जल संरक्षण पर जागरूकता जरूरी

By: Jun 7th, 2018 12:05 am

प्रदीप शर्मा

लेखक, जवाली से हैं

सरकार को चाहिए कि किसी भी भवन के निर्माण के समय वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए, यह नियम बना दिया जाए। इसी तर्ज पर छोटे-छोटे तालाब, बांध, नाले, डैम भी जनभागीदारी से हर मोहल्ले, गांव, कस्बे और शहर में तैयार किए जा सकते हैं, जो भूगर्भीय जल संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं…

पूरे ब्रह्मांड में पृथ्वी ही एकमात्र ज्ञात ग्रह है जहां जीवन संभव है और इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि यहां जल एवं आक्सीजन दोनों ही उपलब्ध हैं। जल पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों के लिए जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है, परंतु अब पानी की कमी का प्रकोप हर जगह देखने को मिल रहा है। पानी की कमी से हिमाचल भी बच नहीं पाया है। हिमाचल के कई जिलों में पानी की कमी का कहर देखने को मिला है। हमारे पूर्वजों ने नदियों के जल का उपयोग किया। उसकी अगली पीढ़ी ने तालाब और पोखरों का उपयोग किया, फिर नलों द्वारा जल का उपयोग शुरू हुआ और अब बोतलों में जल के उपयोग का चलन शुरू हो गया है, आगे हम किस ओर जाएंगे हमें सोचना होगा।  पृथ्वी पर मौजूद 97.3 प्रतिशत पानी समुद्र का है, जो खारा है। केवल 2.7 प्रतिशत पानी ही मीठा है। दैनिक आवश्यकताओं की अगर बात की जाए, तो अमूमन एक व्यक्ति औसतन 30 से 40 लीटर पानी रोजाना इस्तेमाल करता है।

पानी की उपलब्धता के दृष्टिकोण से विश्व में भारत आठवें पायदान पर है, लेकिन जल के अतिदोहन ने देश के कई हिस्सों को पानी की उपलब्धता के दृष्टिकोण से उन्हें निचले पायदान पर खड़ा किया है। जिस साफ पानी को पृथ्वी पर उपलब्ध करवाने में प्रकृति को करोड़ों वर्ष लगे, उसके स्रोतों को अपूर्णीय रूप से नष्ट करने का हमें कोई अधिकार नहीं है। पानी हमें विरासत में मिला है और हमें भी अपने आने वाले वंशजों को उसे स्वस्थ व प्रचुर मात्रा में प्रदान करना है। पानी की इस निरंतर उभरती हुई कमी के अनेक कारण हैं, जिनमें प्रमुख हैं-पानी के प्राकृतिक स्रोतों का निरकुंश दोहन और उनका विनाश, कृषि के लिए अधिक भूमि घेरने के लिए जंगलों और मैदानों से घास का जबरन समूल विनाश, शहरीकरण आदि। फलस्वरूप अविरल नदियां सूख रही हैं। भू-जल स्तर गहराता जा रहा है। मरुस्थल का विस्तार हो रहा है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अधिकांश तालाब तो सूख चुके हैं, जिनमें पानी है वे गंदगी से अटे पड़े हैं। लोगों ने तालाबों को कचराघर बना लिया है। कुओं का उपयोग बंद हो रहा है।  जीवनदायिनी कही जाने वाली नदियां अब प्रदूषित होने लगी हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2016 में देश भर की नदियों मानिटरिंग की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

पूरे देश में जहां अधिकतर नदियों का पानी प्रदूषित पाया गया, वहीं हिमाचल की नदियों का पानी भी तय मानकों के हिसाब से सही नहीं पाया गया। कई राज्य अभी से जबरदस्त सूखे की कगार पर हैं। कुएं, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावडि़यों का अस्तित्व समाप्त गया है। मशीनरी युग में और कितना नीचे तक पानी के लिए खुदाई की जाएगी, यह एक डरावनी कल्पना की हकीकत में बदलती तस्वीर है। अब लगने लगा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल-कारखाने, उद्योगों को बढ़ावा दिया गया, परंतु इसके अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया। अंधाधुंध औद्योगिकीकरण और तेजी से फैलते कंकरीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है, लेकिन पीने लायक कितना यह सर्वविदित है! लगातार गिरता भू-जल स्तर जहां जनमानस के लिए समस्या का सबब बना हुआ है, प्रतिदिन हैंडपंप व नलजल योजनाएं दम तोड़ रही हैं। हर कोई लाखों, करोड़ों की लागत से मकान तो बना रहा है, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को दरकिनार कर रहा है, जिसका खामियाजा अब उन्हें एक-एक बूंद पानी के रूप में भुगतना पड़ रहा है। हर किसी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अपना कर घर के पानी को भू-गर्भ तक पहुंचाना होगा।

नदियों-नालों के पुनर्जीवन के लिए जनजाग्रति जरूरी है, इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। अगर जनजागरण ठीक, तो हमारे नदी-नाले ठीक होंगे और इनमें 12 माह पानी मिलेगा। अब सबसे जरूरी है कि बारिश के पानी को सहेजा जाए, जो कि बहुत आसान है, जैसे-गहरी जड़ों वाले वृक्ष अधिक से अधिक लगाए जाएं, घरों में वर्षा जल संचयन अर्थात वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए। 3-4 मीटर चौड़ी और 10-15 मीटर लंबी खाइयों को खाली जगहों पर बनाया जाए, उसमें पत्थर, बजरी और मोटी रेत का भराव किया जाए जो पानी को सोखे और वे भूगर्भ तक पहुंचे। सरकार को चाहिए कि किसी भी भवन के निर्माण के समय वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए, यह नियम बना दिया जाए। इसी तर्ज पर छोटे-छोटे तालाब, बांध, नाले, डैम भी जनभागीदारी से हर मोहल्ले, गांव, कस्बे और शहर में तैयार किए जा सकते हैं, जो भूगर्भीय जल संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। पीने का पानी निश्चित रूप से एक बड़ी चुनौती है और इसके लिए सरकार का मुंह देखना बेकार होगा। बेहतर यही होगा कि हर किसी को इसके लिए एक-एक आहुति देनी होगी। अंधाधुंध जल दोहन से देश की कई छोटी-छोटी नदियां सूख गई हैं या सूखने की कगार पर हैं। बड़ी-बड़ी नदियों में पानी का प्रवाह धीमा होता जा रहा है। हम लोग समस्या आने पर ही जागते है, समय रहते हमे जागना होगा और जगाना होगा।

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