दूधाधारी मंदिर

By: Jun 16th, 2018 12:07 am

दूधाधारी मंदिर रायपुर (छत्तीसगढ़) में बूढ़ा तालाब के नजदीक में ही स्थित है। रायपुर के बहुत प्रसिद्ध मंदिर और सबसे पुराने मंदिर में दूधाधारी मंदिर का नाम लिया जाता है और यह मंदिर भगवान श्री राम को समर्पित है। जब दूधाधारी मंदिर के इतिहास की बात आती है, तो इस मंदिर के निर्माण के बारे में कोई सबूत नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में राजा जीत सिंह ने किया था। इस मंदिर के स्थान को धार्मिकता की दृष्टि से काफी ज्यादा महत्त्व प्राप्त हुआ है। यह मंदिर जिस स्थान पर बनवाया गया है उसके पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण है। लोककथा के अनुसार भगवान श्री राम जब वनवास में थे तो वह इस स्थान पर भी रहते थे। इस दूधाधारी मठ को जो नाम दिया गया, वह इस मंदिर के संस्थापक बलभद्र महंत के नाम से ही दिया गया था, क्योंकि वह केवल दूध का सेवन करते थे। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। ऋषि बलभद्र दास के नाम से ही इस मंदिर को नाम दिया गया है। ऐसा कहा जाता है की सुरही नाम की एक गाय थी, जो भगवान की मूर्ति पर दूध चढ़ाती थी। महंत जी उस दूध को प्रसाद समझकर पी जाते थे और तभी से वो दूध के आहारी बन गए यानी ऐसा व्यक्ति जो केवल खाने में दूध का इस्तेमाल करता हो। इसीलिए इस मंदिर को दूधाधारी मठ कहा जाता है इस मंदिर की दीवारों पर रामायण से जुड़ी कुछ घटनाएं भी दिखाई गई हंै। इस मंदिर का केवल धार्मिक महत्त्व ही नहीं, बल्कि वास्तुकला के दृष्टि से भी बहुत ज्यादा महत्त्व है। मंदिर पर की गई बहुत ही संुदर मुरल और नक्काशी यात्रियों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर लेती है। इस मंदिर को दो हिस्सों में बांटा गया है। पहले हिस्से में भगवान बालाजी का मंदिर है और दूसरा हिस्सा राम पंचायत को समर्पित है। दूसरे हिस्से में भगवान हनुमानजी का मंदिर भी है। बालाजी मंदिर- जब रायपुर नागपुर प्रांत में था, तो उस वक्त इस पर भोसले शासन करते थे। सन् 1610 में रघु रावजी भोसले ने इस बालाजी मंदिर का निर्माण करवाया था। भगवान श्री राम के जीवन के कुछ संुदर चित्र इस मंदिर की दीवारों पर देखने को मिलते हंै। भगवान बालाजी की मूर्ति के पास में कुछ शालिग्राम रखे गए हैं। वहां पर रखे गए सभी शालिग्राम भगवान विष्णु के प्रतिक माने जाते हैं।

संकट मोचन हनुमान मंदिर

हनुमानजी का यह मंदिर सब मंदिरों से बिलकुल अलग है, क्योंकि इस मंदिर की सीढि़यां उत्तर की दिशा में हंै और दरवाजा दक्षिण की दिशा में है। जब बालाजी का मंदिर बनवाया गया था, तो भगवान हनुमानजी ने भगवान बालाजी को देखने के लिए केवल अपने मुख को बालाजी की तरफ  कर दिया था, लेकिन उनका बाकी का शरीर पहले की दिशा में ही था। यह किसी चमत्कार से कम नहीं था। बालाजी मंदिर बनाने के 20 साल बाद राम पंचायत बनाया गया था। इस राम पंचायत के बाहरी हिस्से में रामायण और महाभारत की कुछ घटनाओं पर आधारित कुछ नक्काशीदार मूर्तियां बनाई गई हैं। इस मंदिर में भगवान श्री राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और सीता देवी सभी की मूर्तियां हैं इसीलिए मंदिर को राम पंचायत कहा जाता है। त्योहार- राम नवमी, रथयात्रा, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा और दिवाली जैसे उत्सव बड़े आनंद से मनाए जाते हैं। लोगों की इस मंदिर में बहुत श्रद्धा और आस्था है। दूर-दूर से श्रद्धालू इस मंदिर में नतमस्तक होने और भगवान के दर्शन करने के लिए आते हैं।


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