पंजाब सरकार ने अल्हिलाल में बनाया था गोदाम

By: Jun 13th, 2018 12:05 am

भावनगर  के नवाब ने यहां एक महल बनाया था, जिस का नाम अल्हिलाल रखा गया। 1947 ई. तक यह स्थान नवाब के लिए गर्मियों की राजधानी रही। 1947 ई. से 1949 ई. तक इसे पंजाब सरकार द्वारा गोदाम के रूप में प्रयोग किया गया…

अन्नाडेल

चिताकर्षक और प्राकृतिक वैभव से युक्त ‘डेल’ जो वर्षों से लोगों को लुभाता चला आया है और मनोरंजन का घटनास्थल रहा है। अचानक ही 2012 में हिमाचल प्रदेश की बीजेपी सरकार और सेना के मध्य झगड़े का अन्नाडेल बन गया और दोनों के इस अधिकार को लेकर असहमति के तर्क-वितर्क में ग्रस्त हो गए। 617 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह मैदान 122 बीघा में फैला है और दूसरे विश्व युद्ध के समय(1941 ई.) से सेना के कब्जे में है। यद्यपि 1958 ई. से औपचारिक रूप से इसे तात्कालिक प्रभाव से 1955 ई. से पट्टे पर दिया गया था।

अच्छर कुंड

यह कांगड़ा के निकट भवन में एक धार्मिक प्रतिष्ठित स्थान है। यहां एक जलप्रपात और एक मंदिर है। विशेषकर संतानरहित महिलाएं वहां रविवार और मंगलवार के दिनों में जाती हैं, रात वहां व्यतीत करती हैं और अगली सुबह स्नान करके वापस आती हैं। वापसी पर हर व्यक्ति उन की छाया से दूर रहता है ताकि बिना ध्यान किए उनको जाने दिया जाए।

अमतर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर नादौन मुख्य बाजार से एक किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध क्रिकेट स्टेडियम है। स्टेडियम का उद्घाटन प्रेम कुमार धूमल द्वारा 25 दिसंबर 2009 को किया गया था। इस स्टेडियम का नियंत्रण हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ द्वारा किया जाता है। यह ब्यास नदी के तट पर है।

    अल्हिलाल

प्राचीन काल में गद्दी जाती के नाम पर इस स्थान को ‘ललियाल’ नाम से जाना जाता था। मुसलमान इस स्थान का प्रयोग इस्लाम के विचारों का प्रचार करने के लिए करते थे और 1933 ई. में भावनगर  के नवाब ने यहां एक महल बनाया था, जिस का नाम अल्हिलाल रखा गया। 1947 ई. तक यह स्थान नवाब के लिए गर्मियों की राजधानी रही। 1947 ई. से 1949 ई. तक इसे पंजाब सरकार द्वारा गोदाम के रूप में प्रयोग किया गया। 1949 ई. में यह जम्मू  के महाराजा हरि सिंह की पत्नी और राजा करण सिंह की माता महारानी तारा के अधिकार में आया। 1951 ई. को इसे एक होटल के रूप में बदल दिया गया।

अखाड़ा बाजार

यह आधुनिक कुल्लू नगर का भाग है। अखाड़ा शब्द फकीरों के विश्राम स्थान पर आरोपित किया गया है, भक्त यहां ठहरा करते थे जिनके लिए बड़ी सराए वहां बनाई गई थी। कालांतर में कांगड़ा, लाहुल और लद्दाख के व्यापारी भी वहां ठहरा करते थे।

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