राहुल को क्यों नहीं मानते नेता

By: Jun 18th, 2018 12:05 am

बीते दिनों पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एम्स में भर्ती होना पड़ा। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। शारीरिक गड़बडि़यों के कारण वह अब भी आईसीयू में हैं और डाक्टरों की एक टीम की लगातार निगरानी में हैं। संयोग है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूर्व प्रधानमंत्री का हाल-चाल जानने सबसे पहले एम्स गए। अटल जी को देखने वालों में प्रधानमंत्री मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और डा. मनमोहन सिंह, पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत कुछ मंत्री भी थे। यह हमारी संस्कृति और सभ्यता है कि अस्वस्थता की स्थिति में हम दुश्मन को भी देखने जाते हैं और उसके शीघ्र ही स्वस्थ होने की कामना करते हैं। ऐसे हालात में वैमनस्य नहीं, इनसानियत सामने होती है, लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस के कुछ प्रवक्ताओं ने सार्वजनिक तौर पर इसे भी राजनीतिक मुद्दा बना दिया। एक रैली के दौरान राहुल गांधी ने खुलासा किया कि कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी का चुनावों में या राजनीतिक संदर्भों में खूब विरोध किया, उन्हें चुनाव हराने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह महान नेता रहे हैं, देश के प्रधानमंत्री भी रहे हैं, लिहाजा अस्वस्थ होने की खबर मिली, तो सबसे पहले मैं ही वाजपेयी जी को देखने अस्पताल गया। इस कथन में ‘सबसे पहले’ पर फोकस था। यह है राहुल गांधी का बुनियादी और संस्कारहीन चरित्र…! उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री की बीमारी पर राजनीति की और मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी के ‘फिटनेस वीडियो’ को भी ‘मानसिक दिवालियापन’, ‘हास्यास्पद’ और ‘अजीब’ करार दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री के लिबास पर भी टिप्पणी की। यानी प्रधानमंत्रियों के जरिए भी राजनीति…! सिर्फ राजनीतिक संदर्भों में ही नहीं, बल्कि राहुल ने कोका कोला कंपनी के मालिक को ‘शिकंजी बेचने वाला’ कहा। उन्होंने यह ज्ञान भी बघेरा कि मर्सिडीज बेंज, फोर्ड, होंडा कंपनियों के मालिक ‘मेकेनिक’ होते थे। मैकडानल्स कंपनी का मालिक ढाबा चलाता था। मैं किसानों के लिए ‘आलू की फैक्टरी’ नहीं खोल सकता। ये राहुल गांधी के अनाप-शनाप बयानों के कुछेक उदाहरण हैं। उन्होंने यूपीए सरकार के दौरान ही मनमोहन कैबिनेट द्वारा पारित एक अध्यादेश को ‘बकवास’ करार देते हुए फाड़ दिया था। राहुल की बचकाना और ऊल-जलूल हरकतों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि पूरी किताब लिखी जा सकती है। यदि राहुल गांधी अब भी इतने अपरिपक्व और असंस्कारी नेता हैं, तो यह देश उनका नेतृत्व स्वीकार क्यों करे? जनता का एक वर्ग, जागरूक मानस, पुराने कांग्रेसी और कई राजनीतिक दल, नेता उन्हें नेता मानने को तैयार ही नहीं हैं। हास्यास्पद यह है कि राहुल गांधी ने देश का प्रधानमंत्री बनने का मुगालता पाल लिया है। जिन दलों और नेताओं के साथ महागठबंधन बनाने की कोशिशें जारी हैं, उनमें अब भी कुछ ऐसे हैं, जो कांग्रेस को गठबंधन के बाहर रखना चाहते हैं। मसलन-अखिलेश यादव उप्र में सपा-बसपा गठबंधन के ही पक्षधर हैं। ऐसी खबर आई है, जिसका कोई खंडन नहीं किया गया। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी फिलहाल कांग्रेस से अलग ही रहना चाहती हैं। आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, ओडिशा में नवीन पटनायक ने कांग्रेस के साथ गठबंधन पर अभी तक सहमति नहीं जताई है। कर्नाटक में जद-एस के साथ गठजोड़ कितने समय तक चलता है, यह भी एक सवाल है, क्योंकि दरारें और विरोधाभास अभी से सतह पर दिखाई देने लगे हैं। गौरतलब यह है कि इस बार राहुल गांधी ने इफ्तार का आयोजन किया था, जिसमें वे प्रमुख नेता हाजिर नहीं हुए, जिनके बिना 2019 के चुनाव का लक्ष्य हासिल ही नहीं किया जा सकता। बेशक कुछेक के प्रतिनिधि जरूर आए। परोक्ष विश्लेषण यही है कि ये दिग्गज और क्षेत्रीय नेता राहुल गांधी को अपना ‘नेता’ ही नहीं मानते। बहरहाल राहुल गांधी 14 सालों से लोकसभा सांसद हैं और अब कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष भी हैं, लेकिन उन्होंने या उनके सलाहकारों ने कांग्रेस के इतिहास में ही झांक कर नहीं देखा कि पार्टी के कद्दावर नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों के आरएसएस के साथ क्या संबंध थे? लेकिन राहुल गांधी ने एक सार्वजनिक जनसभा में संघ के लोगों को गांधी के हत्यारे करार दे दिया। इस संदर्भ में उन पर केस चल रहा है और अदालत में आरोप तक तय  हो चुके हैं। राहुल गांधी के बारे में विशेषज्ञों का आकलन है कि कांग्रेस अध्यक्ष देश भर में यात्राएं तो करते रहें, हाथ हिला-हिला कर लोगों के अभिवादन स्वीकार करते रहें, लेकिन एक भी शब्द न बोलें। राहुल गांधी जितना बोलेंगे, कांग्रेस उतना ही पीछे जाएगी।

 


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