नए विचारों की अभिलाषा

By: Jun 18th, 2018 12:05 am

हिमाचल की सरकारी छत अगर अपनी छांव का विस्तार करे, तो तरक्की के फासले और नागरिक उम्मीदों की दूरियां कम हो जाएंगी। जनसंवाद के जरिए सरकार ने जनता की चौपाल तो संवारनी शुरू कर दी, लेकिन हिमाचली दफ्तरों का माहौल, जिम्मेदारी और जवाबदेही की मानिटरिंग चाहिए। कुछ साल पहले जेल विभाग ने कैदियों के जीवन पर सोचना शुरू किया, तो आज हिमाचल की प्र्रमुख जेलें, जीवन की राह पर स्वावलंबन की मंजिल बन गईं। एक छोटा सा प्रयास मिशन बन गया और जेल परिसर की बेकरी स्वाद से भर गई। जेल की खड्डियों ने हिमाचली शाल के रंग चुन लिए, तो फर्नीचर की कारीगरी ने आपराधिक हाथों का पाप मिटा दिया। अब जेल के वाहन से कैदी जब समाज से रू- ब- रू होता है, तो हाथ में तराजू सब्जी-फल तोल रहा होता है या टिक्की-समोसा परोसा जा रहा होता है। कमोबेश हर विभाग इस तर्ज पर नए विचार को परिभाषित करे, तो सरकारी संरचना नागरिक समाज की हर अभिलाषा की पैगंबर बन सकती है। मिल्क फेडरेशन या एचपीएमसी अपने उत्पादन की क्षमता में हिमाचल का नाम ऊंचा करे,तो इस क्षमता की ध्वनि प्रदेश को सम्मानित करेगी। केवल दिवाली पर चंद मिठाइयां बेचने से क्या मिल्क फेडरेशन का दायित्व पूरा माना जा सकता है या कभी सारे देश को जूस पिलाने वाली एच पी एम सी का जौहर अब समाप्त प्रायः ही समझा जाएगा। अगर हिमाचल का बागबानी विभाग अपने करिश्मे की उपज को लहराना चाहे, तो पूरा हिमाचल फूलों से महक सकता है। होना तो यह चाहिए कि प्रदेश भर में जनता के लिए पार्कों का निर्माण व इनका रखरखाव बागबानी विभाग  के मार्फत कराया जाए और यह भी कि अगर घर-घर फूल उगाने के लिए दक्ष व्यक्ति की सेवाएं चाहिएं तो विभाग उपलब्ध कराए। बागबानी विभाग  या विश्वविद्यालय की शोध दृष्टि से कहीं आगे अगर निजी नर्सरियां प्रायोगिक सफलता के परचम फैला रही हैं, तो इस दौर के कौशल में सरकार की छत को भी तो अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी होगी। आश्चर्य यह कि हिमाचल के कृषि एवं बागबानी विश्वविद्यालयों ने किसान-बागबान की सोच को अपनी नई खोज से सशक्त नहीं किया, नतीजतन उन्नतिशील लोग केवल अपनी कसौटियों पर ही खरा साबित हो रहे हैं। जीवन शैली की कई विकृतियां तथा भविष्य की माथापच्ची के बीच सरकारी संस्थानों की अपनी विचित्रता को कब तक तसदीक करके हिमाचली समाज अपनी ताजपोशी करता रहेगा। घोषणाओं के बावजूद हर शहर के बीचोंबीच, आवारा पशुओं के झुंड से अलहदा होना अगर असंभव है, तो गलियों में कुत्तों की फौज से बचना मानवीय त्रासदी है। बंदर फिर हमारे अमन का दुश्मन बन बैठा है, लेकिन हमने हिमाचल के वन्य प्राणी विभाग की मजबूरी में उजड़ते खेत को कबूल कर लिया। रूटीन की कसरतों में पूरा सरकारी अमला सियासी खुशामद का जरिया बन गया और इधर दर्द के दरिया में बहना भी हमारे संयम की तारीफ का  नजारा हो गया। हर विभाग के आगे जीवन की ठोकरें और जीने की राह पर सफर भी सांत्वना देने लगा। अब सरकारी छतों पर सोलर पैनल लगने से फिर जोश भर गया कि कम से कम कुछ हिस्सा तो रोशन होगा, वरना स्वच्छता अभियान के हस्ताक्षर जिस जिलाधीश कार्यालय में पारित होते हैं, वहां की दीवारें शिकायत करती हैं। क्या हिमाचल में सरकारी कार्यालयों के पास खुद की सफाई के लिए महीने में एक घंटा भी नसीब नहीं। हमने तो आज तक किसी सरकारी कार्यालय की सफाई करते कर्मचारी-अधिकारी नहीं देखे, लेकिन स्वच्छता अभियान के ऊंचे मंच अवश्य सजे देखे।


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