जीवन जीने की कला है ‘योग’

By: Jun 20th, 2018 12:05 am

आशीष बहल

लेखक, चुवाड़ी, चंबा से हैं

योग शब्द सुनते ही हमारे दिमाग मे कुछ तस्वीरें उभरती हैं, जिसमें कुछ सांस लेने की क्रियाएं, कुछ आसन, व्यायाम इत्यादि का ध्यान सबसे पहले आता है। योग कोई नई क्रिया नहीं है, यह हमारी कई हजार साल पुरानी ऋषि-मुनियों द्वारा तैयार की गई एक सांस्कृतिक विरासत है। इन्हीं योग क्रियाओं से प्राचीन समय में लोग खुद को स्वस्थ रखते थे। योग कई वर्षों से हमारे जीवन का हिस्सा रहा है, परंतु इसे पहचान और प्रसिद्धि कुछ दशकों में मिली है। आने वाले 21 जून 2018 को चौथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में मनाया जा रहा है और लोगों में योग के प्रति जो उत्सुकता है, उससे साफ नजर आ रहा है कि भारत की यह प्राचीन विरासत अब भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व भर में फैल चुकी है। आज की इस दौड़-भाग भरी जिंदगी में हर कोई खुद को तनावमुक्त रखना चाहता है। ऐसे में योग सबसे बेहतर साधन है, जिससे विचारों में सकारात्मकता लाई जा सकती है। यही कारण है कि योग आज हर किसी के बीच में प्रसिद्ध हो रहा है और हर कोई योग को जानना चाहता है। आज हम योग के महत्त्व और उसके लाभ की बात करेंगे। योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। भारत ने दुनिया को योग से जोड़ा है, योग के गूढ़ रहस्यों से संसार को अवगत करवाया है। महान ऋषि-मुनियों की प्राचीन कला को न सिर्फ विश्व ने जाना, बल्कि अब उसे अपने अंदर आत्मसात भी किया जा रहा है। योग किसी भी धर्म से ऊपर है, योग तो जीने की एक कला है, यह चेतना को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक मूलमंत्र है, क्योंकि योग शब्द का अर्थ है ‘जोड़’ यानी योग को कोई बहुत सरल शब्दों में समझना चाहे, तो हम यह कह सकते हैं कि योग सिर्फ जोड़ना सिखाता है। यह जोड़ है इनसान का समाज से, समाज का समाज से और राष्ट्र का राष्ट्र से। योग आज जिस तरह पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो रहा है इससे साफ जाहिर है कि योग अपने शब्द के अनुरूप ही देश-विदेश की सीमाओं को लांघता हुआ, एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से जोड़ने का अद्भुत और प्रशंसनीय कार्य कर रहा है। सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि योग क्या है। योग शब्द संस्कृत धातु ‘युज’ से निकला है, जिसका मतलब है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है। हालांकि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं। यह वास्तव में केवल मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमता का खुलासा करने वाले इस गहन विज्ञान के सबसे सतही पहलू हैं। योग विज्ञान में जीवनशैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है। योग एक ऐसी क्रिया है, जो वैज्ञानिक ढंग से अध्यात्म को समझाती है। यह भावनात्मक एकीकरण और रहस्यवादी तत्त्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है। पतंजलि को योग के पिता के रूप में माना जाता है और उनके योग सूत्र पूरी तरह योग के ज्ञान के लिए समर्पित रहे हैं। योग सूत्र की इस व्याख्या का लक्ष्य योग के सिद्धांत बनाना और योग सूत्र के अभ्यास को और अधिक समझने योग्य व आसान बनाना है। इनमें ध्यान केंद्रित करने के प्रयास की पेशकश की गई है कि क्या एक योग जीवन शैली का उपयोग योग के अंतिम लाभों का अनुभव करने के लिए किया जा सकता है। पतंजलि योग दर्शन के अनुसार-‘योगश्चित्तवृत्त निरोधः’ अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि योग एक जीवन जीने की कला और विज्ञान दोनों ही हैं।


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