एक का ट्रांसफर, दूसरे का इस्तीफा 

By: Jun 18th, 2018 12:05 am

 बिलासपुर  —क्षेत्रीय अस्पताल बिलासपुर में आए दिन कोई न कोई चिकित्सक तबादला या फिर छोड़ कर चला जा रहा है। इसका खामियाजा यहां के मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। शनिवार को बिलासपुर अस्पताल से दो चिकित्सक और छोड़ कर चले गए है। इसमें एक चिकित्सक डा. पुष्पराज (एनएसथिसिया) ने अपना तबादला करवा लिया है तो वहीं डा. अंकिता (एमबीबीएस) ने यहां से रिजाइन दे दिया। इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि बिलासपुर अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधा किस स्तर पर होगी। वहीं हैरान करने की बात तो यह होती है कि बिलासपुर जिला केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला है। यहां पर स्वास्थ्य सुविधा तो बाद की बात, परंतु यहां पर तो कोई चिकित्सक भी ज्यादा समय तक नहीं रह पा रहा है। इसके कारण यहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं यहां पर न के बराबर है। यही कारण है कि बिलासपुर जिला हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा जिला बन गया है जो स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के नाम से जाना जाता है।  चाहे सत्ता में अधिकार चाहे किसी भी दल का हो लेकिन बिलासपुर की किस्मत में केवल दुख ही लिखा है। किसी भी दृष्टिकोण से देखा जाए तो यहां पर दुख दर्द के सिवा और कुछ नहीं है। ऐसे में मामला और भी संवेदनशील हो जाता है कि जिस जिला का नेता पूरे देश के स्वास्थ्य की बागडोर संभाल रहा हो उसी के गृह जिला में चिकित्सकों की कमी का होना दर्शाता है कि राजनेता अपने विभागों में कितने सजग हैं। बिलासपुर अस्पताल में चिकित्सकों की  कमी का रोना कभी गया ही नहीं। पूरे अस्पताल ही नहीं बल्कि जिला भर में कोई अस्थि रोग विशेषज्ञ ही नहीं है। यातायात तथा सड़क हादसों की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण बिलासपुर जिला में इस पद का होना कितना लाजिमी है। वहीं, कुछ समय पहले ही बिलासपुर से सर्जन डा. पियूष नंदा और नई आई एमडी डा. शिवानी संधू हमीरपुर के लिए स्थानांतरित हो गए हैं। गौर हो कि डा. पियूष नंदा को यहां आए हुए कुछ ही महीने जबकि डा. शिवानी संधू को कुछ ही दिन हुए थे। इनके आने से अस्पताल की व्यवस्था में हल्का से सुधार की उम्मीद जगी थी लेकिन सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। वहीं काफी समय से यहां पर रेडियोलॉजिस्ट भी नहीं है। अब बिलासपुर जिला बिना हड्डी रोग विशेषज्ञ, फारेंसिक, सर्जन और रेडियोलॉजिस्ट के व्यवस्था को धकेल रहा है। इन चिकित्सकों की गैर मौजूदगी का असली अहसास उन्हें होता है जो किसी न किसी कारण इनकी दीद को तरसते हैं। गौर हो कि बिलासपुर में चिकित्सा व्यवस्था की इतनी दुर्दशा पहले कभी नहीं हुई थी। राजनीतिक दृष्टिकोण की बात करें तो जिला अस्पताल के मसले को लेकर आए दिन भाजपा नेता अपने मयानों से तलवारों को खींचे रहते थे, लेकिन अब जब केंद्र और प्रदेश में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकारें काबिज हैं तो भी हालात सुधरने की बजाए और बिगड़ते जा रहे हैं। कहना गलत न होगा कि करोड़ों की लागत से बना बिलासपुर अस्पताल रैफर करने वाला अस्पताल बन गया है। उस पर सबसे बड़ी हैरानी की बात तो यह है कि पिछले चार सालों से बिलासपुर जिला से ताल्लुक रखने वाले नेता जगत प्रकाश नड्डा देश के स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रभार संभाल रहे हैं, लेकिन अपना प्रदेश तो दूर की बात इनसे अपना जिला ही नहीं संभल पा रहा है। यही नहीं हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार के ससुराल भी बिलासपुर (घुमारवीं) में हैं लेकिन जिले के दामाद भी लचर चिकित्सा व्यवस्था को सुधारने के लिए कोई प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। एम्स का सपना देखने वाली बिलासपुर की जनता लंबे समय से खून के आंसू पी रही है, जनता का दर्द जानने वाला अब कोई शेष नहीं है। चिकित्सकों की कमी को लेकर पूर्व में धरने प्रदर्शन करने वाले नेता भी मुंह पर ऊंगली रखकर एक कोने में दुबक चुके हैं।  मजे की बात है कि सरकार बदली निजाम बदले लेकिन बिलासपुर अस्पताल के हालात नहीं बदले। चंद डाक्टरों के सहारे चल रहे बिलासपुर अस्पताल को स्वयं इलाज की दरकार है। उल्लेखनीय है कि अस्पताल व्यवस्था को लेकर अब तो सोशियल मीडिया पर मजाक खूब उड़ने लगा है।


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