहीं है, तुम दुर्बल हो। इस बात को ठीक से स्मरण रखो कि कामवासना का देवता वाकई शक्तिशाली नहीं है और अगर तुम गिर गए हो, तो उसकी शक्ति के कारण नहीं गिरे हो। तुम गिरे हो अपनी दुर्बलता के कारण। जैसे कि कोई सूखा जड़ से टूटा वृक्ष, दुर्बल हुआ, दीन-जर्जर हुआ, वृद्ध हुआ व आंधी में गिर जाता है। आंधी न भी आती तो भी गिरता। आंधी तो बहाना है, आंधी तो मन को समझाने की बात है। क्योंकि ऐसे ही गिर गए बिना किसी के गिराए, तो चित्त को और भी पीड़ा होगी। आंधी न भी आती तो भी वृक्ष गिरता ही। अपनी ही दुर्बलता गिराती है। दूसरे की सबलता का सवाल नहीं है। क्योंकि वस्तुतः वहां कोई वासना का देवता खड़ा नहीं है, जो तुम्हें गिरा रहा है। तुम ही गिरते हो। अपनी दुर्बलता से गिरते हो और आदमी दुर्बल कैसे हो जाता है? जो जहां नहीं है, उसे वहां खोजने से धीरे-धीरे अपने पर आस्था खो जाती है। व्यर्थ में सार्थक को खोजने से और न पाने से आत्मविश्वास गिर जाता है। पैर लड़खड़ा जाते हैं और जीवनभर असफलता हाथ लगती है, तो स्वाभाविक है कि भरोसा नष्ट हो जाए और आदमी डरने लगे, कंपने लगे। पैर उठाए उसके पहले ही जानने लगेगा कि मंजिल तो मिलनी नहीं है, यात्रा व्यर्थ है क्योंकि हजारों बार यात्रा की है और कभी कुछ हाथ लेकर लौटा नहीं। हाथ खाली के खाली रहे।

आलसी और अनुद्यमी

आलस्य असंयत जीवन का परिणाम है। जितना ही इंद्रियां असंयत होंगी और जितना ही वस्तुओं में, विषयों में रस होगा, उतना ही स्वभावतः आलस्य पैदा होगा। आलस्य इस बात की खबर है कि तुम्हारी जीवन ऊर्जा एक संगीत में बंधी हुई नहीं है। आलस्य इस बात की खबर है कि तुम्हारी जीवन ऊर्जा अपने भीतर ही संघर्षरत है। तुम एक गहरे युद्ध में हो। तुम अपने से ही लड़ रहे हो। अपना ही घात कर रहे हो। बुद्ध उसी को उद्यम कहते हैं, जब तुम्हारी जीवन ऊर्जा एक संगीत में प्रवाहित होती है। तुम्हारे सब स्वर एक लय में बद्ध हो जाते हैं। तुम एक पुंजीभूत शक्ति हो जाते हो। तब तुम्हारे भीतर बड़ी ताजगी है, बड़े जीवन का उद्यम वेग है। तब तुम्हारे भीतर जीवन की चुनौती लेने की सामर्थ्य है। तब तुम जीवंत हो। अन्यथा मरने के पहले ही लोग मर जाते हैं। मौत तो बहुत बाद में मारती है, तुम्हारी नासमझी बहुत पहले ही मार डालती है। विषय रस में अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इंद्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान और उद्यमी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगाती जैसे आंधी शैल पर्वत को।  किसी भी काम को करने का मन में दृढ़ संकल्प होना चाहिए। आप तब तक किसी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते, जब तक आपके अंदर पुरुषार्थ करने की क्षमता नहीं होती। कई बार ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं कि इनसान बलहीन होकर भी ऐसे महान कार्य कर जाता है, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App