फिर लौटेगी संस्कृति

By: Jun 22nd, 2018 12:05 am

शशि राणा, रक्कड़

हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों की वेश-भूषा, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि भिन्न-भिन्न प्रकार का है। शादी एवं अन्य समारोहों में खिलाए जाने वाले भोज को धाम के नाम से जाना जाता है। वहीं धाम में पत्तल का भी एक विशेष महत्त्व है। पत्तल न हो, तो धाम का मजा फीका सा लगता है। वहीं बदलते माहौल के साथ हमारी संस्कृति भी लुप्त होती जा रही है। हिमाचल प्रदेश की धाम में जिन पत्तलों में खाना खिलाया जाता है, वे पत्तलें टौर नामक बेल के पत्तों से बनी होती हैं। इसके अलावा टौर के बेल पत्तों से डोने भी बनाए जाते हैं। जैसे-जैसे आधुनिकता को अपनाया गया, वैसे-वैसे पारंपरिक धाम में ये टौर बेल के पत्तल धीरे-धीरे कम हो गए। अधिकतर लोग डिस्पोजेबल कप-प्लेट्स की तरफ आकर्षित हो गए हैं। टौर बेल के पत्तल और डोनों से वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता है, क्योंकि इन्हें गड्ढों में फेंक दें, तो इससे खाद बन जाती है जो खेती के लिए सहायक है। अन्यथा इन्हें उपयोग के बाद पशुओं को चारे के रूप में भी दिया जा सकता है। समय के साथ लोगों ने इस पारंपरिक प्रथा को भी छोड़ दिया। लोगों ने टौर के पत्तों से बनी पत्तलों को छोड़कर थर्मोकोल और प्लास्टिक की प्लेटों को अपना लिया, जिसके कारण स्वास्थ्य पर तो बुरा असर पड़ता ही है, साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। गत दिनों पर्यावरण दिवस पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा था कि थर्मोकोल और प्लास्टिक से बने गिलास और प्लेटें बंद होंगे। यह  एक सराहनीय पहल है, जिससे वातावरण प्रदूषित नहीं होगा और स्वास्थ्य पर भी इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। परिणामस्वरूप अब हिमाचल प्रदेश की पारंपरिक धाम में एक बार फिर से टौर बेल से बने पत्तल और डोने नजर आएंगे। इससे घरेलू उद्योग को बढ़ावा मिलेगा और इस कारोबार से जुड़े लोगों को रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

 


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