कांग्रेस आंदोलन में कांशी राम का महत्त्वपूर्ण योगदान

By: Jun 20th, 2018 12:05 am

कांग्रेस के आंदोलन में बाबा कांशीराम और हजारा सिंह का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। वे और उनके सहयोगी लंबी कैद की सजा के लिए गुरदासपुर, लाहौर, अटक और मुलतान भेजे गए। इन सख्तियों के कारण कांगड़ा के आंदोलन में कुछ शिथिलता आ गई…

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापनाः इस कुछ समय पूर्व अमरीका से आए एक व्यक्ति सेमुअल इवांस स्टोक्स ने शिमला पहाडि़यों के ऊपरी भाग कोटगढ़ में रहना आरंभ किया और गांधी जी के विचार से प्रभावित होकर बेगार की प्रथा के विरुद्ध सारी पहाड़ी रियासतों में आंदोलन चलाया। इसके लिए जन-जागृति के उद्देश्य से उन्होंने कई लेख लिखे और सभाएं कीं। उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया और सत्यानंद स्टोक्स बन गया था। वह असहयोग आंदोलन में भी भाग लेते रहे, जिसके कारण उन्हें बंदी बना लिया गया और 24 मार्च, 1923 को अन्य लोगों के साथ शिमला में कैथू जेल से मुक्त किया गया था। सत्यानंद स्टोक्स ने जेल से रिहा होने के पश्चात पहाड़ी रियासतों में अपना समाज सुधार और राजनीतिक जागृति का कार्यक्रम जारी रखा। कांगड़ा के बहुत से लोग कांगड़ा से बाहर काम करते रहे। कुछ सरकारी कार्यालयों में और कुछ अन्य व्यवसायों में। बाहर रह कर ये लोग राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित होते रहे। जब वे वापस अपने गांव आते तो कांग्रेस के कार्य को चलाते और उनके जलसों में भाग लेते। इन्हीं सम्मेलनों में एक सम्मेलन सन् 1927 में सुजानपुर के पास ‘ताल’ में हुआ, जिसमें बलोच सिपाहियों ने लोगों को बुरी तरह पीटा। इस मारपीट मेंे ठाकुर हजारा सिंह, बाबा कांशीराम (पहाड़ी गांधी), गोपाल सिंह और चतुर सिंह भी थे। सिपाहियों ने उनकी गांधी टोपियां भी उनसे छीन ली थीं। इसके विरुद्ध पहाड़ी गांधी बाबा कांशीराम ने शपथ ली कि जब तक भारत स्वतंत्र नहीं होता, वह काले कपड़े पहनेंगे। बाबा कांशीराम ने स्वतंत्रता की भावनाओं से ओत-प्रोत कई कविताएं लिखीं। कांग्रेस के आंदोलन में बाबा कांशीराम और हजारा सिंह का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण है। वे और उनके सहयोगी लंबी कैद की सजा के लिए गुरदासपुर, लाहौर, अटक और मुलतान भेजे गए। इन सख्तयों के कारण कांगड़ा के आंदोलन में कुछ शिथिलता आ गई। परंतु ज्यांे ही कांग्रेस ने 1935 के अधिनियम के अंतर्गत विधानसभाओं के निर्वाचन में भाग लेने का निर्णय लिया तो कांग्रेस की गतिविधियों ने जोर पकड़ा।

शिमला में कांग्रेस का संगठन : सन् 1929 ई. में शिमला में कांग्रेस को पुनः संगठित किया गया और सदस्यों की संख्या बहुत बढ़ गई। इनमें प्रमुख थे-मौलवी गुलाम मोहम्मद, मोहम्मद उमर नुमानी, द्वारिका प्रसाद, संुदर लाल, भागीरथ लाल, रूप लाल मेहता, सालिगराम गुप्ता, कन्हैया लाल बुटेल, मेला राम सूद, कर्म चंद सूद, खुशी राम, हरिशचंद, होशियार सिंह राणा, गोकुल चंद, प्यारे लाल, मेहर चंद, चिरंजी लाल, राम कृष्ण बजाज, स्वामी रामानंद, लाला घुंघर मल आदि। इनके अतिरिक्त जुब्बल में भागमल सौहटा, कोटगढ़ के सत्यानंद स्टोक्स, बुशहर के पंडित पद्मदेव, ठियोग के सूरत राम प्रकाश, पालमपुर के कन्हैया लाल बुटेल, कोटी के ठाकुर गौरी दत्त, कुनिहार के बाबू कांशीराम आदि अनेक पहाड़ी रियासतों के आंदोलनकारी भी शिमला में आकर कांग्रेस के कार्यों में दिल खोलकर भाग लेते रहे।


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