पूर्णिमा या अमावस्या

By: Jun 23rd, 2018 12:15 am

साधना में कौन सा दिन मदद करता है?

-गतांक से आगे…

ऐसा नहीं है कि आप हर दिन पूर्णिमा में नहीं रह सकते। आप रह सकते हैं। अगर आपको अपने सूर्य और चंद्रमा-पिंगला और इड़ा-पर थोड़ी महारत है तो तीखी धूप में भी आपके अंदर पूर्णिमा की सुंदरता रहती है। या आप हर दिन अमावस्या को चुन सकते हैं। या आप कुछ नहीं चुनते, प्रकृति में जो कुछ भी घटित हो रहा है, आप जीवन की सभी अवस्थाओं का उनके वास्तविक रूप में आनंद लेते हैं।

उपस्थिति और अनुपस्थिति का फर्क

जबकि पूर्णिमा एक शानदार उपस्थिति (मौजूदगी) है, अमावस्या अनुपस्थिति (गैरमौजूदगी) है। तार्किक दिमाग को हमेशा लगता है कि उपस्थिति शक्तिशाली है और अनुपस्थिति का मतलब कुछ नहीं है। मगर ऐसा नहीं है। जिस तरह प्रकाश की शक्ति होती है, प्रकाश की अनुपस्थिति यानी अंधकार की अपनी ताकत होती है। वास्तव में वह प्रकाश से अधिक जोरदार होती है। दिन के मुकाबले रात अधिक तीव्रतापूर्ण होती है क्योंकि अंधकार सिर्फ एक अनुपस्थिति है। यह कहना गलत है कि अंधकार का अस्तित्व होता है। उसमें प्रकाश अनुपस्थित होता है और उस अनुपस्थिति की एक तीव्र उपस्थिति होती है। वही चीज यहां हो सकती है। जब आप अपनी चेतनता में भी ध्यानमग्न होते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अनुपस्थित हो गए हैं। जब आप अनुपस्थित हो जाते हैं, तो आपकी उपस्थिति जबरदस्त होती है। जब आप उपस्थित होने की कोशिश करते हैं, तो आपकी कोई उपस्थिति नहीं होती। अहं की कोई मौजूदगी नहीं होती। लेकिन जब आप अनुपस्थित हो जाते हैं, तो आपकी उपस्थिति जबरदस्त होती है। यही चीज अमावस्या पर लागू होती है। धीरे-धीरे चंद्रमा गायब हो गया है और उस अनुपस्थिति ने एक खास शक्ति पैदा की है। इसीलिए अमावस्या को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

— क्रमशः


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