लोहार्गल सूर्य मंदिर

By: Jun 9th, 2018 12:10 am

राजस्थान के झंझुनू जिले से 70 किमी. दूर आड़ावल पर्वत के उदयपुरवाटी के कस्बे में लोहार्गल मंदिर स्थित है, जिसका संबंध पांडवों से जुड़ा हुआ है। इस तीर्थ स्थल को पुष्कर तीर्थ के सभी तीर्थों में से मुख्य तीर्थ स्थल माना जाता है। मान्यता है कि पांडवों को लोहार्गल के सूर्य मंदिर तीर्थ में सगे-संबंधियों की हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। यहां स्थित सूर्य कुंड में स्नान करने से त्वचा संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती है। सूर्यदेव संग इनकी पत्नी छाया की पूजा से सब प्रकार के मनोरथ भी पूरे होते हैं। राजस्थान के झुंझनू जिले में स्थित लोहार्गल का सूर्य मंदिर भगवान सूर्य का घर माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की तपस्या से यहां सूर्यदेव को पत्नी छाया के साथ रहने के लिए स्थान मिला था।

यहां स्थित सूर्य कुंड में स्नान करने से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है। सूर्यदेव संग इनकी पत्नी छाया की पूजा करने से सब प्रकार के मनोरथ भी पूरे होते हैं। यह सूर्य देव के प्राचीन मंदिरों में से एक है और कोणार्क के सूर्य मंदिर का समकालीन है। माना जाता है कि कत्यूरी वंश के राजा कटरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। लोगों की आस्था है कि यहां श्रद्धापूर्वक जो भी मनोकामना मांगी जाती है, वह पूरी होती है। पद्मासन की मुद्रा में बैठे भगवान सूर्य भक्तों को रोग और दुखों से मुक्ति दिलाते हैं। यह मंदिर अलमोड़ा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर बसा है।

यह क्षेत्र पहले ब्रह्मक्षेत्र था। माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां भगवान विष्णु ने शंखासूर नामक दैत्य का संहार करने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। शंखासूर का वध कर विष्णु ने वेदों को उसके चंगुल से छुड़ाया था। इसके बाद इस जगह का नाम ब्रह्मक्षेत्र रखा। इस स्थान का भगवान परशुराम से भी संबंध है। विष्णु के छठें अंशअवतार भगवान श्री परशुराम ने जब क्रोध में क्षत्रियों का संहार कर दिया था, तब बाद में उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने पाप से मुक्ति और पश्चाताप के लिए यहां रहकर हवन किया। यहां एक विशाल बावड़ी भी है, जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था। यह राजस्थान की बड़ी बावडि़यों में से एक है। पहाड़ी पर सूर्य मंदिर के साथ ही वनखंडी जी का मंदिर है। कुंड के पास ही प्राचीन शिव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा पांडव गुफा स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढि़यां चढने पर मालकेतु जी के दर्शन किए जा सकते हैं। श्रावण मास में भक्तजन यहां के सूर्यकुंड से जल से भर कर कांवड़ उठाते हैं।

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