कुछ अलग करने की चाह रखने वाले एसपी बंसल

By: Jun 20th, 2018 12:10 am

दुनिया के लगभग 30 देशों में विभिन्न एकेडमिक असाइनमेंट के लिए एसपी बंसल भ्रमण कर चुके हैं। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई कान्फ्रेंस, सेमिनार और वर्कशॉप में मुख्यातिथि के रूप में शिरकत कर चुके हैं। उन्होंने 90 रिसर्च पेपर लिखे हैं और 20 रिसर्च स्कॉलर को पीएचडी के लिए बतौर गाइड काम किया है। इसके अलावा उन्होंने 11 रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम किया है। 25 बुक्स लिखने में ख्याति हासिल की है ..

हिमाचल प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी में नवनियुक्त वाइस चांसलर प्रो. एसपी बंसल एक जानी-मानी हस्ती ही नहीं बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनके नाम कई ख्यातियां हैं। हर क्षेत्र में काम करने का अनुभव हासिल करने के अलावा अपने समाज और देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना उन्हें अपने पिता रि. प्रिंसीपल श्री कस्तूरी लाल से मिली। 19 दिसंबर, 1965 को शिमला के संजोली में जन्मे प्रो. बंसल का मानना है कि जहां हम हैं और जब तक हैं उस जगह के लिए, वहां के लोगों के लिए कुछ न कुछ जरूर करना चाहिए। मूल रूप से शिमला के रहने वाले प्रो. बंसल काफी समय बाद हिमाचल लौटे हैं और अब अपने प्रदेश और यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं। प्रो. बंसल एक धार्मिक प्रवृत्ति के इनसान हैं। देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व. डा. अब्दुल कलाम आजाद और प्रणब मुखर्जी से वह खासे प्रभावित रहे। डा. कलाम की पुस्तक विंग्स ऑफ फायर ने उनके जीवन में टर्निंग प्वाइंट लाया। वह कहते हैं कि हर इनसान उड़ सकता है, बस उसमें अपने पंखों को पहचानने की दृष्टि होनी चाहिए। डा. बंसल बचपन से सरकारी स्कूल में पढ़े। उनका कहना है कि चाहे स्टूडेंट हो या टीचर सबको अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। सरकारी स्कूलों के टीचर प्राइवेट से ज्यादा क्वालिफाइड होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में न पढ़ने वाले वैसे हैं न पढ़ाने वाले। वह कहते हैं कि हमारे युवाओं को आज इतिहास का ज्ञान नहीं है। जब इतिहास का ज्ञान नहीं होगा, उन महापुरुषों के बारे में पता नहीं होगा, जिन्होंने देश के लिए काम किया और अपनी कुर्बानियां दीं, तो बच्चों में देश प्रेम की भावना कैसे पैदा होगी। उनका मानना है कि आज शिक्षा नीति को बदलने की जरूरत है।

शिक्षा नीति में देश और समाज को जोड़ने की जरूरत है। उनका कहना है कि युवा अपनी डिग्री को रोजगार से न जोडं़े, बल्कि डिग्री से पहले एक अच्छे इनसान बनें।  समाज में पहले काबिल इनसान बनना होगा। उनका मानना है कि हमें गुरुकुल सिस्टम अपनाने की जरूरत है। टीचर नहीं गुरु तैयार करने की जरूरत है। डा. बंसल दुनिया के लगभग 25 देशों में विभिन्न एकेडमिक असाइनमेंट के लिए भ्रमण कर चुके हैं।

वह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कई कान्फ्रेंस, सेमिनार और वर्कशॉप में मुख्यातिथि के रूप में शिरकत कर चुके हैं। उन्होंने 90 रिसर्च पेपन लिखे हैं और 20 रिसर्च स्कोलर को पीएचडी के लिए बतौर गाइड काम किया है। इसके अलावा उन्होंने 11 रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम किया है, 25 बुक्स लिखने में ख्याति हासिल की है।  प्रो. बंसल के पास टीचिंग के अलावा कुलपति के पद का लंबा अनुभव है। प्रो. एसपी बंसल महाराजा अग्रसेन विवि सोलन के कुलपति के पद पर सेवाएं दे चुके हैं। साथ ही सलाहकार एवं विज्ंिटग प्रोफेसर यूरोपियन विवि, जेएनयू में भी रहे हैं। 2016 से 2019 तक वह आईआईटीएम, पर्यटन मंत्रालय, नई शिक्षा नीति के सदस्य मनोनीत किए गए। वह यूजीसी विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष भी रहे हैं जो कि शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्तता की मान्यता देती है। इसके साथ टूरिज्म एंड हास्पिटेलिटी एजुकेटर रिसर्च एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे।  वह ईपीजी पाठशाला प्रोजेक्ट के प्रधान इंवेस्टिगेटर भी हैं,यह प्रोजेक्ट देश के 600 स्कूलों में चलाया जा रहा है। इसके साथ ही उनके  पास हिमाचल प्रदेश विवि के न्यूज लैटर के संपादक का दायित्व भी रहा है।  हिमाचल विवि में वह पर्यटन विभाग के संस्थापक एवं चेयरमैन भी रहे हैं। 2009 से 2012 तक हिमालयन एकीकृत संस्थान के निदेशक, एचपीटीडीसी के निदेशक का कार्यभार भी उनके पास रहा।  एचपीटीयू में कार्यभार संभालने से पूर्व प्रो. बंसल इंदिरा गांधी राज्य विश्वविद्यालय हरियाणा (मीरपुर रेवाड़ी) के कुलपति थे। इसके अलावा उनके पास भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय का अतिरिक्त कार्यभार भी था।

 — नीलकांत भारद्वाज, हमीरपुर

जब रू-ब-रू हुए…

बच्चे जॉब सीकर के बजाय, जॉब प्रोवाइडर बनें…

बतौर शिक्षक जो आपको मिला या इसके माध्यम से जो नजरिया बन गया?

मैं बाई डिफॉल्ट शिक्षक नहीं, बल्कि मैं शिक्षक बनना चाहता था। मेरे पिता जी खुद एक शिक्षक रहे हैं। शिक्षक बनने के बाद मैंने स्वामी विवेकानंद जी को अपना गुरु माना। मैंने अपने विद्यार्थियों को हमेशा करिकुलम से हटकर समाज से जुड़ना सिखाया, ताकि वे समाज से जुड़ सकें इस राष्ट्र से उनका जुड़ाव हो।

आधुनिक शिक्षा जहां असीमित होकर भी कंगाल है?

मैं समझता हूं कि जो हमारे गुरुकुल थे, वे लुप्त हो रहे हैं जो कि चिंता का विषय है। हम मैकॉले को बार-बार याद करते हैं और उसे कोसते हैं। मैकॉले ने 1837 में ब्रिटिश पार्लियामेंट में भाषण दिया था कि भारत जो कि तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है, अगर उसे रोकना है तो उसकी शिक्षा नीति के तोड़ना होगा जो कि मैकॉले ने किया भी, लेकिन मैकॉले को कोसने के बजाय सवाल यह उठता है कि हमने आजादी के बाद भी आज तक शिक्षा नीति के लिए क्या किया। भारत जो कि विश्वगुरु बनने की कल्पना कर रहा है वह अभी उससे कोसों दूर है। इसके लिए हमें अपनी शिक्षा नीति को बदलना होगा।

भारतीय भविष्य की शिक्षा क्या अभिभावकों के पिंजरे में बंद होकर रह गई या शिक्षक वर्ग ने मूल दायित्व से खुद को अलहदा कर लिया?

गैप दोंनों जगहों पर है। शिक्षक भी किनारा कर रहा है और अभिभावक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। मुझे लगता है कि वैसे शिक्षक आज हम तैयार ही नहीं कर रहे। अगर शिक्षक की मानसिकता वैसी होगी तो वैसे ही स्टूडेंट तैयार होंगे। मां-बाप इसलिए जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे पश्चिम सभ्यता को अपनाने और अपने बच्चों पर इसे थोपने में लगे हुए हैं। पहले जब शिक्षक बच्चों को डांटते थे या पीटते थे तो घर पर भी अभिभावक उल्टा हमें कसूरवार मानकर हमें डांटते थे, लेकिन आज कहीं ऐसा होता है तो पेरेंट्स स्कूल आकर शिक्षकों से झगड़ने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में प्रॉब्लम दोनों ही तरफ है।

किन कारणों से हिमाचल की स्कूली शिक्षा का स्तर गिरा। सरकारी छत के नीचे शिक्षा क्यों धंस रही है?

केवल हिमाचल में ही शिक्षा का स्तर नहीं गिरा बल्कि पूरे देश में शिक्षा का यही हाल है। शिक्षा नीति की बात करें तो इसमें सुधार के लिए कोठारी शिक्षा आयोग बना मुदालिया शिक्षा आयोग बना लेकिन , अभी तक कोई ऐसी शिक्षा नीति हम नहीं बना पाए, जिससे हमारी एलिमेंटरी शिक्षा मजबूत हुई हो। एलिमेंटरी की तरफ वैसा काम नहीं हुआ जैसा होना चाहिए था।

तकनीकी विश्वविद्यालय की प्रासंगिकता कैसे बढ़ाएंगे?

जहां तक तकनीकी विवि में प्रासंगिकता की बात है तो मैं फिर यही बोलता हूं कि हायर एजुकेशन की रीढ़ तकीनीकी शिक्षा है। इस पर ध्यान देने की जरूर है। मैं टॉप शिक्षण संस्थानों को देखता हूं, आईआईएम को देखता हूं तो हम जितने भी बच्चे तैयार कर रहे हैं उनका ब्रेन ड्रेन हो रहा है। वे बच्चे या तो बाहर जा रहे हैं या  फिर अपनी लाइन बदल रहे हैं। बहुत कम ऐसे  बच्चे हैं जो जिस चीज के लिए तैयार किए जा रहे हैं, वे उसी दिशा में काम कर रहे हैं। ऐसे में एक गैप तो है। अगर मैं इंजीनियरिंग की बात करूं तो हम डिमांड एंड सप्लाई की बात करते हैं। मुझे लगता है कि डिमांड एंड सप्लाई में बहुत बड़ा गैप बढ़ता जा रहा है। हम बोलते हैं कि हमारे पास सप्लाई बहुत ज्यादा है और डिमांड नहीं है। मैं इससे सहमत नहीं हूं।  मुझे लगता है कि टेक्निकल एजुकेशन में चाहे वह फार्मेसी एजुकेशन, इंजीनियरिंग या मैनेजमेंट हो इस पर बहुत ज्यादा विचार -विमर्श की जरूरत है।

क्या रोजगार की शिक्षा देना असंभव हो चुका है या उपाधियों की वर्तमान पैमाइश लघु हो गई?

नहीं मैं यह नहीं मानता की रोजगार कम हुआ है। रोजगार बढ़ रहे हैं। मुझे लगता है कि हमने शिक्षक होने के नाते विद्यार्थी के दिमाग में यह डाल दिया है कि इस शिक्षा का संबंध फलां रोजगार से है। सबसे बड़ी गलती यह है कि डिग्री को नौकरी के साथ लिंक न करें। पहले उसे विद्यार्थी बनाएं, अच्छा इनसान बनाएं। मुझे लगता है डिग्री इसलिए छोटी हो गई है कि डिग्री का अर्थ सही ढंग से निकालना छोड़ दिया है। स्टूडेंट के दिमाग में यह डालना होगा कि यू आर नॉट ए जॉब  सीकर, यू आर ए जॉब प्रावइडर। हम केवल करिकुलम तक सीमित होकर रह गए हैं। जो एग्जाम है उसे उत्सव  के रूप में मनाएं  उसे बोझ  न समझें।

हिमाचली युवा की क्षमता व प्रतिभा प्रसार में क्या किया जा सकता है?

मुझे लगता है कि स्किल डिवेलपमेंट बहुत जरूरी है। जो विद्यार्थी इंजीनियरिंग कर रहे हैं ,छोटे कोर्स कर रहे हैं उनके साथ एडओन के रूप में वोकेशनल और स्किल डिवेलपमेंट को जोड़ने की जरूरत है। विषय कोई भी हो विद्यार्थियों को स्किल डिवेलपमेंट और वोकेशनल जैसे कोर्सेज हर संस्थान में शुरू होने चाहिएं।

आप करियर को कैसे परिभाषित करेंगे और इसे अपनाने में शिक्षा के किस पथ को सही तरीके से युवा चुनें?

पहली बात मुझे लगता है कि यहां करियर काउंसिलिंग बच्चे की नहीं की जाती। करियर का यह मतलब नहीं कि जॉब लग गई तो करियर बन गया। बच्चे का करियर भी तो समाज के साथ जुड़ा  है। वह कैसा करियर  जिसमें समाज के लिए कोई योगदान नहीं है। सबसे पहले तो करियर को कम्युनिटी के साथ जोड़ना सिखाना होगा।

तकनीकी विश्वविद्यालय  की ओर से हिमाचली युवाओं को आपका आरंभिक आश्वासन?

मेरा आश्वासन यह है कि हम क्वालिटी एजुकेशन पर ध्यान देंगे वहां कोई समझौता नहीं करेंगे। तकनीकी विवि को आगे ले जाने में जो भी करना पड़ा करेंगे। तकनीकी शिक्षा के प्रति अवेयरनेस के लिए जरूरी हुआ तो हम सेमिनार कंडक्ट करेंगे।

हिमाचल में इंजीनियरिंग शिक्षा में गुणवत्ता लाने के लिए आपकी प्राथमिकताएं?

तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता के लिए हमारा ध्येय रहेगा कि एक तो इमएसीटी के मॉडल करिकुलम को अपनाते हुए हम अपना एक अच्छा करिकुलम फ्रेम करेंगे, ताकि शिक्षा में एक क्वालिटी लाई जा सके। उसकी  रिकोग्निशन स्टेट में भी हो, स्टेट के बाहर भी हो और कंट्री के बाहर भी ताकि बच्चों को कोई दिक्कत न आए।

पाठ्यक्रमों में शीघ्रता से कौन से परिवर्तन आप करना चाहेंगे?

जैसा मैंने कहा कि विद्यार्थी को अच्छा इनसान बनाने के लिए जिस तरह के पाठ्यक्रम  की जरूरत होगी वैसा पाठ्यक्रम तैयार करेंगे। मुझे लगता है कि पाठ्यक्रम  हम अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाएंगे ताकि विद्यार्थियों को बाहर जाकर भी दिक्कत न हो।

स्कूली व कालेज पाठ्यक्रमों में तकनीकी शिक्षा के प्रति रुझान कैसे बढ़ाया जा सकता है?

अभी तक तो विद्यार्थी को यही पता है कि प्लस टू के बाद या तो मेरे पास इंजीनियरिंग है या मेडिकल है। तकनीकी शिक्षा में बहुत सारे कोर्सिस हैं। विद्यार्थियों के पास बहुत  सारे ऑप्शन हैं। बस जरूरत है वही कि विद्यार्थियों को बहुत पहले यह डिसाइड करना होगा कि मुझे करना क्या है।

स्वरोजगार की दिशा में हिमाचली युवा को आगे बढ़ाना हो, तो आपकी राय?

हिमाचल में जैसा मैं टूरिज्म की बात करता हूं । टूरिज्म का मैं प्राध्यापक भी हूं। हिमाचल एक ऐसी स्टेट हैं जहां पर्यटन के  क्षेत्र में आपार संभावनाएं हैं। उस डायरेक्शन में वैसे प्रयत्न भी होने चाहिएं। एग्रीकल्चर में बहुत सारी संभावनाएं हैं। हमने स्टार्टअप अगर शुरू करवाए हैं तो सरकार को भी इसमें हेल्प करनी चाहिए।

हिमाचल प्रदेश के प्रति आपका लगाव जाहिर है, फिर भी आप प्रमुख खामियां किन क्षेत्रों में देखते हैं?

मैंने लगभग 30 कंट्री का दौरा किया है कई राज्यों में गया हूं लेकिन मुझे अपनी स्टेट बहुत प्रिय है। खामियां यहां फिलहाल नहीं हैं। यहां बहुत स्ट्रेंथ हैं। आने वाले समय में यह स्टेट बहुत स्ट्रांग बनकर उभर कर आएगी। जैसा मैंने पहले भी कहा कि पर्यटन के क्षेत्र में बहुत कुछ हो सकता है। वर्ल्ड बैंक के माध्यम से बहुत सारा पैसा भी दिया  गया है और प्रयास करने की जरूरत है।


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