भाजपा को अब काम ही दिलाएगा वोट

By: Jun 14th, 2018 12:10 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

कर्नाटक की क्षणिक जीत के बाद मोदी और शाह खुद को फिर से अजेय साबित करने में लगे ही थे कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अंततः कर्नाटक हाथ से निकल गया। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में मिली करारी हार ने मोदी और शाह के गुबारे की हवा निकाल दी। हमेशा अपनी हेकड़ी में रहने वाली इस जोड़ी की हालत अब यह है कि अमित शाह जगह-जगह घूम-घूम कर प्रसिद्ध लोगों से मिल रहे हैं। इसका एक लाभ यह है कि भक्तगण उनके इस नए शगूफे से बहुत प्रभावित हैं…

संजय गांधी की अकाल मृत्यु के बाद जब पायलट की अपनी नौकरी छोड़कर राजीव गांधी कांग्रेस में आए थे, तो उन्हें ‘मिस्टर क्लीन’ कहा जाता था। प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद तक अपने दल कांग्रेस की कीमत पर भी उन्होंने फटाफट कई अच्छे काम किए। पंजाब और असम में आतंकवाद की समाप्ति का प्रयास किया। अरुण सिंह, अरुण नेहरू, सैम पित्रोदा जैसे लोगों ने राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश की, लेकिन शीघ्र ही वे राजनीति की यथास्थिति के शिकार हो गए और वीपी सिंह उनसे विद्रोह करने को विवश हो गए। वीपी सिंह की आंधी ऐसी चली कि कांग्रेस अगला चुनाव हार गई। वीपी सिंह धूम-धमाके के साथ प्रधानमंत्री बने, लेकिन कुर्सी बचाने के चक्कर में उन्होेंने देश को मंडल आयोग की आग में झोंक दिया। नरसिंह राव भी ऐसे ही व्यक्ति थे, जो रिटायरमेंट से वापस आकर प्रधानमंत्री बने। वे और डा. मनमोहन सिंह भारतवर्ष में उदारवाद के प्रणेता माने जाते हैं। तब शरद पवार की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं की काट करते हुए, वे कुर्सी से चिपक गए और अंततः अपनी प्रतिष्ठा गंवा बैठे।

वर्तमान में अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी भी ऐसे ही दुष्चक्र के शिकार हैं। दोनों ही सत्ता में हैं, दोनों ही सत्ता में बने रहना चाहते हैं, दोनों ने ही प्रचार को बहुत ज्यादा महत्त्व दिया और दोनों ही अपने जाल में खुद फंसे बैठे हैं। दोनों नेताओं ने अपने आईटी सेल के माध्यम से सोशल मीडिया पर खूब प्रचार किया है। दोनों नेताओं के पास सोशल मीडिया के प्रचार में कुशल, निष्ठावान कार्यकर्ता हैं।

सोशल मीडिया पर दोनों की धूम है। पंजाब विधानसभा चुनावों में 24 सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी कहीं और कोई जलवा नहीं दिखा पाई और गुजरात विधानसभा चुनावों में बड़ी मुश्किल से मिली कामचलाऊ जीत तथा कर्नाटक, यूपी, महाराष्ट्र और बिहार की हार के बाद नरेंद्र मोदी भी अपने जख्म सहला रहे हैं। आम आदमी पार्टी भाजपा सहित अन्य सभी राजनीतिक दलों के विकल्प के रूप में उभरी थी। भ्रष्टाचार का विरोध और जनलोकपाल बिल इसकी सफलता का सूत्र था। भ्रष्टाचार के रोग से त्रस्त भारतीयों ने आम आदमी पार्टी को हाथोंहाथ लिया और पहली गलती की माफी मांगने के बाद दोबारा भी इस पर विश्वास किया तथा दिल्ली विधानसभा चुनावों के समय 70 में से 67 सीटों का उपहार दिया। भारतवर्ष के विधानसभा चुनावों की यह एक बड़ी जीत थी, जिसने सारी जनता और राजनीतिक दलों को चमत्कृत कर दिया। अरविंद केजरीवाल का दुर्भाग्य है कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है और नरेंद्र मोदी एक अकेले एलजी के माध्यम से दिल्ली की सत्ता पर अवैध कब्जा जमाए बैठे हैं। समस्या यह है कि केजरीवाल अति महत्त्वाकांक्षी हैं और वे किसी अन्य राज्य में जाने के लिए बेताब रहे हैं। अब भी वे 2019 में केंद्र में जाने के लिए पर तौल रहे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से वे अपना संदेश फैला रहे हैं। आईएएस अफसरों की हड़ताल के सिलसिले में वे एलजी निवास पर धरना दिए बैठे हैं और केंद्र सरकार तमाशा देख रही है।

भाजपा का हाल भी कम बुरा नहीं है। कर्नाटक की क्षणिक जीत के बाद मोदी और शाह खुद को फिर से अजेय साबित करने में लगे ही थे कि सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अंततः कर्नाटक हाथ से निकल गया। उसके बाद लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में मिली करारी हार ने मोदी और शाह के गुबारे की हवा निकाल दी। हमेशा अपनी हेकड़ी में रहने वाली इस जोड़ी की हालत अब यह है कि अमित शाह जगह-जगह घूम-घूम कर प्रसिद्ध लोगों से मिल रहे हैं। इसका दोहरा लाभ यह है कि भक्तगण उनके इस नए शगूफे से बहुत प्रभावित हैं। मीडिया की कवरेज भी मुफ्त में मिल रही है, लेकिन यह मीडिया कवरेज, यह धूमधाम भरा प्रचार, सोशल मीडिया पर छा जाने की तकनीक आदि सारे जुगाड़ मिलकर भी भाजपा को वोट दिला पाएंगे, इस पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है। हमेशा चुनावी मोड में रहने की ललक में मोदी ने कई अवांछित काम किए। नौकरशाही की सीमाओं को समझे बिना ताबड़तोड़ घोषणाएं कीं, ऐसी घोषणाएं कर डालीं, जिनको अमलीजामा पहनाने के लिए कोई होमवर्क नहीं किया गया था, उनकी प्रगति पर नज़र रखने का कोई ज़रिया नहीं था। उन घोषणाओं की पूर्ति के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए गए और अब खुद मोदी को भी पता नहीं है कि उन घोषणाओं की स्थिति क्या है?

‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का नारा लगाने वाले प्रधानमंत्री ने जब व्यापम जैसे जघन्य घोटाले पर चुप्पी साध ली और जय शाह की कंपनी के व्यापक विस्तार पर मौन धारण कर लिया, तो फिर राजस्थान अथवा उत्तर प्रदेश में चल रहे घोटालों पर तो उनसे किसी कार्रवाई की उम्मीद करना ही बेकार था। उनके अधिकतर मंत्री अयोग्य निकले। गोरक्षा और बीफ के नाम पर तो ऊधम मचा ही, लव जिहाद ने भी कम शोर नहीं मचाया और एंटी-रोमियो स्क्वैड के नाम पर युवाओं को बेइज्जत किया गया। मोदी की आईटी टीम यहीं पर नहीं थमी। पहले तो झूठ-सच को मिलाकर मोदी की प्रशंसा में व्हाट्सऐप को भर दिया, फिर मोदी को हिंदुओं का मसीहा बताकर समर्थन मांगने की मुहिम शुरू हुई। इस मुहिम में नागरिकों को शर्मिंदा करने, उन्हें बेईमान बताने और मोदी का समर्थन न करने वालों को देशद्रोही करार देने का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसका अंत आज तक नहीं हुआ है। समय के साथ मोदी के विकास की धार गई तो लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा, कर्नाटक की हार के बाद भाजपा की हार का नया सिलसिला शुरू हुआ है। भाजपा के आईटी सेल की आक्रामक सक्रियता के बावजूद मोदी का जलवा घटता नजर आ रहा है। यूपी भाजपा अपने आईटी सेल को और मजबूत करने के लिए दो लाख नए लोगों को भर्ती करने की फिराक में है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह किसी मुगालते में नहीं हैं। वे समझ रहे हैं कि सोशल मीडिया एक हथियार तो है, पर अकेले इसी पर निर्भर हो जाने से जनता की नाराजगी दूर नहीं की जा सकती। यही कारण है कि प्रसिद्ध लोगों से मिलकर उनका समर्थन मांगने की प्रक्रिया में खुद अमित शाह दर-दर भटक रहे हैं। इससे उनको मुफ्त का प्रचार और बड़े लोगों की हमदर्दी मिल रही है।

सवाल यह है कि केंद्र में ही नहीं, देश के अधिकांश राज्यों में सत्तासीन विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल को इस तरह समर्थन के लिए दरवाजे खटखटाने की आवश्यकता क्यों पड़ी है? इसका सीधा सा जवाब यह है कि भाजपा ने आवश्यकता से अधिक वादे किए, बड़ी-बड़ी उम्मीदें जगाईं, लेकिन अपनी योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहना सकी। जनता को घोषणाओं और जमीनी सच्चाई का अंतर साफ नजर आता है। यही कारण है कि जनता में बेचैनी है। जनता की कठिनाइयां समझने के बजाय भाजपा उन्हें देशभक्ति के जुमलों और पाकिस्तान के डर में उलझा रही है। भाजपा यह नहीं समझ पा रही है कि यह सब एक सीमा तक ही चल सकता है, उसके बाद तो भाजपा का काम ही बोलेगा। यह देखना रुचिकर होगा कि इस स्थिति में मोदी की रणनीति क्या होगी। जनता की नाराजगी और विपक्ष की एकता के चलते क्या वे भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे या फिर देश में एक बार फिर गठबंधन सरकार का दौर आएगा? यह समय ही बताएगा।

ईमेलः indiatotal.features@gmail. com

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