जंगल में परी

By: Jun 3rd, 2018 12:05 am

कहानी

सूखी झाड़ी के कांटे रेशम परी के परों में उलझ गए, उन्हें छुड़ाते हुए उसके हाथों की अंगुलियों से खून बहने लगा और वह भयभीत हो रोने लगी…

जून  की गर्मी, लू के थपेड़े ऊपर से सूरज की जलती किरनें। ऐसे मौसम में गुलाब की बेल के नीचे खड़ी रेशम परी का गुस्से के मारे बुरा हाल था। क्रोध से भरी दृष्टि वह सामने घाटी में जाते रास्ते पर गाड़े थी। झील में अठखेली करती मछलियों को वह कई बार डांट चुकी थी। सूखी झाड़ी के कांटे रेशम परी के परों  में उलझ गए, उन्हें छुड़ाते हुए उसके हाथों की अंगुलियां से खून बहने लगा और वह भयभीत हो रोने लगी।

निर्जन घाटी में उसकी सिसकियां किसे सुनाई पड़तीं। मखमल परी का घर भी जंगल के उस पार था, तभी एक गिलहरी फुदकती हुई आई और उसने रेशम परी के कंधे पर बैठ अपने मुंह से उसके गाल का चुंबन लिया। आओ मेरे पास खाने को भी कुछ है। कहती हुई गिहलरी रानी उसे पेड़ की खो की तरफ ले गई। जहां पर एक अखरोट का टुकड़ा पड़ा था, जिसे आधा चीटियां चट कर गई थीं। लो  नहीं चीटियों को खाने दो, मैं जरा सुस्ता लूं फिर तुम्हें एक बढि़या चीज खिलाऊंगी। खिन्नी? फालसा नहीं? तरबूज? नहीं, खरबूजा नहीं? जाओ हम नहीं बोलते, रूठो नहीं गिल्ली रानी।

रूठना तो नहीं चाहती थी। मगर तुम इस गर्मी में क्या उपहार दोगी मुझे? यही तो फल है इस मौसम के और अंदर जंगल के बीच में जहां मोर का एक जोड़ा रहता है न, वहां पर जंगल जलेवी का एक पेड़ है मीठी-मीठी जंगल जलेबियों से भरी है उसकी टहनियां। हम दोनों पेड़ के नीचे बैठ पकी-पकी पेड़ से जमीन पर गिरी जंगल जलेबी खाएंगे और मोर हमें नाच दिखाएंगे। फिर चलो आओ मरे कंधे पर बैठ जाओ ताकि उड़कर हम पल भर में वहां पहुंच जाएं। गिलहरी की आंखें आश्चर्य से फट गई थीं।  अभी तक वह पेड़ की टहनी-टहनी फुदकती थी।

नीचे से बड़े-बड़े पेड़ों को देखती थी,  मगर इस तरफ ऊपर से ठीक चिडि़यों की तरह ऊंची उड़ान भर उसने जंगल नहीं देखा था।  कितने घोंसले कितने फल, कितने बंदर, लंगूर कितनी तरह के वृक्ष ऊपर से तेज हवा और धूप। उसने घबराकर रेशम परी के कान के पीछे अपना मुंह छुपाकर आंखों बंद कर लीं।  सामने से मखमल परी भी उड़ती हवा में तैरती हुई पेड़ों की फुनगियों के ऊपर से चली आ रही थी, रेशम परी को देख उसने एक तेज छलांग हवा में मारी और मित्र के गले में बांहें डाल दीं और मनुहार करने लगी। बेचारी गिलहरी मखमल परी के बाजू के नीचे चीं-चीं करके रो पड़ी। चीं-चीं सुनकर मखमल परी झटके से रेशम परी से अलग हुई और  ताज्जुब से बोली- यह कैसी आवाज थी? आवाज? शरारत से रेशम परी ने पलकें झपकाई। तुम मुझे डराना चाहती थीं न ? मखमल परी ने मुंह बिसोरा तू निरी पगली है अरे गिल्ली रानी मेरे पंख पर सवार है ले देख ले, रेशम परी ने कहा। आह कितनी प्यार सहेली से मिलवाया तुमने, कह कर मखमल गिल्ली रानी इतरा कर हंसी और एक छलांग मार मखमल परी के कंधों पर पहुंच उसके गालों पर चुंबन जड़ दिए। तीनों सखियां हंसती हुई जंगल के बीच में उतरी जहां जंगल जलेबियों से लदा खड़ा था।

तीनों ने जमीन पर पैर जमाए फिर  इधर-उधर ताका और नीचे पेड़ ने अपनी टहनियां हिला कर ज्यादा पकी ताजा मीठी जलेबियां गिराई। तीनों ने जमकर खाई कुछ साथ ले जाने के लिए गुलर के पत्तों में बांध लीं फिर वहीं पैर पसार कर लेट गईं। दोनों के बीच गिलहरी रानी भी लेटकर सुस्ताने लगी। उसका पेट इतना भर गया था उसका मन कर रहा था कि इसी पेड़ के खोह में अपना घर बना  ले और बाकी जिंदगी काट दे। नीम- इमली के पेड़ों पर रहते- रहते दिल ऊब गया है।

पीपल बरगद पर भी रहने का मजा चख चुकी है। आम, अमरूद के पेड़ों पर फल के कारण सदा पहरेदारी होती है, मगर यहां कितना सुख, कितना शांति, कितना भोजन है। सोचते सोचते गिलहरी सो गई। मोर- मोरनी हवा खोरी के बाद लौट आए थे। अपने घर तीन मेहमानों को देखकर बेहद खुश  हुए और  उस खुशी में मोर नाचने लगा। उसके पंख  की फड़फड़ाहट से तीनों जाग गईं और रेशम परी ने जंगली बिल्ले और  तोते की दुखद कहानी  सुनाई।

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