बाडे़श्‍वर महादेव

By: Jun 16th, 2018 12:06 am

देवभूमि बाड़ी धार का हिमाचल प्रदेश में अहम स्थान है,क्योंकि हिमाचल प्रदेश की संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन आदि अन्य राज्यों से बिलकुल भिन्न है। बाड़ी मेले का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, जिस कारण इसे पांच पांडवों का मेला भी कहा जाता है। यह मेला हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के अर्की तहसील में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की संक्रांति को मनाया जाता है। यह मेला पांडवों के प्रति लोगों की अथाह श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। ‘बाड़ी का मेला’ बाड़ी नामक स्थान पर आयोजित होता है। मान्यता के अनुसार बाड़ा देव स्थल में भी गूरों के माध्यम से लोगों की समस्याओं का निपटारा किया जाता हैं। यहां पर बाडेश्वर महादेव का मंदिर है जहां पर यह मेला लगता है। जानकारी के अनुसार अर्की तहसील के बाड़ी की धार इलाके में पांचों पांडव विराजते हैं, जिन्हें यहां अलग-अलग नामों से पूजा जाता हैं। इसके पीछे एक कहानी यह है कि पांडव अज्ञात वर्ष के दौरान शिवजी को ढूंढते हुए हिमाचल आए थे। हिमाचल की पर्वत मालाएं शिवालिक अर्थात शिव की जटाएं कही जाती हैं, जैसे ही उन्हें पता चला कि बाड़ी की धार पर्वत पर शिवजी की धुनी है, वैसे ही शिवजी के दर्शन की इच्छा लेकर पांडव यहां आए। उन्हें शिवजी की धुनी तो मिली पर शिवजी नहीं मिले। देवज्ञा से उन्हें वहीं प्रतिष्ठित हो जाने का आदेश हुआ और आकाशवाणी हुई कि भविष्य में यह पांडवों में सबसे ज्येष्ठ युधिष्ठिर के नाम से जाना जाएगा और यह स्थान बाड़ी की धार के नाम से विख्यात होगा। साथ ही पांडवों को भी अन्य स्थान मिले और वे उन स्थानों पर पूजे जाते हैं। इस मेले की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। बाड़ी अर्की से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए अर्की-भराड़ी घाट के मध्य रास्ते में पिपलुघाट नामक स्थान से 10 किमी. की दूरी पर है। पिपलुघाट से यह मार्ग अगर आप अर्की से आ रहे हैं, तो बायीं ओर मुड़ जाता है और यदि आप भराड़ीघाट की ओर से जा रहे हैं, तो यह रास्ता दायीं ओर मुड़ जाता है। देवभूमि बाड़ी धार के बाड़ी मेले में जो आता है, बाड़ा देव उसकी सभी मन की मुरादें पूरी करते हंै। यही कारण है श्रद्धालू दूर-दूर से इस मेले को देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। इस मेले की पूर्व संध्या पर इस स्थान पर जागरण का आयोजन होता है। माना जाता है कि जितनी भीड़ यहां मेले के दिन होती है, उससे ज्यादा भीड़ इसकी पूर्व संध्या पर जागरण वाली रात को होती है। मेले की पूर्व संध्या पर यहां ढोल-नगाड़ों के साथ पूज(पूजा) बाड़ी को रवाना होती है। हालांकि मेले वाले दिन यहां तीन पूजा देखने को मिलती है। पूजा से अभिप्राय यह है कि जब पांडवों की मूर्तियां भगवान शंकर से मिलन करवाने के लिए बाड़ी की ओर से जाती हैं, तो उसके पीछे श्रद्धालू ढोल-नगाड़ों की साथ बाड़ी के लिए प्रस्थान करते हैं, जिसे पूज अथवा पूजा के नाम से पुकारा जाता है। रात को केवल दो ही पूजा बाड़ी के लिए प्रस्थान करती है। तीसरी पूजा रात के समय यहां पर शामिल नहीं होती है। कारण यह है कि इस पूजा में लगभग 4-5 घंटे का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है,जो रात को संभव नहीं है। मेले में पांडवों का सम्मान देने के लिए विभिन्न प्रकार की धुनें बजाई जाती हैं जिसे बेल कहते हैं। – आशीष गुप्ता, दाड़लाघाट

 


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