नशा उन्मूलन को यह मुहिम नाकाफी

By: Jun 4th, 2018 12:07 am

कर्म सिंह ठाकुर

लेखक, मंडी से हैं

समाज से नशे को उखाड़ने के लिए सरकार द्वारा सख्त नियमों का निर्वहन व स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा नशे के दुष्परिणामों के प्रति निरंतर मुहिम शुरू करनी होगी। एक दिन दिवस मना कर कुछ नहीं होगा, जब तक यह दिवस वर्षभर अपनी मुहिम नहीं चलाएगा…

31 मई, 2018 को तंबाकू निषेध दिवस मनाया गया। इस वर्ष इसका थीम था ‘टोबैको ब्रेक हार्ट्स’। गेट्स की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में 16.1 प्रतिशत लोग तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। वैश्विक वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण ‘गेट्स’ के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2009-10 के मुकाबले में वर्ष 2016-17 में तंबाकू सेवन करने वालों में 24.06 फीसदी की कमी आई है। हालांकि हिमाचल प्रदेश में तंबाकू सेवन के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन फिर भी छोटे से प्रदेश में 16 फीसदी पुरुष एवं महिलाएं तंबाकू का सेवन करते हैं। प्रदेश में नशाखोरी बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटकों तथा इस धंधे से जुड़े हुए कारोबारियों द्वारा फैलाई जाती है। होटल व्यवसाय तथा गुंडा प्रवृत्ति के व्यक्ति नशाखोरी में अधिक लीन रहते हैं। इस नशे की लत की वजह से समाज में विभिन्न प्रकार की कुरीतियां फैलती हैं तथा कई जिंदगियां तबाह हो जाती हैं। नशे से बचकर ही जिंदगी को संवार कर स्वस्थ जीवनशैली को अपनाया जा सकता है। हर वर्ष 31 मई को विश्व में तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत 7 अप्रैल, 1988 को डब्ल्यूएचओ की वर्षगांठ पर हुई थी। डब्ल्यूएचओ के सदस्य राज्यों के द्वारा वर्ष 1989 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई। इस वर्ष पूरी दुनिया को यह संदेश दिया गया कि तंबाकू के सेवन से दिल की बीमारियां होती हैं और इनसान को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ता है। आज समाज का बहुत बड़ा तबका तंबाकू की लत में अपने जीवन को तबाह कर रहा है। पूरे विश्व के लोगों को तंबाकू मुक्त और स्वस्थ बनाने के लिए तथा तंबाकू के खतरों से बचने के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा एक मान्यता प्राप्त कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की मुहिम इस दिन की जाती है।  तंबाकू से निर्मित उत्पादों के सेवन व धूम्रपान द्वारा व्यक्ति न सिर्फ व्यक्तिगत, शारीरिक और बौद्धिक नुकसान को सहन करता है, बल्कि समाज पर भी इसके दूरगामी आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं।

ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे वर्ष 2016-17 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में से लगभग 10 करोड़ लोग सिगरेट या बीड़ी का सेवन करते हैं। विश्व में तंबाकू के सेवन के कारण करीब 70 लाख व्यक्तियों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती है। तंबाकू का इस्तेमाल सिगरेट, बीड़ी, गुटखा द्वारा किया जाता है। तंबाकू से लगभग 25 तरह की शारीरिक बीमारियां और लगभग 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं, इनमें मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, पेट का कैंसर और ब्रेन ट्यूमर प्रमुख हैं। भारत में लाखों लोग तंबाकू की खेती और व्यापार से अपनी आजीविका कमाते हैं। दरअसल तंबाकू का बाजार में आसानी से उपलब्ध होना इसके सेवनकर्ताओं को आदी बना देता है। बस एक बार तंबाकू के सेवन की लत लग गई, तो मानो फिर इसके कारोबारियों की बल्ले-बल्ले हो जाती है। तंबाकू में मुख्य तौर पर निकोटिन पाई जाती है, जो शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदेय पदार्थ है। निकोटिन के कारण ही तंबाकू खाने की लत लगती है। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे, मजदूर तथा अशिक्षित वर्ग तंबाकू की चपेट में बड़ी आसानी से आ जाते हैं। तंबाकू से बचने के लिए सरकारों ने कई तरह के प्रयास किए हैं, लेकिन इसके सेवनकर्ता नशे को छोड़ने को तैयार नहीं हैं। युवा वर्ग व विद्यार्थी वर्ग महज कुछ क्षणों का आनंद लेने के लिए नशे को अपना लेते हैं। इसे अज्ञानता या भ्रम कहें, पर यह आधारभूत सत्य है कि युवा पढ़ी चंद पलों का लुत्फ उठाने के लिए अपने जीवन को बर्बाद कर देती है। इसी आदत के कारण कई परिवारों के चिराग बुझ जाते हैं। समाज से नशे को उखाड़ने के लिए सरकार द्वारा सख्त नियमों का निर्वहन व स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा नशे के दुष्परिणामों के प्रति निरंतर मुहिम शुरू करनी होगी। एक दिन दिवस मना कर कुछ नहीं होगा, जब तक यह दिवस वर्षभर अपनी मुहिम नहीं चलाएगा। हिमाचल प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में नशे की बढ़ती कुप्रथा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। शांत वातावरण, स्वच्छ हवाओं, ईमानदार लोगों की कर्मभूमि की छवि से प्रसिद्ध हिमाचल प्रदेश आज नशे के कारोबारियों का प्रमुख अड्डा बन गया है। आज का युवा नशे की चपेट में आकर अपने भविष्य को अंधकारमय बना रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसके माता-पिता भी भारी परेशानी को झेल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भांग, चरस, अफीम, नशीली दवाइयों का व्यापार और सेवन पर्यटकों व प्रदेश के शरारती तत्त्वों द्वारा बढ़ाया जा रहा है। प्रदेश सरकार को भी नशे के निवारण के लिए कठोर नियमों का प्रावधान करना होगा तथा इनका पालन कठोरता से हो, इसके लिए निष्पक्ष कानून व्यवस्था की जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।

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