आतंकवाद का आखिरी दौर

By: Jun 19th, 2018 12:05 am

अंततः गृह मंत्री राजनाथ सिंह को जम्मू-कश्मीर में संघर्ष विराम समाप्त करने की घोषणा करनी पड़ी। यह निर्णय कुछ दिन पहले ही लिया जा चुका था। हमने उसी के आधार पर संघर्ष विराम खत्म किए जाने का विश्लेषण किया था। चूंकि अब रमजान का पाक महीना गुजर चुका है और ईद भी मना ली गई है। इन्हीं का बहाना था, जो घोषणा को कुछ दिन टाला गया। अब कश्मीर में किसी भी तरह का संघर्ष विराम नहीं है। सेना और सुरक्षा बलों को भारत सरकार का आदेश प्राप्त हो चुका है कि अब उनके पांवों में किसी भी तरह की बेडि़यां नहीं हैं और न ही हाथ बंधे हैं। ‘आपरेशन आल आउट पार्ट-2’ को शुरू करने के आदेश दे दिए गए हैं। अब हमारे जांबाज सैनिक चुन-चुन कर, ढूंढ-ढूंढ कर आतंकियों को मारेंगे। कश्मीर में सक्रिय पाकपरस्त पत्थरबाजों का भी ‘इलाज’ किया जाएगा। अलगाववादियों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पाकिस्तान को भी सबक सिखाया जाएगा और उसकी साजिशें नाकाम की जाएंगी। खून-खराबे और लाशों का एक और दौर…! यह तो रमजान के दौरान संघर्ष विराम के पहले भी था। बेशक सेना और सुरक्षा बलों के ‘आपरेशन आल आउट’ ने पाकपरस्त आतंकियों को न केवल ढेर किया था, बल्कि उन्हें खदेड़ा भी था। कमांडर किस्म के आतंकी इस कदर मारे जा रहे थे कि आतंकी संगठनों को नए, वैकल्पिक कमांडर मिलने मुश्किल हो गए थे। लेकिन रमजान के दौरान संघर्ष विराम में आतंकी हमले तीन गुना से ज्यादा बढ़े। बीती 17 अप्रैल से 17 मई तक (रमजान शुरू होने की तारीख तक) 18 आतंकी हमले हुए थे, लेकिन संघर्ष विराम के दौरान 60 से भी ज्यादा हमले हुए। ग्रेनेड अटैक भी चार गुना बढ़े। ईद के दिन भी हत्याएं की गईं। लिहाजा सहज सवाल है कि क्या कश्मीर वाकई ‘जन्नत’ बन सका? क्या अमन-चैन, भाईचारा, भारतीय भावना आम लोगों में महसूस की गई? बिलकुल भी नहीं…! आतंकवाद जारी रहा, नई भर्तियां भी होती रहीं, आतंकियों के जनाजे में हजारों की भीड़ उमड़ती रही, मृत आतंकियों को भी ‘गन सैल्यूट’ दिए जाते रहे और हमारे जवान, आम नागरिक मारे जाते रहे। सवाल है कि इन हालात में भी एकतरफा संघर्ष विराम क्यों लागू किया गया? क्या मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की जिद और सियासत के मद्देनजर कश्मीर को मौत और आतंक के कुएं में धकेलना उचित निर्णय था? संघर्ष विराम के दौरान हमारे 14 जांबाज जवान ‘शहीद’ हुए। सिर्फ सुरक्षा बलों पर ही 42 आतंकी हमले किए गए, कुल हमलों की संख्या तो अधिक है। घुसपैठ का आंकड़ा भी 20 रहा। इस दौरान 18-20 आतंकी भी मार दिए गए। नागरिक भी हलाक हुए। आतंकी वारदात में 100 फीसदी इजाफा हुआ। हमारे कश्मीरी पत्थरबाजों ने भी सेना और सुरक्षा बलों पर घातक पथराव किए। ईद के पवित्र त्योहार के दिन भी ऐसा ही हुड़दंग देखा गया। यानी एकतरफा संघर्ष विराम के दौरान भी माहौल जंग का ही रहा। तमाम भावनाएं एकतरफा थीं। यह मत गिनाओ कि हमारे जवानों ने पाकिस्तान के कितने बंकर तोड़े, कितनी चौकियां बर्बाद कीं और कितने रेंजर्स को ढेर किया? संघर्ष विराम का औचित्य ही बताओ, जबकि भारत सरकार की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने संघर्ष विराम लागू नहीं करने की स्पष्ट दलीलें दी थीं। उसके बावजूद एकतरफा संघर्ष विराम लगाया गया। आखिर उसकी जिम्मेदारी किस पर तय की जाए? चूंकि ऐसे मामलों के प्रभारी गृह मंत्री राजनाथ सिंह हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को सही सलाह और हकीकत की जानकारी नहीं दी होगी, लिहाजा गृह मंत्री की ही बुनियादी जिम्मेदारी तय की जाए और राजनाथ सिंह अपने पद से इस्तीफा दें। मुद्दा संघर्ष विराम को समाप्त करने के साथ ही खत्म नहीं होता। आखिर निर्दोष और तटस्थ पत्रकार शुजात बुखारी और औरंगजेब, विकास गुरुंग सरीखे ‘शहीदों’ की वापसी कैसे होगी? उनके बदले ले भी लिए जाएं, लेकिन उनसे उपजा खालीपन क्या भरा जा सकेगा? औरंगजेब के गांव में ईद के दिन मातम छाया रहा, किसी ने भी ईद नहीं मनाई, लिहाजा ईद के मायने भी खंडित हुए! हासिल क्या हुआ? कश्मीर पर लगातार मीडिया की निगाहें रहती हैं, हररोज टिप्पणियां की जाती रही हैं, लेकिन हालात जस के तस हैं। आखिर मोदी सरकार की नीति क्या है? पाकिस्तान को हररोज गालियां देने या धमकाने अथवा कोसने से हासिल क्या होगा? हम कश्मीर घाटी में ही सीमित आतंकवाद को जड़ से उखाड़ नहीं पाए हैं, तो पाकिस्तान का क्या बिगाड़ लेंगे? यदि हम और हमारी सेनाएं पर्याप्त ताकतवर हैं, तो उन्हें खुली छूट दीजिए और लक्ष्य तय कर दीजिए कि हमें पाकिस्तान का सफाया चाहिए। बीच में संघर्ष विराम सरीखी सांप्रदायिक सियासत मत खेलिए। चलो, सेना और सुरक्षा बलों के आपरेशन का नया दौर शुरू हुआ है। हमारा मानना है कि कश्मीर में आतंकवाद का यह आखिरी दौर होना चाहिए!


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