जानकी घाम सीतामढ़ी

By: Jun 9th, 2018 12:10 am

विष्णु पुराण के वर्णानुसार सम्राट जनक की हल कर्षण, यज्ञ भूमि तथा उर्बिजा सीता के अवतीर्ण होने का स्थान है। लछमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर उस यज्ञ का अनुष्ठान एवं संपादन बताया जाता है। हल कर्षण, यज्ञ के परिणामस्वरूप भूमिसुता सीता धरा धाम पर अवतीर्ण हुईं, साथ ही आकाश मेघाच्छन्न होकर मूसलाधार वर्षा आरंभ हो गई। कहा जाता है कि जहां सीता की वर्षा से रक्षा के लिए मड़ई बनाई गई उस स्थान का नाम पहले सीतामड़ई, कालांतर में सीतामही और फिर सीतामढ़ी हुआ। यहीं पास में पुनौरा गांव है, जहां रामायण काल में पुंडरीक ऋषि निवास करते थे। कुछ लोग इसे भी सीता के अवतरण की भूमि मानते हैं परंतु ये सभी स्थानीय अनुश्रुतियां हैं।

सीतामढ़ी तथा पुनौरा जहां हैं, वहां रामायण काल में घनघोर जंगल था। ‘वृहद विष्णु पुराण’ में जनकपुर नेपाल से मापकर वर्तमान जानकी स्थान वाली जगह को ही राजा जनक की हल कर्षण भूमि बताया जाता है। सीतामढ़ी में उर्बिजा जानकी के नाम पर प्रतिवर्ष दो बार रामनवमी तथा विवाह पंचमी के अवसर पर विशाल पशु मेला लगता है, जिससे वहां के जानकी स्थान की ख्याति और भी अधिक हो गई है।

श्रीरामचरित मानस के बालकांड में ऐसा उल्लेख है कि राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा के लिए ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गए। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फलवाले बाण से मारकर समुद्र के पार भेज दिया। उधर, लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। राम सीता के विवाह के उपलक्ष में अगहन विवाह पंचमी को सीतामढ़ी में प्रतिवर्ष सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इसी प्रकार जामाता राम के सम्मान में भी यहां चैत्र रामनवमी को बड़ा पशु मेला लगता है।

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