रोचकता से भरपूर पुस्तक है ‘कचकथाकाव्यम्’

By: Jun 24th, 2018 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

* पुस्तक का नाम : कचकथाकाव्यम्

* मूल हिंदी लेखक : परमानंद शर्मा

* संस्कृत अनुवाद : भूषणलाल शर्मा

* कुल पृष्ठ : 96

* मूल्य : 175 रुपए

* प्रकाशक : साईं पूजा प्रकाशन, थापरां मोहल्ला, जालंधर शहर

धर्मशाला के प्रो. परमानंद शर्मा द्वारा मूल रूप से हिंदी भाषा में लिखी गई ‘कचकथाकाव्यम्’ का संस्कृत अनुवाद साहित्यिक जगत में आ गया है। इसका संस्कृत अनुवाद डा. भूषणलाल शर्मा ने किया है। हिंदी गद्य में कच नामक पौराणिक पात्र की संक्षिप्त कथा देते हुए बताया गया है कि मन्वंतर के आरंभ में देवों और दानवों के मध्य जो युद्ध हुआ, उसमें जो दैत्य मरते थे, उन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या के बल से पुनर्जीवित कर देते थे। देवों के मरने पर देवगुरु बृहस्पति के पास यह विद्या नहीं थी जिससे वे अपने मृत देवों को पुनः जीवित कर सकें। देवों ने बृहस्पति के पुत्र युवा कच से प्रार्थना की कि वह दैत्य गुरु शुक्राचार्य के पास जाकर उनका शिष्यत्व ग्रहण करे तथा उनको सेवा सुश्रूषा के जरिए प्रसन्न करके उनसे मृत संजीवनी विद्या प्राप्त करे। इसके बाद कच ने शुक्राचार्य के पास जाने के लिए कूच किया। यह विद्या सीखने के दौरान उस पर कई संकट आए और तीन बार तो दैत्यों ने उसे मार भी दिया। इसके बावजूद कच यह विद्या शुक्राचार्य से ग्रहण करने में सफल हो गया। वापसी पर शुक्राचार्य की बेटी देवयानी ने कच से प्रणय निवेदन करते हुए उसका रास्ता रोकने की कोशिश की, किंतु कच इसे ठुकरा देता है तथा विद्या सीख कर वापस देवताओं के पास आ जाता है। यही कहानी विस्तार से हिंदी काव्य में परमानंद शर्मा ने पेश की है, जबकि साथ-साथ इसका संस्कृत में अनुवाद भूषणलाल शर्मा ने पेश किया है। संस्कृत में इसके कुल 200 पद्य दिए गए हैं। कुल 96 पृष्ठों में समेटी गई इस किताब के अंत में दोनों लेखकों का जीवन व साहित्यिक परिचय भी दिया गया है। आशा है कि पाठकों को यह किताब पसंद आएगी। हिंदी के मिथक कचकथाकाव्यम् को देववाणी में दो सौ उपजाति पद्यों में अनूदित करके पाठकों के अध्ययनार्थ पेश किया गया है। हिंदी के मूल काव्य में परमानंद शर्मा की प्रवाहमयी शैली को देववाणी में यथावत रखने का प्रयास किया गया है। इसमें इंद्र वज्रा और उपेंद्र वज्रा छंदों का प्रयोग किया गया है, जो परंपरागत मिथ्याहासिक शैली के सर्वथा अनुरूप है।


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