उपयोगी व संग्रहणीय पुस्तक है ‘दो टूक’

By: Jun 3rd, 2018 12:04 am

पुस्तक समीक्षा

* पुस्तक : दो टूक (निबंध संग्रह)

* लेखक : योगेश कुमार गोयल

* कुल पृष्ठ : 112

* प्रकाशक : मीडिया केयर नेटवर्क, 114, गली नं. छह, वेस्ट गोपाल नगर, नई दिल्ली-43

* कीमत : 150 रुपए मात्र

लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार योगेश कुमार गोयल बीते तीन दशक से अपने रचनाकर्म में लीन हैं। इस दौरान इन्होंने ज्वलंत व ताजा मुद्दों पर विभिन्न समाचारपत्रों व पत्रिकाओं के लिए हजारों लेख लिखे हैं। लेखक समसामयिक मुद्दों पर अच्छी पकड़ रखते हैं, यह बात समीक्ष्य निबंध संग्रह में भी स्पष्ट परिलक्षित है। इन दिनों उपन्यास, कहानी, कविता, लघुकथा, व्यक्तित्व विकास, व्यवहार आदि विषयों पर तो खूब लिखा जा रहा है, लेकिन किशोरों, युवाओं व अपना करियर संवारने में सचेष्ट छात्रों के लिए सामयिक विषयों पर निबंध की बहुत ही कम पुस्तकें देखने में आ रही हैं। ऐसे में हरियाणा साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित योगेश जी की प्रस्तुत पुस्तक इन छात्रों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। पुस्तक में विविध विषयों पर कुल 20 लेख हैं, जिनमें विभिन्न समस्याओं अथवा विषयों पर विशद विवेचना की गई है। लेखक ने न सिर्फ अपने विचार बल्कि तथ्य और आंकड़े भी शामिल किए हैं, जिससे पुस्तक की उपयोगिता काफी बढ़ गई है। ‘विकराल होती ग्लोबल वार्मिंग की समस्या’ में न सिर्फ इसके कारण बताए गए हैं, बल्कि इस पर लगाम लगाने के उपाय भी बताए गए हैं। धूम्रपान पर लेख ‘धुआं धुआं होती जिंदगी’ में नशे के दुष्प्रभावों पर विस्तारपूर्वक चर्चा है, बाल मजदूरी पर लेख ‘श्रम की भट्ठी में झुलसता बचपन’ है, ‘बच्चे और बाल साहित्य’ में वर्तमान बाल साहित्य की कमियों को गिनाते हुए इसमें वांछित सुधारों पर भी चर्चा की गई है। ‘कैसा मजदूर, कैसा दिवस?’ में मजदूर दिवस की औपचारिकताओं और उपयोगिता पर सवालिया निशान खड़े किए गए हैं, ‘गौण होता रामलीलाओं का उद्देश्य’ में रामलीला के घटते आकर्षण व उसके कारणों की चर्चा की गई है। दिवाली के प्रदूषण, एड्स की बीमारी, उपभोक्ता जागरूकता, मानवाधिकार संगठनों की बनावटी भूमिका, रेल दुर्घटनाओं पर चिंता जैसे विषयों पर भी विस्तृत लेख हैं। हम अकसर धरती के अलावा दूसरे ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाएं तलाशते रहे हैं। इस पर फिल्में भी आ चुकी हैं और कहानियां भी खूब लिखी गई हैं। समीक्ष्य पुस्तक ‘दो टूक’ में लेख ‘धरती से दूर जीवन की संभावना’ बेहद उपयोगी व पठनीय है। अन्य उपयोगी आलेखों में ‘वाहनों के ईंधन के उभरते सस्ते विकल्प’, ‘भूकंप व विस्फोटों से नहीं ढहेंगी गगनचुंबी इमारतें’, ‘खतरे का सायरन बजाता आया मोटापा’, ‘परीक्षा को न बनाएं हौव्वा’, ‘आज के दमघोंटू माहौल में मूर्ख दिवस की प्रासंगिकता’, ‘कैसे हुई आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत?’, ‘दुनिया की नजरों में महान बना देता है नोबेल पुरस्कार’ जैसे जानकारीप्रद आलेख भी हैं। अंत में ‘विश्व प्रसिद्ध हैं झज्जर की सुराहियां’ एक रोचक लेख है। लेखक को इस सीरीज में अन्य निबंध संग्रह भी प्रकाशित करवाने चाहिएं। समीक्ष्य पुस्तक न सिर्फ पठनीय है, बल्कि हर किसी के लिए उपयोगी व संग्रहणीय भी है। संदर्भ के लिए विद्यार्थियों के लिए यह एक अच्छा संकलन साबित होगा।

-शिखर चंद जैन, 67/49, स्ट्रैंड रोड, तृतीय तल, कोलकाता

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