योग हिंदू-मुस्लिम नहीं

By: Jun 23rd, 2018 12:05 am

योग महज एक व्यायाम नहीं है। योग दिवस महज एक इवेंट नहीं है। योग न तो राजनीति है और न ही पब्लिसिटी स्टंट है। योग किसी व्याधि का उपचार ही नहीं है। योग करोड़ों लोगों की दिनचर्या है। उनका रोजाना का रूटीन है। योग इनसानी प्राणों की औषधि है, जो सर्वोपरि है। योग विविधता, धर्मनिरपेक्षता, हिंदुस्तान का एक सार-रूप है। इसका कोई ईमान नहीं है। योग हमारी संस्कृति के प्राचीनतम ज्ञान में से एक है। योग आत्मा है, अध्यात्म भी है, शारीरिक और मानसिक ब्रह्मांड है। योग दुनिया को जोड़ता है, एक परिवार की भावना पैदा करता है, विभिन्न इकाइयों में बिखराव को रोकता है, लिहाजा योग एक अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी है। योग को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में 27 सितंबर, 2014 को 175 देशों का समर्थन हासिल हुआ था, नतीजतन अब दुनिया 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाती है। आज भारत और एशिया ही नहीं, विश्व के 30 करोड़ से अधिक लोग योगाभ्यास से जुड़े हैं। करीब 5.45 लाख करोड़ रुपए का योग का कारोबार है। अमरीका जैसे देश में ही करीब 3.6 करोड़ लोग योग से जुड़े हैं। महर्षि पतंजलि ने करीब 5000 साल पहले विभिन्न प्रयोगों, कसरत, प्राणों के आरोह-अवरोह, उनके चौतरफा प्रभावों को लेकर न जाने किस तरह का शोध किया था कि सदियां बीत जाने के बावजूद आज योग ज्यादा प्रासंगिक है। महर्षि पतंजलि की विरासत इतनी फली-फूली और व्यापक हुई कि योग आज एक बहुदेशीय क्रिया है। हमें गर्व महसूस करना चाहिए कि योग हमारी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर है और हमारे प्रधानमंत्री मोदी 55,000 से भी अधिक भीड़ के बीच मौजूद रहते हुए योगासन करते हैं। उनके अंग-प्रत्यंग 67 साल की उम्र में भी बेहद लचीले हैं। युवा पीढ़ी के बीच जिस तरह प्रधानमंत्री ने करीब 40 मिनट तक योगासन किए, निश्चित तौर पर वे प्रेरणा देते हैं। एक राष्ट्रीय संदेश देते हैं कि समूचा राष्ट्र सेहतमंद और ऊर्जावान रहे। प्रधानमंत्री मोदी ने प्रत्येक योग-दिवस पर खुद को भीड़ के बीच रखा है। इंडिया गेट, चंडीगढ़ और लखनऊ के बाद इस बार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में योग-दिवस मनाया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने सभी में शिरकत की और एक उदाहरण प्रस्तुत किया। यही नहीं, दुनिया के करीब 172 देशों ने योग-दिवस मनाया। अमरीकी राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास एवं दफ्तर ‘व्हाइट हाउस’ तक में योगासन किए गए। भारत में ही 21000 फीट की ऊंचाई पर दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध-मैदान सियाचिन ग्लेशियर, लद्दाख में करीब 19,000 फीट की ऊंचाई पर, रोहतांग पास में करीब 13,000 फीट की ऊंचाई से लेकर तपते रेगिस्तान, समुद्र की अतल गहराइयों, आसमान की ऊंचाइयों पर योगाभ्यास किए गए। क्या यह कोई सामान्य आयोजन था या किसी धर्म-संप्रदाय से जुड़ा था? तो फिर इसे भी हिंदू-मुस्लिम का रंग देने की कोशिश क्यों की गई? विपक्ष को जो प्रलाप करना है, करता रहे, लेकिन जिसे 190 देशों ने मान्यता दी हो और 47 मुस्लिम देश भी मनाते हों, तो भारत में ही चंद चेहरों को चींटियां क्यों काटती हैं? सऊदी अरब सबसे दकियानूसी और कट्टर मुस्लिम देशों में से एक है, लेकिन वहां भी योग के केंद्र हैं और योग को पूरी मान्यता दी गई है। ईरान टेनिस और फुटबाल फेडरेशनों की तर्ज पर ही योग को ग्रहण करता है, लेकिन उस पर कोई पाबंदी नहीं है, लेकिन हिंदुस्तान में योग पर मुसलमान बंटे हुए हैं। शिया मुस्लिम योग को सेहतमंद मानते हैं, लेकिन सुन्नी इसे इस्लाम-विरोधी करार देते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी कुछ सवाल उठाए हैं। बुनियादी आपत्ति ‘सूर्य नमस्कार’ और ‘ऊं’ पर है। इन्हें वे ‘हिंदूवादी’ मानते हैं। जिस योग पर आपत्ति है, उसे न करें, लेकिन योग की अवधारणा को ही खंडित कैसे किया जा सकता है। भारत में ही मुहम्मद यूसुफ कई सालों से योग सिखा रहे हैं और इस बार मुस्लिम औरतों ने भी योगासन किए। क्या उनके धर्म भ्रष्ट हो गए या वे पतित हो गए? दरअसल योग को धर्म और ईमान की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। योग उनसे बहुत ऊपर है। इससे इस्लाम को कोई खतरा नहीं है। इससे अलग कोटा में जिन 2 लाख लोगों ने बाबा रामदेव के निर्देशन में योग करके विश्व रिकार्ड स्थापित किया है, उनमें भी कई गैर-हिंदू होंगे। उनके लिए मौलवी-मौलाना क्या कहेंगे? योग बुनियादी तौर पर व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ता है। इसी भावना के साथ योग को ग्रहण करें। आपकी असंख्य शारीरिक और मानसिक गुत्थियां सुलझ जाएंगी।


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