प्रयोग के साथ प्रयत्न जरूरी

By: Jun 21st, 2018 12:05 am

सिक्किम का एक दौरा हिमाचली पर्यटन को क्या दे सकता, इसका खुलासा करते हुए नूरपुर के विधायक राकेश पठानिया भले ही आशान्वित हों, लेकिन प्रयोग के बजाय प्रयत्न की आवश्यकता कहीं अधिक है। हिमाचली पर्यटन को मात्रात्मक दृष्टि से कुछ भी करने की जरूरत नहीं, बल्कि समूचे परिदृश्य का व्यवस्थित प्रबंधन आवश्यक है। हिमाचली पर्यटन का अपना प्रभाव क्षेत्र चिन्हित है और इसकी जरूरतें भी, लेकिन एक ही ढर्रे से सारे उद्योग को हांकना उचित नहीं। यह अनुभव की नई पराकाष्ठा सरीखा है, जिसे पर्यटक हर बार अंदाज बदल कर छूना चाहता है। ऐसे में हर बार उसी पर्यटन में ताजापन बरकरार रखने की चुनौती और संभावना रहेगी। बेशक एडीबी की मदद से नए स्थल खोजें, अधोसंरचना परिवर्तन तथा पारंपरिक पर्यटक स्थलों का विस्तार किया जा सकता है, लेकिन पर्यटन में सामाजिक जिम्मेदारी तथा विभागीय भागीदारी का सामंजस्य पहली शर्त है। हिमाचल ने पर्यटन को होटल व्यवसाय समझ कर प्रमुख स्थलों का हुलिया जिस तरह बिगाड़ा है, उस आफत को क्या नाम देंगे, ऊंची इमारतों में पर्यटन का कद छोटा होता है और इसीलिए युवा पर्यटकों ने नई जगह तलाश करनी शुरू की है, तो टेंट कालोनियों में दस्तूर बदला है। सिक्किम से हिमालय या एग्रो पर्यटन सीख सकते हैं, लेकिन क्या हमने वर्षों के प्रयास में निरंतरता कायम की। मनाली के पर्वतारोहण संस्थान के मौलिक आदर्शों में पर्यटन ने क्या खोजा-क्या पाया, समीक्षा होनी चाहिए। महामहिम दलाईलामा की उपस्थिति को अंगीकार करके सैलानी बढ़ गए, लेकिन हमने इस आभामंडल को हिमाचल की ताकत नहीं बनाया। तिब्बती-बौद्ध पर्यटन के इर्द-गिर्द घूम रहे हाई एंड टूरिज्म को स्थापित नहीं किया और न ही कांगड़ा एयरपोर्ट की सफल क्षमता को पारंगत करने की चेष्टा हुई। कुछ इसी तरह ट्राइबल टूरिज्म की ख्याति में उच्च स्तरीय पर्यटन को मजबूत नहीं किया। धरोहर स्थलों की अमानत में केवल एक बार मसरूर समारोह या कांगड़ा किला में त्रिगर्त उत्सव का आयोजन करके इतिश्री कर ली, जबकि इस दिशा में हिमाचली संस्कृति, इतिहास व वीरता के कई पहलू अनछुए हैं। सिख पर्यटन की संगत में विश्व स्तरीय होने की कवायद शुरू की होती, तो पांवटा साहिब, ऊना, नादौन से मणिकर्ण तक अनेक गुरुद्वारे हमारी परंपराओं को प्रशस्त कर चुके होते। हिमाचल ने धार्मिक पर्यटन से राजनीतिक व प्रशासनिक दोहन करके, इसकी संभावना को कैद कर रखा है। किसी एक केंद्रीय ट्रस्ट, अलग से धार्मिक पर्यटन विकास बोर्ड या प्राधिकरण का गठन करके योजनाएं-परियोजनाएं बनाएं तो मंदिरों की आय हजार से पंद्रह सौ करोड़ तक हो सकती है। हर मंदिर परिसर में आडिटोरियम बनाकर लोक नाटक तथा गीत-संगीत के कार्यक्रमों का संचालन करके, पर्यटन को नया आयाम दिया जा सकता है। धार्मिक पर्यटन की अपनी क्षमता के तहत स्वतंत्र मंदिर रेल परियोजना का आगाज किया जा सकता है और इसके अलावा धूप, अगरबत्ती, प्रसाद व उपहार वस्तुओं के उत्पादन की इकाइयां स्थापित हो सकती हैं। दरअसल हिमाचल में पर्यटक संख्या तो कहीं अधिक बढ़ गई, लेकिन पर्यटन की तहजीब विकसित नहीं हुई। कायदे से देखा जाए तो हर विभाग, निगम व बोर्ड को पर्यटन के नजरिए से पारंगत होना पड़ेगा। सिक्किम एक बढि़या हिमालय राज्य डेस्टीनेशन हो सकता है, लेकिन हिमाचल केवल हिमालय नहीं और न ही यही मंजिल है, फिर भी ईको व एग्रो टूरिज्म की दिशा में सीखा जा सकता है। हिमाचल के कृषि व बागबानी विश्वविद्यालयों के माध्यम से जिस जीरो बजट खेती का राज्यपाल अनुष्ठान करवा रहे हैं, पर्यटन के हिसाब से काफी चर्चित हो सकता है। सिक्किम की तेरह साल की तपस्या ने उसे जैविक खेती राज्य बनाया, लेकिन इस तड़प को हिमाचल के प्रांगण में देखना इतना भी आसान नहीं। यह इसलिए कि प्रदेश में न डंडा बचा और न ही डंका बजता है। सदाबहार सियासी प्रयोगशाला के लाभार्थी ही प्रभावशाली होंगे, तो व्यवस्था का खेत बंजर ही रहेगा। सिक्किम के टैक्सी आपरेटर अगर पर्यटन के दूत हैं, तो उनके व्यवहार की शालीनता का परिचय हिमाचल को सीखना होगा। क्या पठानिया सरकार के मार्फत हिमाचली टैक्सियों में मीटर लगवा पाएंगे या भीड़ बने पर्यटन के लिए, सभी प्रकार की सुविधाओं व खाद्य पदार्थों के उचित दाम करवा पाएंगे। जिस तरह की अव्यवस्था का नाम हिमाचल पर्यटन हो चुका है, उसके नजारे मनाली, मकलोडगंज, कसौली, डलहौजी सरीखे स्थानों पर देखे जा सकते हैं। हमने रोहतांग को पैसों के लालच में खुर्च दिया, तो होटलों की कब्र में दृश्यावलियां अपमानित कर दीं। पहले यह अध्ययन व समीक्षा करें कि पर्यटन से हमारी आर्थिकी, सामाजिक तथा पर्यावरण पर कैसा-कैसा प्रभाव पड़ा है। जरा अवैध घोषित हुईं होटल इकाइयों या एनजीटी के आईने के सामने खड़े होकर पर्यटन का प्रतिबिंब खोजें, ताकि मालूम हो कि इस एहसास के हम कितने खलनायक हैं। नेताओं के होटलों ने प्रकृति, प्रक्रिया और परंपराओं से जो खिलवाड़ किया है, उस जैसे प्रश्रय में सिक्किम सरीखा पर्यटन खोजना आसान नहीं।


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