धामी गोलीकांड के बाद शिंगारू राम को बंदी गनाया गया
शिंगारू राम जिला सोलन की तहसील अर्की, डाकघर बठाला के गांव चरेल से थे। इनके पिता का नाम श्री विष्णु राम ठाकुर था। धामी गोलीकांड के बाद इन्हें बंदी बनाया गया और वह 12 वर्ष तक जेल में रहे। वह प्रजामंडल के एक सक्रिय सदस्य थे। इन्हें भी 18 महीने भूमिगत रहना पड़ा था…
सत्यदेव बुशहरी
इनका जन्म 19 नवंबर, 1922 ई. को शिमला जिला की तहसील रोहड़ू के चेबारी (कासाकोटी) में हुआ था। उनके पिता पंडित निक्का राम थे। बीए के अंतिम वर्ष में 1942 ई. में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए। 1942 से 1949 ई. तक धर्मपुर, कसौली, डगशाई और कोटखाई में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया। इन्होंने बुशहर में और दूसरी रजवाड़ों की रियासतों में प्रजामंडल व्यवस्थित किए। प्रजामंडल कार्यों में भाग लेने के कारण उन्हें बिलासपुर और सुकेत में दो बार गिरफ्तार किया गया। 1948 ई. में 700 रुपए का जुर्माना किया गया। हिमाचल प्रदेश के गठन के बाद इन्होंने राजकीय सेवा में प्रवेश किया। दो बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। 15 सितंबर, 1999 ई. को इनका निधन हो गया।
सत्यप्रकाश बख्शी ‘ बागी ’
इनके पिता का नाम श्री लक्ष्मण दास था। राजकीय महाविद्यालय लाहौर से बीए तक शिक्षा प्राप्त की। 1930 ई. में जब गांधी जी ने ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ चलाया तो वह राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए। 1941 ई. में सत्याग्रह में भाग लेने के लिए एक साल की कैद और 500 रुपए जुर्माना हुआ। वह लायलपुर जेल में 26 दिन भूख हड़ताल पर रहे। गांधी जी के आग्रह पर भूख हड़ताल छोड़ दी। परंतु 36 वर्ष की आयु में अपनी कमजोर सेहत के कारण चल बसे। वह ऊना जिला से थे।
शिवानंद रमोल
शिवानंद श्री फतेह सिंह के पुत्र थे। इनका जन्म 16 अक्तूबर, 1864 ई. में जिला सिरमौर की तहसील पौंटा साहिब में गांव खैणा (भड़ोग-बनेडी) में हुआ था।
इन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की। इनके 7 बेटे और एक बेटी हुए। वह कृषक, सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता। दसवीं पास करने के बाद 1916 से 1921 तक नाहन जेल में सहायक जेलर रहे और 1936-39 तक दिल्ली में बीमा कंपनी में काम किया। 1939-41 ई. तक ‘गढ़देश सेवा संघ’ दिल्ली में सचिव रहे। 1945 से 1947 तक सिरमौर रियासत प्रजामंडल के महासचिव रहे।
शिंगारू राम
वह जिला सोलन की तहसील अर्की, डाकघर बठाला के गांव चरेल से थे। इनके पिता का नाम श्री विष्णु राम ठाकुर था। धामी गोलीकांड के बाद इन्हें बंदी बनाया गया और वह 12 वर्ष तक जेल में रहे। वह प्रजामंडल के एक सक्रिय सदस्य थे। इन्हें भी 18 महीने ूभूमिगत रहना पड़ा था।
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