उत्थान की खोखली प्रतिस्पर्धा

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

भीड़ और भेड़चाल से अलग जिस हिमाचल में सुकून का बसेरा था, वह अब अतीत के लम्हों में कहीं दफन होता दिखाई दे रहा है। न हम भीड़ से खुद को बचा रहे हैं और न ही भेड़चाल से मुक्त सामाजिक परिदृश्य का संरक्षण कर पा रहे। उत्थान की प्रतिस्पर्धा कहीं भविष्य का पश्चाताप न बन जाए, इस पर गौर होना चाहिए। फिलहाल सड़कों पर ट्रैफिक जाम की नौबत में नए पर्यटन की भूमिका को समझना होगा या यह भी कि विकास की यह डगर अब तक नजरअंदाज क्यों हुई। हम इसे पर्यटन सीजन की रौनक मान लें, तो भी कसूरवार ट्रैफिक अव्यवस्था के तमाचे चारों ओर पड़ रहे हैं। ढीठ मनोवृत्ति से गुजरता पर्यटन और ऊपर से हिमाचली समाज की शान-ओ-शौकत का जुलूस किसी भी सड़क को विकराल बना सकता है और यह हो भी रहा है। हमारे जीवन की गति और सामूहिक प्रगति का नजारा, हर ट्रैफिक जाम की वजह है। यह ऐसी भीड़ है, जो अनंत उपलब्धियों की भेड़चाल मानी जाएगी। यहां सामाजिक व आर्थिक पैमाने हैं, लेकिन प्रगति के मानदंड नहीं। सड़कें हैं, लेकिन उनकी गुणवत्ता के मानदंड नहीं। ट्रैफिक पुलिस है, लेकिन कार्य निष्पादन का कोई मानदंड नहीं। पर्यटन सीजन की तैयारियों से लबरेज पुलिस महकमा यह तय नहीं कर पाता कि यातायात को ट्रैफिक जाम से अलग कैसे किया जाए। वाहन केवल चलना जानते हैं, लेकिन किस तरह चलें इसका कोई मानदंड नहीं। बस स्टॉप तो एक किलोमीटर के फासले पर भी अनेक हो सकते हैं, लेकिन बसों को सड़कों से हटकर रुकने की न जगह है और न ही ऐसे नियम। इसलिए बसें जब रुकती हैं, तो पूरे यातायात को लाल सिग्नल देती हैं। प्रदेश में बस स्टॉप का निर्धारण व रुकने के लिए आवश्यक स्थान न होना, एक बड़ी वजह है, तो चौराहों पर पुलिस की तैनाती का न होना सबसे बड़ी समस्या है। बाहरी और घरेलू वाहनों की लगातार बढ़ती तादाद के कारण, सड़कों पर अव्यवस्था देखी जाती है। अधिकांश सड़कें वाहनों की पार्किंग की वजह से अपनी सूरत खो चुकी हैं, तो दूसरी ओर ऑटोमोबाइल व्यवसाय भी इसी पैमाने से जगह घेर रहा है। बेशक सड़कों के विस्तारीकरण से हालात सुधरेंगे, लेकिन इससे पहले ट्रैफिक नियमों के पहरे में पुलिस की माकूल नफरी तैनात करनी होगी। निजी वाहनों के पंजीकरण में शर्त होनी चाहिए कि खरीद से पहले आवासीय पार्किंग लाजिमी तौर पर प्रमाणित हो। ट्रैफिक के अलावा हिमाचल की भेड़चाल असफल शिक्षा व चिकित्सा प्रणाली से रू-ब-रू है। एक तरह से भेड़चाल का सियासी भाईचारा इस काबिल बना रहा है कि चारों तरफ अफरातफरी के आलम के बीच व्यवस्था खुद से मुकर रही है। यही कारण है कि कमोबेश हर पर्यटक स्थल कंकरीट में लिपट कर अपनी आत्मा खो बैठा है। नई आर्थिकी के इस जंगल में हिमाचली सुकून की डगर न जाने कहां गुम हो गई। पर्यटक को आते देख, हमने अपने व्यवहार की सारी प्रतिष्ठा गंवा दी। पर्यटन का आतिथ्य आज मात्र अफरातफरी है और जहां न केवल ट्रैफिक जाम हो रहे हैं, बल्कि भीड़ की रौनक में पर्यटक स्थल भी कहीं दुबक कर सुबक रहा है। आर्थिकी के इस शृंगार का विस्तार तो हम कर सकते हैं, लेकिन हर्जाना हमारी व्यवस्था को चुकाना पड़ेगा। हम कारों की महफिल में अपनी आर्थिकी के सुर ऊंचे कर सकते हैं, लेकिन किसी भी सड़क पर हमारी प्रतिष्ठा जूं की तरह रेंगे, तो खबर किसे होगी।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App