भारत में बढ़ रहे आत्महत्या के मामले

By: Jun 24th, 2018 12:16 am

भारत में आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। नेशनल हैल्थ प्रोफाइल के आंकड़े बताते हैं कि 2000-2015 के बीच आत्महत्या के मामलों में 23 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इनमें 30-45 साल की उम्र के लोग सबसे ज्यादा हैं। 2015 में कुल 1,33,623 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए जबकि साल 2000 में आंकड़ा 1,08,593  था, साल 2000 में 18 से 30 साल की उम्र वालों की आत्महत्या का प्रतिशत 32.81 था…

भारत में आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। नेशनल हैल्थ प्रोफाइल के आंकड़े बताते हैं कि 2000-2015 के बीच आत्महत्या के मामलों में 23 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इनमें 30-45 साल की उम्र के लोग सबसे ज्यादा हैं।

2015 में कुल 1,33,623 आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए जबकि साल 2000 में आंकड़ा 1,08,593  था, साल 2000 में 18 से 30 साल की उम्र वालों की आत्महत्या का प्रतिशत 32.81 था। उस दौरान 43,852 लोगों ने अपनी जान ली। 2015 में 18 से 45 साल की उम्र वालों की आत्महत्या का प्रतिशत 66 फीसदी रहा।

क्यों भारतीय छात्रों में बढ़ रही है आत्महत्या की घटनाएं

2015 में 14 साल से कम उम्र के एक फीसदी बच्चों ने और 14-18 साल के छह प्रतिशत किशोरों ने आत्महत्या की। आत्महत्या के कुल मामलों में 19 फीसदी 45-60 साल की उम्र के मामले रहे और 60 साल से ऊपर आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 7.77 फीसदी रहा। 2005 में 1,13,914 और 2010 में 1,34,599 खुदकुशी के मामले सामने आए।

पुरुषों में आत्महत्या के मामले अधिक

आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों में आत्महत्या करने के मामले अधिक पाए गए। 2015 में 91,528 ने अपनी जान ली, वहीं, 2005 और 2010 में  66,032 और 87,180 आंकड़े देखे गए। पिछले 15 वर्षों में महिलाओं में सुसाइड करने के केस में मामूली बढ़ोतरी देखी गई। भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 68.35 वर्ष है।

सामाजिक मुद्दे और नौकरी से बढ़  रहे आत्महत्या के मामले

विशेषज्ञों का कहना है कि सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दे, भेदभाव, नौकरी के लिए भागदौड़ आदि वे कारण हैं जिनकी वजह से युवा आत्महत्या कर रहे हैं। भारत में हाल ही में मेंटल फिटनेस के ऊपर ध्यान देने के लिए जागरूकता शुरू की गई है।

डब्ल्यूएचओ के मेंटल हेल्थ एटलस, 2017 के मुताबिक, बहुत कम देशों में आत्महत्या से बचाव के लिए योजना या रणनीति तैयार की गई है जबकि हर साल दुनिया भर में करीब 8 लाख आत्महत्या कर रहे हैं। रिपोर्ट बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कम ध्यान दिया जाता है और पूरी दुनिया में मानसिक रूप से सेहतमंद बने रहने के लिए कोई योजना नहीं है। इस मामले में विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देश अधिक पिछड़े हुए हैं। विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पर्याप्त ढांचा नहीं है। जहां पर्याप्त ढांचा है, वहां स्वास्थ्य सेवाएं इतनी महंगी हैं कि गरीब लोगों की वहन क्षमता से बाहर हैं। इस श्रेणी में भारत जैसे देश अपना स्तर सुधारने में लगे हैं। आयुष्मान भारत एक ऐसी स्वास्थ्य योजना है जिसके तहत कई करोड़ परिवारों को कवर किया जाएगा। थोड़ी सी बीमा राशि की अदायगी करके पांच लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त करवाया जा सकेगा।


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